One Nation One Election:एक देश एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है.18 हजार से अधिक पन्नों की इस रिपोर्ट में एक साथ देश के सारे चुनाव कराने की सिफारिश की गई है. रिपोर्ट में विभिन्न पक्षों के सुझावों को भी शामिल किया गया है. इसके अलावा ये बताया गया है कि,इसके क्या फायदें होंगे और क्या चुनौतियां रहेंगी.इसके तहत एक अहम सुझाव वोटरों से भी जुड़ा है कि,उन्हें इलेक्शन फोटो आइडेंटिटी कार्ड यानी EPIC जारी किया जाए. इसके जरिए सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची काम करेगी।
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क्या है ‘एक देश एक चुनाव’?
एक देश एक चुनाव की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये कहकर लागू करने की बात कही थी कि,हर कुछ महीनों के बाद देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव हो रहे होते हैं.ये हकीकत है कि,देश में पिछले करीब तीन दशकों में एक साल भी ऐसा नहीं बीता, जब चुनाव आयोग ने किसी न किसी राज्य में कोई चुनाव न करवाया हो.इसके बाद से ही एक देश एक चुनाव नीति लाने की मांग तेज हो गई।
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आपको बता दें कि,एक देश एक चुनाव का अर्थ है कि,संसद, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ, एक ही समय पर हों.अब अगर इसको और आसान शब्दों में समझा जाए तो मतदाता एक ही दिन में सरकार या प्रशासन के तीनों स्तरों के लिए वोटिंग करेंगे.अब चूंकि विधानसभा और संसद के चुनाव केंद्रीय चुनाव आयोग संपन्न करवाता है और स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग तो इस ‘एक चुनाव’ के आइडिया में समझा जाता है कि,तकनीकी रूप से संसद और विधानसभा चुनाव एक साथ संपन्न करवाए जा सकते हैं।
एक देश एक चुनाव से क्या फायदे होंगे?
रिपोर्ट में इस नीति के तहत फायदे को लेकर कहा गया है कि,एक देश-एक चुनाव बिल लागू होने से देश में हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि बचेगी.1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई थी.पीएम मोदी कह चुके हैं कि,इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी।
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‘काले धन पर भी लगेगा लगाम’
रिपोर्ट में एक देश एक चुनाव के पक्ष में दलील देते हुए बताया गया कि,इससे कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगने में मदद मिलेगी.चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर ब्लैक मनी के इस्तेमाल का आरोप लगता रहा है लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि,बिल लागू होने से इस समस्या से बहुत हद तक छुटकारा मिलेगा।
‘बार-बार चुनाव कराने से मिलेगा छुटकारा’
एक देश एक चुनाव के समर्थन के पीछे पक्ष का एक ये भी तर्क है कि,भारत जैसे विशाल देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं.इन चुनावों के आयोजन में पूरी की पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन बिल के लागू होने से चुनावों की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिल जाएगा.पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी।
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क्या कहता है सर्वे?
आईडीएफसी संस्थान के 2015 में किए गए एक सर्वे के हवाले से बताया गया कि,अगर देश में सभी चुनाव एक साथ चुनाव होते हैं तो 77 प्रतिशत संभावना है कि,मतदाता राज्य विधानसभा और लोकसभा में एक ही राजनीतिक दल या गठबंधन को चुनेंगे.वहीं चुनाव 6 महीने के अंतर पर होते हैं तो केवल 61 प्रतिशत मतदाता एक पार्टी को चुनेंगे।