Sanjay Nishad News: उत्तर प्रदेश उपचुनाव में भाजपा (BJP) ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, लेकिन इस बार सहयोगी दलों को खासा झटका लगा है। सिर्फ एक सीट राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के खाते में गई है, जबकि भाजपा के अन्य सहयोगी दलों को एक भी सीट नहीं दी गई। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद (Sanjay Nishad) ने कटेहरी और मझवां सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए भाजपा से सीटों की मांग की थी, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी।
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संजय निषाद के दिल्ली-लखनऊ दौरे बेकार
संजय निषाद अपनी पार्टी के लिए सीटों की मांग को लेकर लखनऊ से दिल्ली तक लगातार भाजपा के दिग्गज नेताओं के पास पहुंचते रहे। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल के साथ उनकी कई दौर की बैठकें हुईं। उन्होंने भाजपा के समक्ष यह प्रस्ताव भी रखा कि या तो भाजपा उनके उम्मीदवारों को टिकट दे या फिर भाजपा का उम्मीदवार निषाद पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़े। हालांकि, भाजपा ने संजय निषाद के सभी प्रस्तावों को सिरे से खारिज कर दिया।
लखनऊ में लगे ‘सत्ताईस के खेवनहार’ के पोस्टर
भाजपा से कोई सकारात्मक जवाब न मिलने के बाद संजय निषाद ने लखनऊ (Lucknow)में अपनी नाराजगी का इज़हार कुछ अलग तरीके से किया। निषाद पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय सिंह ने 5 केडी और भाजपा कार्यालय के बाहर संजय निषाद के पोस्टर लगवाए, जिसमें उन्हें ‘सत्ताईस के खेवनहार’ के रूप में दिखाया गया। इन पोस्टरों के माध्यम से संजय निषाद ने यह जताने की कोशिश की कि उनका समुदाय 27% वोट शेयर के साथ भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।
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भाजपा ने सीटों से किया किनारा
13 अक्टूबर की एक बैठक के बाद, संजय निषाद ने भाजपा की नीति पर असंतोष जताते हुए अपने ही सिंबल पर चुनाव लड़ने का संकेत दिया था। उन्होंने कहा कि भाजपा को गठबंधन धर्म निभाना चाहिए और कटेहरी और मझवां सीटें निषाद पार्टी को देनी चाहिए थी। इसके साथ ही संजय निषाद ने बयान दिया कि यदि भाजपा ने उनकी पार्टी के साथ सही तरीके से तालमेल नहीं बिठाया, तो उनकी पार्टी खुद के सिंबल पर उपचुनाव में उतर सकती है।
एससी वर्ग में निषादों को शामिल करने की मांग पर बढ़ी उम्मीदें
हालांकि, बाद में संजय निषाद (Sanjay Nishad) ने अपनी नाराजगी को शांत करते हुए कहा कि निषाद पार्टी इस बार उपचुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी और गठबंधन का धर्म निभाएगी। उन्होंने भाजपा के सामने निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मुद्दा भी रखा। संजय निषाद ने उम्मीद जताई कि दिवाली के बाद भाजपा सरकार इस मांग पर गंभीरता से विचार करेगी और निषाद समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की दिशा में कदम बढ़ाएगी।
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संजय निषाद की बढ़ती नाराजगी पर भाजपा का ठंडा रुख
राजनीतिक गलियारों में संजय निषाद (Sanjay Nishad) की इस पहल को भाजपा के साथ उनके संबंधों में खटास के रूप में देखा जा रहा है। निषाद पार्टी (Nishad Party) के साथ भाजपा का यह रवैया यह दिखाता है कि भाजपा संगठन ने उपचुनाव में निषाद पार्टी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है। हालांकि, अंत में संजय निषाद को यह समझते देर नहीं लगी कि भाजपा नेतृत्व ने इस बार उपचुनाव में उन्हें पूरी तरह से अलग रखने का निर्णय ले लिया है।
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समर्थन के सिवाय नहीं बचा कोई विकल्प
भाजपा से आश्वासन न मिलने के बाद संजय निषाद की पार्टी के पास समर्थन के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा। एक तरफ भाजपा जहां सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने में लगी रही, वहीं निषाद पार्टी को इस बार एक भी सीट नहीं मिली। संजय निषाद का यह समझना मुश्किल नहीं था कि अब उनके पास भाजपा को समर्थन देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है।