UP News: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले की नैनी सेंट्रल जेल में जनवरी 2014 से आजीवन कारावास की सजा काट रहे भाजपा के पूर्व विधायक उदयभान करवरिया को गुरुवार सुबह रिहा कर दिया गया हैं। उनकी रिहाई के समय उनकी पत्नी पूर्व बीजेपी विधायक नीलम करवरिया और अन्य समर्थक जेल के बाहर मौजूद थे। राज्य सरकार ने अच्छे चाल-चलन के आधार पर उनकी सजा में छूट देने का आदेश दिया था, जो 19 जुलाई को जारी हुआ था।
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झूंसी हत्याकांड में उम्र कैद
उदयभान करवरिया, उनके बड़े भाई पूर्व बसपा सांसद कपिल मुनि करवरिया, छोटे भाई पूर्व एमएलसी सूरजभान करवरिया, और रिश्तेदार रामचंद्र त्रिपाठी (कल्लू) को झूंसी से समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित हत्याकांड मामले में उम्र कैद की सजा मिली थी। करवरिया भाइयों ने दिनदहाड़े जवाहर यादव की 13 अगस्त 1996 को सिविल लाइंस क्षेत्र में गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना के साथ ही इलाहाबाद में पहली बार एके-47 का इस्तेमाल हुआ था।
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सजा का विवरण और सियासी संदर्भ
उदयभान करवरिया ने वर्ष 2014 में आत्मसमर्पण किया था, जब उनके खिलाफ वारंट जारी हो गया था। चार नवंबर 2019 को अदालत ने करवरिया परिवार और उनके सहयोगियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस हत्या का कारण बालू के ठेकों पर वर्चस्व की अदावत बताया गया था। उदयभान करवरिया की रिहाई के बाद यूपी की राजनीति में हलचल मच गई है। यह पहला मौका है जब इतने विवादित मामले में किसी दोषी को समय से पहले रिहाई मिली है। इस फैसले पर सवाल उठने लगे हैं और इसका असर आगामी चुनावों और सियासी समीकरणों पर पड़ सकता है।
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विजमा यादव की प्रतिक्रिया
पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की पत्नी विजमा यादव ने उदयभान करवरिया की रिहाई पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि वह इस फैसले को न्यायालय में चुनौती देंगी। उनका मानना है कि रिहाई के समय पूर्व विधायक के अच्छे चाल-चलन को लेकर दिए गए आदेश से न्याय प्रभावित हुआ है।
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सियासी समीकरणों में बदलाव की संभावना
उदयभान करवरिया की रिहाई के बाद, यूपी की सियासत में संभावित बदलाव की चर्चा जोरों पर है। विशेष रूप से फूलपुर उपचुनाव में इस फैसले का असर देखा जा सकता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि करवरिया की रिहाई ने क्षेत्रीय सियासी समीकरण को हिला दिया है और इसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की समय पूर्व रिहाई ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दिया है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि न्यायिक प्रक्रिया और सियासी दबाव के बीच की खाई कितनी गहरी हो सकती है। आने वाले दिनों में इस रिहाई के असर को देखने के लिए राजनीतिक गलियारों की निगाहें टिकी रहेंगी।
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