Bihar Politics: राजधानी पटना की सड़कों, चौक-चौराहों और दीवारों पर शनिवार को अचानक सियासी गर्मी दिखने लगी, जब विभिन्न राजनीतिक दलों ने एक-दूसरे पर तीखे हमले करते हुए पोस्टर चिपकाना शुरू कर दिया। इन पोस्टरों में निजी, पारिवारिक और वैचारिक कटाक्षों की भरमार है। हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन इस पोस्टर वॉर ने साफ कर दिया है कि सियासी लड़ाई की शुरुआत हो चुकी है।
पूर्व मंत्री संजय झा पर ‘परिवारवाद’ का आरोप
बताते चले कि, जदयू के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री संजय झा को एक पोस्टर में सीधे निशाने पर लिया गया है। इस पोस्टर में आरोप लगाया गया है कि संजय झा ने अपने परिवार के सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट के पैनल में एडवोकेट बनवाकर ‘परिवारवाद’ को बढ़ावा दिया। पोस्टर में कटाक्ष किया गया—”इन्होंने क्या दिया बिहार को? सब कुछ दिया अपने परिवार को।” यह पोस्टर सीधे तौर पर जदयू की छवि को चोट पहुंचाने की कोशिश करता दिख रहा है।
‘एनडीए’ का नया मतलब: ‘नेशनल दामादवादी अलायंस’
विपक्षी महागठबंधन की ओर से एक और पोस्टर में एनडीए का मज़ाक उड़ाते हुए उसे ‘नेशनल दामादवादी अलायंस’ बताया गया है। इस पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी और चिराग पासवान की तस्वीरें लगी हैं। आरोप लगाया गया है कि यह गठबंधन सिर्फ ‘दामादवाद’ को बढ़ावा दे रहा है और सार्वजनिक जिम्मेदारियों में रिश्तेदारों को आगे ला रहा है।
“बिहार फर्स्ट की जगह जीजा जी फर्स्ट”
एक अन्य पोस्टर में चिराग पासवान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीना दिखाते हुए दिखाया गया है। पोस्टर में व्यंग्य करते हुए लिखा गया है—”बिहार फर्स्ट की जगह जीजा जी फर्स्ट है।” वहीं जीतन राम मांझी और कांग्रेस नेता अशोक चौधरी को लेकर भी कहा गया, “हिम्मत दामाद फर्स्ट, वो भी आरएसएस कोटे से।” ये टिप्पणियां न सिर्फ व्यंग्यात्मक हैं, बल्कि जातीय और वैचारिक समीकरणों को भी छेड़ती हैं।
एनडीए की पलटवार रणनीति
एनडीए समर्थकों ने भी जवाबी हमला किया है। एक पोस्टर में राजद प्रमुख लालू यादव को भैंस पर बैठे और मुंह में चारा चबाते हुए दिखाया गया है। तेजस्वी यादव को उनके आगे बैठे दिखाया गया है। इस पोस्टर में लिखा गया है—”मेरा बाप चारा चोर, मुझे वोट दो।” यह पोस्टर सीधा चारा घोटाले और वंशवाद पर हमला करता है, जो कि लंबे समय से राजद की राजनीति का विरोधी विमर्श रहा है।
मुद्दों से हटकर छवियों और संबंधों की लड़ाई
बिहार में चुनावी तैयारी भले ही औपचारिक रूप से शुरू न हुई हो, लेकिन ‘पोस्टर वॉर’ यह इशारा दे रहा है कि इस बार की सियासी जंग सिर्फ विकास या रोजगार जैसे मुद्दों पर नहीं होगी। इसमें व्यक्तिगत छवि, पारिवारिक जुड़ाव और रिश्तों की सियासत बड़ी भूमिका निभाने वाली है। दीवारों पर चिपके ये पोस्टर भविष्य की एक आक्रामक और भावनात्मक चुनावी लड़ाई की आहट हैं।
बिहार की सियासत में अब पोस्टरों ने मोर्चा संभाल लिया है। नेताओं के भाषणों से पहले ही दीवारें बोल रही हैं, और जो लहजा इन पोस्टरों में नजर आ रहा है, उससे साफ है कि आने वाला चुनाव सिर्फ मतों का नहीं, रिश्तों और छवियों का भी होगा।