- गद्दी पर गदर हनुमान गढ़ी की गद्दी क्यों है इतनी अहम ?
- शाही गद्दी के लिए सालों से हो रही हत्याएं
- गद्दी का खूनी इतिहास
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Hanumangarhi Peeth: मंदिर और मूर्तियों के शहर अयोध्या में लगभग 8000 से ज्यादा मठ मंदिर हैं। हर मठ-मंदिरों की अपनी अलग-अलग परंपरा मान्यताएं है, लेकिन इसी अयोध्या में भगवान राम के अनन्य सेवक पवन पुत्र बजरंगबली का भी मंदिर स्थापित है। हम बात कर रहे हैं प्राचीन सिद्धपीठ हनुमानगढ़ी की जहां धार्मिक मान्यता है कि, हनुमानगढ़ी के पुजारी को साक्षात पवन पुत्र हनुमान दर्शन देते हैं। और इस मंदिर में करोडों रूपयों को चढावा आता है। और इसी वजह से हनुमानगढ़ी पीठ में वर्चस्व की लड़ाई दशकों से चली आ रही है, यहां 38 साल में 20 से ज्यादा साधु-संत और महंतों की हत्या हो चुकी है। सिर्फ इसलिए कि गद्दी, धन-दौलत और संपत्ति पर कब्जा हो सके। अभी 5 रोज पहले भी एक नागा साधु की हत्या कर दी गई। हनुमानगढ़ी के कद, पद और वर्चस्व की लड़ाई चल रही है।
हजारों साल पुरानी शक्तिशाली पीठ
1000 साल पुरानी और देश की सबसे शक्तिशाली पीठ में से एक हनुमान गढ़ी पीठ जहां खुद विराजते हैं हनुमानजी जो अयोध्या के राजा राम के परम दास है। मना जाता है उनसे शक्तिशाली कोई नहीं है, लेकिन हनुमानगढ़ी पीठ में वर्चस्व की लड़ाई दशकों से चली आ रही है। इस गद्दी के लिए गदर इस कदर है कि यहां 38 साल में 20 से ज्यादा साधु-संत और महंतों की हत्या हो चुकी है। महज इसलिए कि गद्दी, धन-दौलत और संपत्ति पर कब्जा हो सके। अभी 5 रोज पहले भी एक नागा साधु की हत्या यहीं हनुमानगढ़ी मंदिर की सीढ़ियों पर कर दी गई। साधु का नाम- राम सहारे दास था। वह हनुमान गढ़ी के बसंतिया पट्टी के साधु थे। हत्या उन्हीं के चेलों ने की वह पट्टी की गद्दी पर कब्जा कर साधु के पैसों को हड़पना चाहते थे।
हनुमान गढ़ी की गद्दी कितनी अहम है। और यहां वर्चस्व की जंग कब से चली आ रही है। आज उसके कुछ किस्सों और हकीकत से हम आपको रुबरू करायेंगे, लेकिन उससे पहले इस गद्दी के महत्व और इस गद्दी से जुडे कई जरूरी इतिहास के बारे में आपको बताते है। अयोध्या की प्रसिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी का अपना संविधान है। यहां का पूरा कामकाज इसी संविधान के मुताबिक चलता है। पीठ का अपना अखाड़ा और पंचायत भी है। यह लोकतांत्रिक तरीके से फैसले लेता है। इसके बावजूद यहां गद्दी, अखाड़ा और वर्चस्व की लड़ाई दशकों से चलती चली आ रही है। यहां कद, पद और पैसे के लिए संतो की हत्याएं तक हो जाती हैं। गद्दी पर कब्जे के लिए हत्या का पहला मामला 80 के दशक में सामने आता है। जब यहां गद्दीनशीन महंत दीन बंधु दास की हत्या कर दी जाती है। 30 सितंबर 1995 को महंत रामज्ञा दास की हत्या कर दी जाती है।
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150 राउंड से ज्यादा हुई फायरिंग
यह हत्या हनुमानगढ़ी के आश्रम में ही होती है, हमलावर 150 राउंड से ज्यादा गोलियां चलाकर महंत को छलनी कर देते है। तब से चला आ रहा, ये सिलसिला अभी तक नहीं थमा है। हनुमानगढ़ी पीठ का सर्वोच्च पद गद्दीनशीन महंत का होता है। वही पीठ की चारों पट्टी सागरिया, हरिद्वारी, बसंतिया और उज्जैनियां समेत पूरे हनुमानगढ़ी अखाड़े का प्रमुख होता है। पीठ के महंत पद पर विराजमान गद्दीनशीन महंत दीनबंधु दास की हत्या तो उनके आसन पर ही गोली मारकर कर दी गई थी। यह घटना 1984-85 की बताई जाती है। इस घटना के साल भर के अंदर नवनियुक्त गद्दीनशीन महंत राम बालक दास की भी हत्या कर दी गई। इन घटनाओं की चर्चा आज भी दबी जुबान से अयोध्या के महंत करते है, लेकिन खुलकर बोलने से परहेज करते हैं।
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हनुमानगढ़ी की क्राइम फाइल
- 1882- महंत बजरंग दास की हत्या
- 1886- महंत राम बालक की हत्या
- 1886-महंत हरिभजन दास की हत्या
- 1991-महंत शंकर दास की हत्या
- 1985- महंत दीनबंधु दास की हत्या
- 1995-महंत रामज्ञा दास की हत्या
- 1997-पगला बाबा की हत्या
- 2007- 3 संतों की मिली लाश
- 2015- महंत संत सेवक दास की हत्या
- 2023-संत राम सहारे दास की हत्या
पगला बाबा की हत्या में श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम आया था
1997 में हनुमानगढ़ी के महंत रामकृपाल दास उर्फ पगला बाबा की हत्या कर दी जाती है। बताया जाता है कि उन्हें अयोध्या की गलियों में दौड़ाकर गोली मारी गई थी। इस हत्या में श्रीप्रकाश शुक्ला का हाथ था। पूर्वांचल का कुख्यात बदमाश माना जाता था जिसने सीएम तक को मारने की सुपारी ले ली थी। ठकुराइन मंदिर में जमीन खोदकर 3 संतों की लाश निकाली गई थी। हनुमानगढ़ी के 52 बीघा परिसर में ही ठकुराइन मंदिर है। बात 2007 की है, इसी मंदिर के ग्राउंड फ्लोर से पुलिस ने जमीन खोदकर 3 संतों की लाश निकाली थी। गद्दी और वर्चस्व की लड़ाई में इन्हें भी मारकर गाड़ दिया गया था। इनकी हत्या किसने और क्यों की थी। इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है।
हनुमानगढ़ी करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां दर्शन किए बिना रामलला का दर्शन अधूरा माना जाता है। ये वही मंदिर है, जिसे भगवान राम ने लंका से लौटने के बाद अपने प्रिय भक्त हनुमानजी को रहने के लिए दिया था। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने साकेत गमन से पहले हनुमानजी को इस किले पर रहकर अयोध्या की रक्षा का दायित्व सौंपा था। इस आदेश के बाद से हनुमानजी यहां साक्षात विराजमान हैं। हनुमानजी ही अयोध्या के राजा हैं और राजा की तरह ही उनकी सेवा होती है। इस बात का जिक्र अथर्ववेद में भी है। हनुमान गढ़ी में हर साल डेढ़ से दो करोड़ लोक दर्शन करते हैं। फिलहाल हनुमान गढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेम दास है।