देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की चर्चा तेज़ हो गई है। ऐसी में अटकलें हैं कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार इसे लागू कर देगी। आपको बता दे कि, देश में समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक कानून सुनिश्चित करेगी, जो सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे संपत्ति, विवाह, विरासत और गोद लेने आदि में लागू होगा। वही इस को लेकर विपक्ष पार्टी ने विरोध शुरू कर दिया है।
भारत एक धर्म-निरपेक्ष देश है
भारतीय संविधान के मुताबिक भारत एक धर्म-निरपेक्ष देश है, जिसमें सभी धर्मों और संप्रदायों (जैसे – हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, आदि) को मानने वालों को अपने-अपने धर्म से सम्बन्धित कानून बनाने का अधिकार है। वही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शत्रुघ्न सोनवाल के अनुसार, “भारत में दो प्रकार के पर्सनल लॉ हैं।
पहला है हिंदू मैरिज एक्ट 1956; जो कि हिंदू, सिख, जैन और अन्य संप्रदायों पर लागू होता है। दूसरा, मुस्लिम धर्म को मानने वालों के लिए लागू होने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ। ऐसे में जबकि मुस्लिमों को छोड़कर अन्य सभी धर्मों और संप्रदायों के लिए भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत बनाया गया हिंदू मैरिज एक्ट 1956 लागू है तो मुस्लिम धर्म के लिए भी समान कानून लागू होने की बात की जा रही है।”
आखिर क्या है अनुच्छेद 44 ?
बता दे कि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक, ‘राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।’ यानी की संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का निर्देश दे रहा है, जो वर्तमान में उनके संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। हालांकि, यह राज्य की नीति का एक निर्देशक सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि यह लागू करने योग्य नहीं है।
BJP के एजेंडे में है यूनिफार्म सिविल कोड ?
बता दें, समान नागरिक संहिता यानी यूनिफार्म सिविल कोड का मुद्दा लंबे समय से बहस का केंद्र बना हुआ है। वही बीजेपी के एजेंडे में भी यह शामिल रहा है। पार्टी जोर देती रही है कि इसे लेकर संसद में कानून बनाया जाए। वही भाजपा के 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी यह शामिल।
कानूनी विशेषज्ञों की अलग राय
दरअसल कानूनी विशेषज्ञ इस बात पर बंटे हुए हैं कि क्या किसी राज्य के पास समान नागरिक संहिता लाने की शक्ति है। वही कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि विवाह, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं, जो 52 विषयों की सूची है, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, राज्य सरकारों के पास इसे लागू करने की शक्ति।