Input-Nandani
बद्रीनाथ धाम: उत्तराखंड के चमोली जिले में भारत और उत्तराखंड के चार धामों में से एक धाम बद्रीनाथ धाम स्थित है।उत्तराखंड में हर वर्ष चार धाम कपाट बंद होने की तिथि और खोलने की तिथि निर्धारित की जाती है। कपाट खुलने का समय मार्च-अप्रैल में होता है। साथ ही बंद होने का समय अक्टूबर-नवंबर में आता है।बदरीनाथ धाम में कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत पहले पंच पूजाएं होती हैं, जिनका विशेष महत्व है।
इसके तहत भगवान गणेश, आदि केदारेश्वर, खडग पुस्तक और महालक्ष्मी की पूजाएं होती हैं।सबसे पहले गणेश पूजन होता है, फिर गणेश जी की मुर्ति को बदरीनाथ ने ग्रभगृह में विराजमान करवा दिया जाता है और गणेश मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं। उसके बाद आदि केदारेश्वर के कपाट बंद किये जाते हैं और खडग पुस्तकों का भी पूजन होता है और उन्हें भी रख दिया जाता है.
क्यों स्त्री रुप में आते हैं मुख्य पुजारी
आपको ये जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि बदरीनाथ के मुख्य पुजारी को कपाट बन्द होने के दिन स्त्री रूप धारण करना पड़ता है। पुरुष होने के बावजूद वे न सिर्फ स्त्रियों की तरह कपड़े पहनते हैं, बल्कि उन्हीं की तरह ही श्रृंगार भी करते हैं। लेकिन ऐसा क्यों किया जाता है, इसके पीछे क्या कारण है, जानते हैं।
महा लक्ष्मी का मंदिर और जैसा की सभी जानते हैं कि बदरीनाथ के कपाट खुलते ही लक्ष्मी भी बद्रीश पंचायत छोड़ देती हैं और अपने मंदिर में विराजमान हो जाती हैं। तो कपाट खुले रहने के दौरान लक्ष्मी जी लगभग 6 महीने तक अपने मंदिर में भी विराजमान रहती हैं और जब कपाट बंद करने का समय आता है तो उन्हें बद्रीश पंचायत यानि श्री हरी के निकट पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
बद्रीश पंचायत में विराजमान करवाया जाता
यहां भक्तों और देवताओं के बीच का एक गहरा आत्मी संबंध है। कपाट बंद होने से ठीक एक दिन पहले लक्ष्मी जी को बद्रीश पंचायत में विराजमान होने का निमंत्रण दिया जाता है और ये निमंत्रण लेके जाते है रावल यानि की बदरीनाथ के मुख्य पुजारी। निमंत्रण मिलने के बाद ये माना जाता है कि लक्ष्मी जी बद्रीश पंचायत में जानी की तैयारियां शुरू कर देती हैं। इसके बाद आता है, बदरीनाथ के कपाट बंद होने का दिन, क्योंकि बदरीनाथ के मुख्य पुजारी यानि रावल पुरुष होते हैं और लक्ष्मी जी को अपने हाथों से स्पर्ष कर उठाना उचित नहीं माना जाता।
इसलिये इस परंपरा को निभाने के लिये रावल बन जाते हैं लक्ष्मी जी की सखी यानि एक स्त्री। इसलिये वो एक स्त्री का वेश धारण करते हैं। उसी के अनुसार श्रंगार करते हैं।ऐसी ही वो लक्ष्मी जी के मंदिर पहुंचते हैं और लक्ष्मी जी को अपनी गोद में उठाकर बदरीनाथ के गभ्रगृह पहुंचते हैं और उन्हें बद्रीश पंचायत में विराजमान करवाया जाता है। इसके बाद अब अगले 6 महीने तक लक्ष्मी मां बद्रीश पंचायत में श्री हरी के सानिध्य में रहेंगी।