Rajasthan CM: भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सीएम पद का ऐलान करने के बाद राजस्थान में भी आज सीएम पद के नाम की घोषणा कर दी है.हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी ने सीएम पद के लिए नए नाम से सभी को चौंका दिया है.पार्टी की ओर से राजस्थान में भेजे गए पर्यवेक्षकों ने विधायक दल की बैठक के बाद भजन लाल शर्मा के हाथों प्रदेश की कमान सौंप दी है इनके साथ दो डिप्टी सीएम का भी ऐलान किया गया है.दीया कुमारी और प्रेम चंद्र बैवरां को राजस्थान का डिप्टी सीएम बनाया है जबकि अजमेर नॉर्थ से विधायक वासुदेव देवनानी को स्पीकर बनाने का ऐलान किया है।
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वसुंधरा राजे के सीएम न बन पाने की बड़ी वजह
अब बात कर लेते हैं राजस्थान में सीएम पद की दौड़ में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का जिनका नाम सीएम रेस में सबसे आगे चल रहा था लेकिन किन कारणों से उन्हें सीएम नहीं बनाया गया है इसके कुछ बड़ी वजहें निकलकर सामने आई हैं।
राज्य में नई लीडरशीप तैयार हो रही
दरअसल राज्य में चुनाव नतीजों के बाद ही वसुंधरा राजे ने अपने समर्थकों और विधायकों के साथ पार्टी आलाकमान को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश थी लेकिन मोदी और अमित शाह के आगे उन्हें पीछे हटना पड़ गया.भाजपा की ओर से सभी राज्यों में इस बात को बार-बार दोहराया गया कि,पार्टी विधानसभा चुनाव इस बार कमल के निशान और मोदी के चेहरे पर लड़ रही है यही कारण रहा कि,राजस्थान से दिल्ली तक का सफर तय करने के बावजूद वसुंधरा राजे को ये हिंट तक नहीं दी गई कि,चुनाव में उनकी क्या भूमिका होगी.पार्टी ने उन्हें साफ संकेत दिया कि,वो सीएम कैंडिडेट नहीं हैं इसके बावजूद वो उम्मीद लगाती रही कि,राजस्थान में उनकी सीएम पद की कुर्सी पक्की है।राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी पार्टी आलाकमान का साफ संदेश है कि,वो राज्यों में अब नई लीडरशीप तैयार कर सीनियर नेताओं को केंद्र की राजनीति में ला सकती है।
2018 में हार भी रही एक वजह
इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने वसुंधरा राजे को सीएम पद का चेहरा बताकर चुनाव लड़ा था लेकिन पार्टी केवल 72 सीटों पर ही सिमट गई.इस दौरान राजस्थान से लेकर दिल्ली तक ये नारा भी खूब सुनाई दिया…वसुंधरा तेरी खैर नहीं,मोदी तुझसे बैर नहीं…जिसका सीधा अर्थ था कि,जनता नहीं चाहती थी वसुंधरा राजे सीएम बने यही कारण रहा 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी 25 सीटें जीत सकी।
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अशोक गहलोत से नजदीकी ले डूबी
इसके अलावा राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे की पूर्व सीएम अशोक गहलोत के साथ करीबी भी एक वजह रही उनके सीएम न बनने की.कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कई मौकों पर अशोक गहलोतक से वसुंधरा राजे के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग की लेकिन अशोक गहलोत ने सीएम पद पर रहते हुए कभी कोई एक्शन नहीं लिया.ऐसा ही तब देखा गया जब वसुंधरा राजे सीएम पद पर रहीं उन्होंने भी कभी अशोक गहलोत के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया।
पार्टी कार्यक्रमों से दूरियों ने बढ़ाई मुश्किलें
वसुंधरा राजे के सीएम पद की दौड़ से बाहर होने की एक और वजह रही कि जब वो सत्ता से बाहर होती हैं तो वो पार्टी से बिल्कुल दूरी बना लेती हैं.पार्टी के किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में वो शामिल नहीं होती हैं।इसका एक उदाहरण तब देखने को मिला जब 8 मार्च को महिला दिवस के मौके पर विधानसभा के सामने विशाल धरना प्रदर्शन का आयोजन किया था जिसमें सभी विधायकों को पहुंचना था लेकिन वसुंधरा राजे उस दिन अपने जन्मदिन पर 57 विधायकों के साथ सालासर मंदिर में शक्ति प्रदर्शन करने पहुंच गई थी।
सीएम पद पर रहकर भी नहीं कर पाई कोई कमाल
राजस्थान में वसुंधरा राजे 2003-2008 और 2008-2013 तक मुख्यमंत्री रहीं लेकिन सत्ता में रहते हुए उन्होंने ऐसी कोई खास रणनीति नहीं बनाई जिससे पार्टी दोबारा सत्ता में वापसी कर सके.वसुंधरा राजे को लेकर केंद्रीय नेतृत्व को ये भी शिकायत सुनने को मिलने लगी कि,सीएम रहते हुए वो लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं रहती.राजशाही परिवार से ताल्लुक रखने के कारण भी वसुंधरा राजे जनता से सीधे नहीं जुड़ पाई ये भी उनके मुख्यमंत्री ना बन पाने की एक बड़ी वजह रही।
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