संदीप मिश्रा
Eid-Ul-Adha 2024: भारतीय उप-महाद्वीप में बकरीद के नाम से मशहूर इस त्योहार में मुस्लिम समाज के लोग भेड़-बकरों जैसे चौपाय जानवरों की कुर्बानी पेश करते हैं.ये प्रथा 1400 से ज्यादा सालों से चली आ रही है लेकिन क्या आप जानते हैं कि अखिर मुस्लिम समाज यह त्योहार क्यों मनाता है? और ऐसी क्या वजह है कि मुस्लिम लोग इस दिन जानवरों की बली क्यों चढाते है.ईद उल-अजहा यानि बकरीद पर पढ़े ये खास रिपोर्ट….
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मुस्लिम समाज में दूसरा बड़ा पर्व
मुस्लिम समाज में ईद उल-अजहा यानि बकरीद दूसरा सबसे बड़ा पर्व है. इस्लाम धर्म से जुड़े लोग इस पर्व को हर साल रमजान खत्म होने के लगभग 70 दिन बाद मनाते हैं.बकरीद के पर्व को कुर्बानी के पर्व के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन लोग बकरे या अन्य किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं.लोगों के जेहन में अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर इस दिन बकरे की कुर्बानी क्यों दी जाती है और इसके पीछे की मान्यता क्या है? आइए जानते हैं कि आखिर कब कैसे शुरु हुई कुर्बानी की ये परंपरा और क्यों मनाया जाता है बकराईद का पर्व
जानें क्यों दी जाती है कुर्बानी ?
इस्लामिक मान्यता के अनुसार ईद उल-अजहा यानि बकरीद पर कुर्बानी की शुरुआत हजरत इब्राहीम के समय हुई थी, जिन्हें अल्लाह का पला पैगंबर माना जाता है. मान्यता है कि एक बार फरिश्तों के कहने पर अल्लाह ने उनका इम्तिहान लेने का निर्णय किया. इसके बाद अल्लाह ने उनके सपने में जाकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने के लिए कहा. ऐसे में हजरत इब्राहीम ने तय किया कि उनका बेटा इस्माइल ही उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय है, जिसने कुछ समय पहले ही उनके घर में जन्म लिया था. इसके बाद हजरत इब्राहीम ने अल्लाह के लिए अपने बेटे को कुर्बान करने की ठान लिया.
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किसने की इसकी शुरुआत ?
इस्लामिक मान्यता के अनुसार जब पैगंबर हजरत इब्राहीम ने अपना फर्ज अदा करते हुए बेटे की कुर्बानी देने निकले तो उन्हें रास्ते में एक शैतान ने गुमराह करने की कोशिश की और उन्हें इस बात के लिए मनाने की कोशिश की कि वे अपने प्रिय बेटे की बलि न दें, लेकिन पैगंबर नहीं डगमगाए और शैतान की बातों को नजरंदाज करके आगे बढ़ गए. इसके बाद वे अपने निर्णय से न डगमगाएं इसके लिए उन्होंने अपने आंखों पर पट्टी बांध कर कुर्बानी दे दी.
क्या है इसकी इस्लामिक मान्यता ?
इस्लामिक मान्यता के अनुसार जब जब पैगंबर मुहम्मद अपनी आंख पर पट्टी बांध कर बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे, उसी समय अल्लाह के फरिश्तों ने उनके बेटे को हटाकर वहां पर एक मेमने को रख दिया था. इस तरह इस्लाम धर्म में पहली कुर्बानी हजरत इब्राहीम द्वारा मानी जाती है. मान्यता है कि हजरत इब्राहीम के समय से बकरीद के पर्व पर लगातार यह कुर्बानी की परंपरा चली आ रही है.
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