प्रतापगढ़ संवाददाता गणेश राय
Pratapgarh: सेवा भारती द्वारा नगर में अवस्थित किशोरी सदन में सुसज्जित भव्य पंडाल में आयोजित श्री राम कथा के चौथे दिन भगवान की बाल लीलाओं का प्रसंग अद्भुत रहा। मानस मर्मज्ञ श्री दिलीप कृष्ण भारद्वाज जी ने बताया की नारायण के मानव रूप में अवतरित होने पर राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति की ख़ुशी में अपना सर्वस्व दान कर दिया। यही नहीं, दान प्राप्तकर्ता ने भी दान में मिला सब कुछ किसी अन्य को दान कर दिया।“सरबस दान दीन्ह सब काहू। जेहि पावा राखा नहि ताहू श्री अयोध्या धाम की शोभा वर्णनातीत हो चली थी। यहाँ तक कि भगवान सूर्य भी अयोध्या की शोभा को देखकर अपना रथ चलाना भूल गये और एक मास के बराबर का एक दिन हुआ था।
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कथा का सुचारू रूप से वर्णन किया
मास दिवस का दिवस भा मरम न जानइ कोइ और तो और, भगवान शिव ने पार्वती जी को बताया कि वे स्वयं भी काक भुसुंडि के साथ गुप्त रूप से अयोध्या की शोभा एवं भगवान को निहारने के लिए पधारे थे। कथा को विस्तार देने के क्रम में श्री दिलीप कृष्ण जी द्वारा भगवान के नामकरण की कथा का सुचारू रूप से वर्णन किया गया। गुरु वशिष्ठ ने चारों भाइयों का नाम उनके गुणों के अनुरूप क्रमश: राम, भरत, शत्रुघ्न एवं लक्ष्मण रखा। माँ कौशल्या के मतिभ्रम का प्रसंग सुनाया गया ।”इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा , मतिभ्रम मोर कि आन विशेखा ।” और तब, “देखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखण्ड, रोम रोम प्रति लागहि कोटि कोटि ब्रह्मन्ड।”
चारों भाइयों के यज्ञोपवीत की कथा सुनायी गयी।यज्ञोपवीत की महत्ता का वर्णन करते हुए श्री दिलीप कृष्ण जी ने बताया कि यज्ञोपवीत के तीन सूत्र क्रमशः मातृ ऋण, पितृ ऋण एवं गुरु ऋण के द्योतक हैं। यही नहीं, शौच के समय कान पर चढ़ाया गया यज्ञोपवीत हृदयाघात, पक्षाघात इत्यादि से रक्षा करता है। यह तथ्य चिकित्सा वैज्ञानिकों द्वारा भी सिद्ध किया जा चुका है।
शिक्षा ग्रहण करने का प्रसंग सुनाया
इसके बाद भगवान राम का भाइयों के साथ गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण करने का प्रसंग सुनाया गया । गुरुकुल से वापस आकर जिस आचरण का भगवान राम पालन करते थे उसका अति सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया गया, यथा, “ प्रात कल उठि के रघुनाथा, मातु पिता गुरु नावाहि माथा।” इत्यादि ।महर्षि विश्वामित्र अपनी यज्ञ की रक्षा के लिये राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को माँगने आते हैं । राजा पुत्रमोह में मना करने का प्रयास करते हैं किंतु गुरु वशिष्ठ के समझाने पर राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र को सौंप देते हैं। आश्रम के रास्ते में ताड़का राक्षसी धावा बोलती है जिसे भगवान राम मार देते हैं।
मारीच को वाण मारकर सौ योजन दूर समुद्र के पार गिरा देते हैं। सुबाहु को भी मार देते हैं। शेष राक्षसों को लक्ष्मण जी मार डालते हैं। विश्वामित्र जी का यज्ञ निर्विघ्न समाप्त होता है । अब महाराजा जनक का धनुष मख देखने हेतु विश्वामित्र जी का बुलावा आता है। महर्षि, राम तथा लक्ष्मण को साथ लेकर मिथिला के लिये प्रस्थान करते हैं । रास्ते में पाषाण रूपा गौतम पत्नी अहिल्या का भगवान राम अपने चरण रज से उद्धार करते हैं ।इस प्रकार, महर्षि दोनों भाइयों के साथ गंगा जी को पार करके जनक पुर में प्रवेश करते हैं।
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पूर्व मुख्य यजमान श्री सिया राम गुप्ता जी ने
कथा प्रारंभ होने के पूर्व मुख्य यजमान श्री सिया राम गुप्ता जी ने विधिवत आरती , पूजन किया। संपूर्ण वातावरण राम मय होने के फलस्वरूप श्रोताओं में अद्भुत राम भक्ति का संचार आलोकित हो रहा था ।आज की कथा में राष्ट्रीय स्वयं संघ, काशी प्रांत के प्रांत प्रचारक रमेश जी, गोरक्ष प्रान्त के प्रांत शारीरिक प्रमुख रवि जी, मा. ज़िला संघ चालक चिंता मानी ,पूर्व मंत्री शिवा कांत ओझा, विधायक राजेंद्र मौर्य,महंथ मनोज ब्रह्मचारी, दिनेश गुप्ता, भाजपा अध्यक्ष आशीष श्रीवास्तव, ओम प्रकाश त्रिपाठी, डॉ अखिलेश पांडेय, गोविंद खण्डेलवाल,नीतेश खण्डेलवाल, राज नारायण सिंह, गिरजा शंकर मिश्र, शिशिर खरे, आशीष जायसवाल,अनामिका उपाध्याय, शकुंतला खंडेलवाल, साक्षी खंडेलवाल, बबीता खण्डेलवाल, अनुराधा केसरवानी, मिली खण्डेलवाल, मीनू खंडेलवाल, भूपेश त्रिपाठ, अमित शुक्ला आदि उपस्थित रहे।