Atul Subhash Suicide Case: बेंगलुरू के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष (Atul Subhash) के आत्महत्या मामले को लेकर चल रही बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में किसी को केवल उत्पीड़न के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने के स्पष्ट और ठोस प्रमाण होने चाहिए। जस्टिस विक्रम नाथ और पीबी वराले की पीठ ने गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एक महिला को कथित उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में उसके पति और ससुराल पक्ष के सदस्यों को दोषमुक्त करने से इनकार कर दिया गया था।
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अतुल सुभाष के आत्महत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
बताते चले कि, हाल ही में बेंगलुरू में 34 वर्षीय इंजीनियर अतुल सुभाष (Atul Subhash) की आत्महत्या के मामले में यह टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। अतुल ने अपनी पत्नी और उसके परिवार के खिलाफ उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जिसके बाद उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया, मां निशा, पिता अनुराग और चाचा सुशील के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था। अतुल के आत्महत्या के बाद उसकी पत्नी और ससुराल पक्ष के खिलाफ यह मामला सामने आया था।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल उत्पीड़न को आधार बनाकर किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने यह साफ किया कि आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप साबित करने के लिए यह जरूरी है कि अभियुक्त की सक्रिय या प्रत्यक्ष भूमिका का प्रमाण हो, जिसके कारण मृतक ने अपनी जान ली।
कानूनी सिद्धांत और अभियोजन पक्ष का दायित्व
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत आरोप साबित करने के लिए यह कानूनी सिद्धांत है कि आरोपी की उपस्थिति और उसके स्पष्ट उकसाने के इरादे की आवश्यकता है। सिर्फ उत्पीड़न से आरोपी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोष नहीं लगाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी की सक्रिय भूमिका के कारण ही मृतक ने आत्महत्या की।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि आरोपी के उकसावे के कारण का केवल अनुमान नहीं लगाया जा सकता, बल्कि यह स्पष्ट और पहचाने जाने योग्य होना चाहिए। अगर ऐसा कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है तो उकसावे के आरोप को साबित नहीं किया जा सकता।
न्यायालय का आदेश और आगे की प्रक्रिया
आपको बता दे कि, इस टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों को धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से मुक्त कर दिया। हालांकि, आईपीसी की धारा 498-ए (विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत आरोप को बरकरार रखा। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि महिला के पिता ने अपने दामाद और दो ससुराल वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 और 498-ए के तहत अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की थी, लेकिन अभियोजन पक्ष को पर्याप्त और ठोस प्रमाण पेश करने में विफल रहा।
यह निर्णय इस मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत के रूप में सामने आया है, जिसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराने के लिए सिर्फ उत्पीड़न ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि आरोपित व्यक्ति की सक्रिय भूमिका और उकसाने के स्पष्ट सबूत होना आवश्यक हैं।
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