UPSC Lateral Entry: सितंबर 2020 में, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने तीन नए कृषि कानूनों को पेश किया, जिनके खिलाफ साल भर तक चले किसान आंदोलन के बाद सरकार को आखिरकार घुटने टेकने पड़े और उन कानूनों को वापस लेना पड़ा। इसी तरह, अगस्त 2024 में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने ‘लेटरल एंट्री’ (Lateral Entry) के जरिए 45 पदों को भरने के लिए विज्ञापन जारी किया। लेकिन इस बार भी विरोध के स्वर तेज होते ही महज दो दिनों में सरकार ने इस भर्ती को रद्द करवा दिया। यह घटनाएं यह दिखाती हैं कि केंद्र सरकार के काम करने का तरीका अब बदल गया है।
भाजपा की बदलती सियासत
2020 में जब भाजपा के सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने कृषि कानूनों के विरोध में गठबंधन से नाता तोड़ा था, तब भी भाजपा पर कोई असर नहीं पड़ा था। लेकिन 2024 में जैसे ही एनडीए के कुछ दलों ने तेवर दिखाए, भाजपा को झुकना पड़ा। यह बदलाव बताता है कि 2020 में अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी की हालत अब 2024 में कमजोर हो चुकी है। अब भाजपा के पास लोकसभा में 240 सीटें हैं, और उसे अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए गठबंधन के सहयोगियों का साथ जरूरी हो गया है।
वक्फ (संशोधन) बिल और लेटरल एंट्री के मामलों में सरकार के सामने आई चुनौती यह बताती है कि अब बीजेपी को गठबंधन की राजनीति के दबाव का सामना करना पड़ रहा है। वक्फ बिल पर जदयू, एलजेपी (रामविलास), टीडीपी सहित कई सहयोगी दलों ने अपनी चिंता जाहिर की थी, जिसके बाद सरकार ने यह बिल संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया था।
लेटरल एंट्री में आरक्षण लागू
इसके बाद, जब लेटरल एंट्री के जरिए 45 पदों की भर्ती का विज्ञापन जारी हुआ, तो जदयू और एलजेपी के विरोध के बाद सरकार ने महज एक दिन में इस भर्ती को रद्द करवा दिया। इन सहयोगी दलों ने इसे अपनी ‘जीत’ करार दिया। एलजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एके बाजपेयी ने इसे गठबंधन राजनीति की जीत बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी चिंताओं को संज्ञान में लिया और विज्ञापन को वापस लेने का आदेश दिया। जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने इसे नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले सामाजिक न्याय आंदोलन की जीत करार दिया।
लेटरल एंट्री में आरक्षण नहीं था, जो कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष और सहयोगी दलों का सबसे बड़ा हथियार बना। विपक्ष के साथ-साथ एनडीए के सहयोगी दलों ने भी इसे ‘सामाजिक न्याय के खिलाफ’ करार दिया। बीजेपी ने यह महसूस किया कि यह मुद्दा चुनावी नुकसान का कारण बन सकता है, इसलिए उसने न केवल भर्ती को रद्द करने का निर्णय लिया, बल्कि लेटरल एंट्री में आरक्षण लागू कर एक कदम और आगे बढ़ाया।
गठबंधन की मजबूरी में बदली भाजपा की रणनीति
महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा जैसे राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहती। इन राज्यों में आरक्षण का बड़ा मुद्दा है और भाजपा के लिए यह चुनावी नैरेटिव को नुकसान पहुंचा सकता है। इसीलिए, भाजपा ने समझदारी से गठबंधन पॉलिटिक्स के दबाव में झुकने का निर्णय लिया है ताकि उसके राजनीतिक समीकरण मजबूत बने रहें। 2024 की यह घटनाएं बताती हैं कि अब बीजेपी को गठबंधन पॉलिटिक्स का नया स्वाद चखना पड़ रहा है।
जहां 2020 में अपने दम पर सत्ता में अड़ी रहने वाली भाजपा अब अपने सहयोगियों की नाराजगी से डर रही है। भाजपा के इस बदले हुए रुख का कारण उसकी लोकसभा में घटती संख्या और गठबंधन के सहयोगियों की बढ़ती जरूरत है। अब, भाजपा को हर कदम पर अपने सहयोगियों को साथ लेकर चलना होगा, जो कि गठबंधन राजनीति का सबसे बड़ा सबक है।