Ram Mandir: 22 जनवरी 2024 का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो चुका है। 500 सालों के लंबे इंतजार के बाद प्रभु श्री राम भव्य मंदिर में विराजमान किए जा चुके है। रामलला के बालरुप की मूर्ति को बनाने वाले अरुण योगीराज के कला की खूब चर्चा हो रही है। रामलला पहले प्रतिमा स्वरुप में थे,अब प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला देवस्वरुप में हो गए है।
read more: 75वें Republic Day का देश मना रहा जश्न,PM Modi ने दी बधाई
सुमधुर शास्त्री ने रामलला को गढ़ते हुए देखा
रामलला की प्रतिमा से देवस्वरुप बनने के सफर के साक्षी बने संस्कृत और संगीत के विद्वान सुमधुर शास्त्री। सुमधुर शास्त्री ने रामलला को गढ़ते हुए देखा है। एक न्यूज चैनल से खास बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बीते कई महीनों में उन्हें रात-रात में जगाया और कहते थे कि आप साथ में चलिए लल्ला मुझे बुला रहे है। फिर उसके बाद वो घंटो तक हर एक एंगल से लल्ला को निहारते थे। कई बार तो सवेरा भी हो जाता था।
मेरा सौभाग्य है कि मैंने रामलला को शिलारूप से प्रकट होते देखा..
इसी कड़ी में आगे सुमधुर शास्त्री ने कहा कि यह निश्चिच रूप से बड़ा विषय था। इतने लंबे संघर्ष के बाद देवता को प्रतिष्ठित करना एक बड़ी जिम्मेदारी थी। उन्होंने कहा कि बाल्यकाल से संघ के स्वयंसेवक रहे, अब साकेत महाविद्यालय में संगीत प्रवक्ता हैं तो जब इस कार्य के लिए ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बुलाया तो एहसास नहीं था कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन जो बातचीत हुई, उससे गंभीरता समझ में आई। मेरा सौभाग्य है कि मैंने प्रभु रामलला को शिलारूप से प्रकट होते देखा है।
अरुण योगीराज ने शिला पूजन किया
प्रभु श्री राम के विग्रह निर्माण को लेकर उन्होंने कहा कि सबसे पहले सत्यनारायण पांडे का नाम आया और फिर जीएल भट्ट का नाम सामने आया। बल्कि शिला पूजन भी पहले जीएल भट्ट ने किया, फिर सत्यनारायण पांडेय ने किया। इसके बाद आखिरी में अरुण योगीराज ने शिला पूजन किया। तीनों ही मूर्तिकार अपनी पद्धति से, कला का प्रदर्शन करने में प्रतिबद्धता से लगे रहे। सभी को ट्रस्ट के निर्देश थे, रामलला की छवि बाल स्वरूप की हो, नख -शिख से 51 इंच की लंबाई है। बाल सुलभ छवि और मुस्कान उभर कर आई। भगवान के सभी लक्षणों पर बारीकी से बातचीत हुई।
टूटी फूटी इंग्लिश से काम चलाया
आपको बता दे कि मूर्तिकार अरुण योगीराज ने सबसे देर से काम शुरु किया था। उनको भाषा की काफी ज्यादा मुश्किल आई,लेकिन टूटी फूटी इंग्लिश से काम चल गया। लेकिन इसमें भी कम्युनिकेशन का जरिए हमारे भाव बने। इन सब को मिलाकर लगभग 7 से 8 महीने का समय लगा। उन्होंने कहा कि 22 जनवरी को जिस रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई, वह रामलला की मूर्ति से एकदम अलग लग रहे है, क्योंकि उनकी स्थापना के बाद उनमें देवत्व भाव आ गया ।
read more: धड़ल्ले से हो रहा हरे पेड़ों का कटान,जिम्मेदारों की अनदेखी की वजह से दिन रात कट रहे हरे वृक्ष
रामलला अब वाकई देवत्व स्वरूप वाला लग रहे
भगवान के उत्तर भारतीय स्वरूप को समझने के लिए काफी सारी खोजबीन की गई। स्वामी नारायण छपिया मंदिर गए, नैमिषारण्य के मंदिर देखे। अयोध्या की मूर्ति संकल्पना में प्रतिमा कैसी लगती है, इस पर विचार किया, संतों से चर्चा कराई। यही नहीं पुस्तकों में पढ़े और रामायण से दैवीय स्वरूप के श्लोक पढ़े और उन्हें समझने की कोशिश की। साथ ही राम मंदिर निर्माण समिति के चेयरमैन नृपेंद्र मिश्र बीच-बीच में जायजा लेते थे। उन्होंने कलाकारों के रहने और उनके आराम का विशेष ध्यान रखा। उन्होंने कहा कि मैं विशेष भाग्यवान हूं कि मैंने रामलला को पहले दिन से बनते देखा है और जो स्वरूप अब सामने आया तो मैं भाव विह्वल हो गया। अरुण योगीराज ने भी कहा कि हमारा लल्ला बदल गया। उनके कहने का तात्पर्य ये था कि मैंने जिसको बनाया, वह रामलला अब वाकई देवत्व स्वरूप वाले लग रहे है। वह बहुत विभोर थे।