Supreme Court On AMU: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक ऐतिहासिक फैसले में एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में 1967 का निर्णय खारिज कर दिया जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार किया गया था. कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से इस फैसले को पलटते हुए एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता दी. इस फैसले के बाद एआईएमआईएम (AIMIM) चीफ और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे भारत के मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन करार दिया.
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर ओवैसी का समर्थन
बताते चले कि, असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के माध्यम से एएमयू (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को बहाल करने के इस फैसले पर खुशी जताई है. उन्होंने लिखा, “यह भारत के मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. 1967 के फैसले ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज कर दिया था, जबकि वास्तव में यह एक अल्पसंख्यक संस्थान है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 यह अधिकार देता है कि अल्पसंख्यक समुदाय अपने शैक्षणिक संस्थान उस तरीके से स्थापित और संचालित कर सकते हैं, जैसा वे उचित समझते हैं.”
उन्होंने कहा कि इस निर्णय ने अल्पसंख्यकों के अपने समुदाय के लिए शिक्षण संस्थान स्थापित करने के अधिकार को फिर से मजबूत किया है. ओवैसी ने एएमयू के सभी छात्रों और शिक्षकों को इस महत्वपूर्ण फैसले के लिए बधाई दी और कहा कि विश्वविद्यालय के अस्तित्व का आधार यह है कि इसे अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित किया गया है, न कि किसी सरकारी निर्णय से.
बीजेपी की नीति पर ओवैसी का हमला
बताते चले कि, ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने इस मौके पर बीजेपी पर तीखा हमला बोला और कहा कि पार्टी ने हमेशा से एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध किया है. उन्होंने पूछा कि अब बीजेपी इस फैसले के बाद क्या कदम उठाएगी. ओवैसी का आरोप है कि बीजेपी सरकार ने एएमयू (AMU) , जामिया और मदरसों के खिलाफ भेदभाव करने का हरसंभव प्रयास किया है और उनके अधिकारों को कम करने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि बीजेपी को अब आत्मचिंतन करना चाहिए और इस दिशा में अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना चाहिए.
मोदी सरकार से भेदभाव समाप्त करने की अपील
असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने मोदी सरकार से एएमयू और अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों के साथ भेदभाव समाप्त करने की अपील की. उन्होंने कहा कि चूंकि एएमयू (AMU) एक केंद्रीय विश्वविद्यालय भी है, इसलिए इसे उचित समर्थन मिलना चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि जामिया और एएमयू को मिलने वाली वित्तीय सहायता में भेदभाव किया जा रहा है. ओवैसी ने बताया कि जामिया को प्रति छात्र 3 लाख रुपये और एएमयू को प्रति छात्र 3.9 लाख रुपये मिलते हैं, जबकि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) को प्रति छात्र 6.15 लाख रुपये मिलते हैं.
इसी कड़ी में उन्होंने आगे कहा कि जामिया और एएमयू ने राष्ट्रीय स्तर पर कई रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन किया है, और यदि इन विश्वविद्यालयों को पर्याप्त समर्थन मिले तो ये विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हो सकते हैं. असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि मोदी सरकार को इन संस्थानों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए और भेदभाव को समाप्त करना चाहिए.
एएमयू के किशनगंज सेंटर पर ध्यान देने की अपील
असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने एएमयू (AMU) के किशनगंज सेंटर का भी उल्लेख किया, जो कि कई वर्षों से खराब स्थिति में पड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि इस सेंटर पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि यह सही तरीके से कार्य कर सके. उन्होंने मोदी सरकार से अपील की कि एएमयू के इस सेंटर को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं और इसे जल्द से जल्द सुचारु रूप से संचालित किया जाए.
आपको बता दे कि, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसले ने न केवल एएमयू (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता दी है, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के महत्व को भी पुनः स्पष्ट किया है. अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उसे संचालित करने का अधिकार देता है. यह फैसला भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है और अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है.