Muharram 2024 :इस्लाम धर्म में रमजान को सबसे पवित्र महीना माना जाता है, जो पाक, नेकी और इबादत का महीना कहलाता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय दिन भर रोजा रखता है, रात को तरावीह की नमाज पढ़ता है और अल्लाह की इबादत में अपना समय व्यतीत करता है। रमजान के दौरान कुरान की तिलावत, दान-पुण्य, और जरूरतमंदों की मदद पर विशेष जोर दिया जाता है। रमजान के आखिरी दस दिन, जिसे “अशरा” कहते हैं, अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं, और इन दिनों की इबादत को बेहद खास माना जाता है।
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शिया और सुन्नी कैसे मनाते हैं मुहर्रम
रमजान के बाद इस्लाम में मुहर्रम का भी खास स्थान होता है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, मुहर्रम इस्लामिक नए साल का पहला महीना होता है और इसे पवित्रता, भक्ति और शहादत का महीना माना जाता है। मुहर्रम का दसवां दिन, जिसे ‘यौम-ए-आशूरा’ कहते हैं, विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन पैगंबर मोहम्मद के पोते, हजरत इमाम हुसैन, और उनके साथियों की करबला में शहादत की याद में मनाया जाता है।
मुहर्रम के दौरान मुस्लिम समुदाय इमाम हुसैन की कुर्बानी और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को याद करते हुए शोक मनाता है। इस महीने में जगह-जगह पर मजलिसें और मातम आयोजित किए जाते हैं। शिया समुदाय के लोग काले कपड़े पहनकर इमाम हुसैन की याद में मातम करते हैं, जबकि सुन्नी समुदाय इस दिन रोजा रखकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करता है।
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ताजिया जुलूस भी निकालते है
मुस्लमानों के लिए यह त्योहार एक शोक, गम और त्याग का त्योहार होता है. इसलिए इस दिन लोग काले रंग के कपड़े पहनते है और कर्बला की जंग में शहादत होने वालों का याद में मातम मनाते हुए ताजिया जुलूस निकालते है। लेकिन मोहर्रम को अलग-अलग करकों से मनाया जाता है। जैसे शिया समुदाय के लोगों द्वारा ताजिया निकाला जाता है, मजलिस पढ़ जाते है और दुख जाहिर किया जाता है तो वहीं सुन्नी समुदाय वाले रोजा रखकर नमाज अदा करते है।
यौम-ए-आशूरा क्या होता है?
यौम-ए-आशूरा मुहर्रम के 10वें दिन को कहा जाता है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे। इसलिए इस दिन को खुशी के उत्सव के बजाय शोक के रूप में मनाया जाता है।