Maha Kumbh 2025:प्रयागराज में 14 जनवरी 2025 से शुरू होने वाला महाकुंभ मेला एक बार फिर से आस्था और विश्वास का केंद्र बनेगा। महाकुंभ के आयोजन के लिए योगी सरकार ने व्यापक तैयारियां की हैं, ताकि दुनिया भर से आने वाले श्रद्धालुओं और संत-महात्माओं को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।
इस बार महाकुंभ में अलग-अलग अखाड़ों और उनकी परंपराओं को लेकर लोगों के बीच उत्सुकता और भी बढ़ गई है। इन परंपराओं में सबसे खास हैं नागा साधुओं की अद्भुत परंपराएं, जो न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनका जीवन और संस्कार भी अद्वितीय है।
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नागा साधुओं की संन्यास परंपरा और पिंडदान
महाकुंभ में शामिल होने वाले नागा साधु शैव अखाड़ों की संन्यास परंपरा का पालन करते हैं। इस परंपरा में एक साधु को पहले 17 पिंडदान करने होते हैं, जिनमें से 16 पिंडदान अन्य व्यक्तियों के नाम होते हैं, जबकि 17वां पिंडदान वह अपने नाम से करता है, जिससे वह खुद को मृत घोषित कर देता है। इस प्रक्रिया के बाद वह अपने सभी पारिवारिक संबंधों को समाप्त कर देता है और पूरी तरह से धर्म के प्रचार की ओर अग्रसर होता है। यह पिंडदान की परंपरा उन साधुओं को जीवन के भौतिक और पारिवारिक बंधनों से मुक्त कर देती है, ताकि वे अपनी आत्मा को शुद्ध कर सके और अध्यात्म के मार्ग पर चल सके।
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नागा साधुओं का गुरु के प्रति अडिग समर्पण
महाकुंभ में नागा साधु अपने गुरु को पितातुल्य मानते हैं। उनका मानना होता है कि उनके गुरु ही उनके असली पिता होते हैं, क्योंकि वे अपने जीवन में गुरु के मार्गदर्शन में कदम रखते हैं। यह संबंध सामाजिक रिश्तों से कहीं अधिक मजबूत होता है। महाकुंभ में साधु अपने गुरु, दादा गुरु, परदादा गुरु और अन्य पूर्वजों की तस्वीरें लेकर चलते हैं और उन्हें अपने साथ रखते हैं। इसके साथ ही, उनका मानना है कि वे उसी गुरु परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
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गुरु के बिना नागा साधु का जीवन अधूरा
नागा साधु संन्यासी जीवन को पूरी तरह से समर्पित कर देते हैं और इस यात्रा में उनका सबसे करीबी रिश्ता उनके गुरु से होता है। उनके लिए गुरु ही सबसे महत्वपूर्ण होते हैं और उनके बिना उनकी जीवन यात्रा अधूरी मानी जाती है। नागा साधु जब अपने गुरु के मार्गदर्शन में होते हैं, तो वे किसी भी भौतिक रिश्ते को पीछे छोड़ देते हैं और पूरी तरह से अपने गुरु के सिद्धांतों और शिक्षाओं के अनुसार जीवन जीते हैं।