बिहार संवाददाता- shiv kumar…
टूट रहा है घरौंदा, दरक रहें है आपसी रिश्ते और बिखर रहा है संयुक्त परिवार…
अपने छोड़ रहे है अपनों का साथ…
कई तरह की तस्वीर समाज से निकल कर आ रही है सामने…
कोरोना काल ने लोगों को बहुत कुछ का कराया था अहसास, लेकिन फिर भी लोग रिश्तों का नहीं दे रहे है अहमियत…
इंसानी जिंदगी भागदौड़ वाली हो गई है…
आज हम आप सभी को एक ऐसे विषय से रूबरू ही नहीं करायेगे बल्कि इस विषय तटस्थ बहस और पड़ताल भी करेंगे की आखिर क्यों टूट रहा है घरौंदा और बिखर रहें है संयुक्त परिवार? मौजूदा दौर में इंसानी जिंदगी भागदौड़ वाली हो गई है। इंसान केवल पैसे और अपनी जरूरत को पूरा करने के पीछे भाग रहा है। अपना पूरा समय भागदौड़ में देने के कारण हर लोगों के बीच एक दूसरों से बना रिश्ता अब धीरे-धीरे दरक रहा है। कई तरह के रिश्तों के समायोजन से ही घर-परिवार, समाज और देश-दुनिया कायम है। हर रिश्ता खुद में बेहद खास होता है, अगर इसे ईमादारी से बगैर किसी नफा नुकसान का निभाया जाये।
एक ही घर-परिवार में हर एक चीजों का बटवारा…
पहले का दौड़ था जब एक ही घर में परिवार के सारे लोग साथ रहा करते थे साथ खाना,साथ घूमना हर सुख दुख में एक दूसरों के साथ मजबूती के साथ खड़ा रहना, हर बातों में परिवार के लोगों के साथ मशवरा करना ये सारी बातें का होना संयुक्त परिवार की खासियत थी। लेकिन अब इसके उलट एक ही घर-परिवार में हर एक चीजों का बटवारा हो जाता है। जिस कारण से अब संयुक्त परिवार धीरे-धीरे बिखर रहा है। संयुक्त परिवार में किसी भी रिश्ते की गहराई का अन्दाज लगाना बेहद मुश्किल होता है। हर रिश्ता का महत्व और उसकी गर्माहट अलग होती है। रिश्ते से ही पूरा संसार चलता है। भारतीय संस्कृति में हर रिश्ते को उसका वाजिब हक दिया जाता है। चाहे रिश्ता माँ-बाप, भाई-बहन, भाई-भाई, मां-बेटी या इसके अलावा कोई भी रिश्ता हो सबको उस रिश्ते का वाजिब अधिकार और प्यार मिलता है।
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अपनों–अपनों का साथ छोड़ दिया…
लेकिन वर्त्तमान परिवेश की बात करे तो रिश्तों में अब घुन लगना शुरू हो गया है।रिश्तों की गर्माहट और मिठास अब धीरे–धीरे खत्म होते दिख रही है।रिश्तों का दायरा भी अब छोटा होने लगा है।अगर बात पिछलें कुछ सालों की जाये तो वैश्विक महामारी कोरोना काल का पहले फेज से लेकर दूसरे फेज में कई लोगों ने अपनों–अपनों का साथ छोड़ दिया।इस वैश्विक महामारी में बहुतों जगह देखा जा रहा था की अगर आप कोरोना संक्रमित है तो लोग आपका हाल चाल भी जानना मुनासिब नहीं समझ रहे थे।आपदा का समय लोगों को एक दूसरों के साथ की जरूरत होती है लेकिन ऐसे में देखा जा रहा था की अपने अपनों को छोड़ रहे है।कोरोना काल में रोजाना कई जगहों से खबर मिलती है की कोरोना संक्रमित होने के कारण उनकी मौत हो गई।
ये खबर सुनते ही रिश्तेदार अपना पैर पीछे कर लेते थे।अगर मरने वाले के परिवार में अगर लोगों की संख्या कम होती है तो घर का बेटा,बेटी या उसके पति या पत्नी उनके अंतिम संस्कार को अकेले ही कर रहे है।कई ऐसी खबर सुनने को मिल रही थी की संक्रमित होने के बाद अगर मौत हो जाती तो परिवार सहित रिश्तेदार सब लापता हो जाते थे और व्यक्ति का अंतिम संस्कार कोई समाजिक संस्था या समाज के कुछ लोगों के द्वारा किया जाता था।
रिश्ते के साथ–साथ इंसानियत को…
यहाँ तक की अगर किसी की माँ कोरोना संक्रमित होती और कुछ दूर पर बेटी का ससुराल है, तो ना बेटी आने की कोशिश करती थी ना ही उनके ससुराल वाले।क्या यही रिश्ता है।क्या इसी समय को देखने के लिए लोग रिश्ता बनाते है।हाँ ये जरूरी है की वैश्विक महामारी में हर लोगों को हर तरह से सावधानी बरतनी चाहिए लेकिन ऐसी भी सावधानी बरतनी नहीं चाहिए की रिश्ते के साथ–साथ इंसानियत को भी दफन कर दिया जाये। इसी संकट काल में बहुत जगहों से ऐसी भी तस्वीर सामने आ रही है, की जहाँ अपनों के साथ समाज के लोग भी बिना रिश्ते के लोगों का हर सम्भव मदद किये थे।
हर संकट का दौर गुजर जाता है, जैसे रात के बाद सुबह का होना तय है।लेकिन इस तरह अपनों का साथ छूटना लोग जीवन में कभी भूल नहीं पायेंगे। हर लोगों को चाहिए की संकट के समय एक दूसरों की मदद करें। जब आप इंसान की मदद करेंगे तो खुदा आपकी मदद जरूर करेंगे।