Gayatri Prajapati News: पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से बड़ा झटका लगा है। आज दुराचार मामले की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने उनकी बेल याचिका को खारिज कर दिया। उल्लेखनीय है कि प्रजापति पर 2017 में बलात्कार का आरोप लगा था और वह इस समय आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मो. फैज आलम की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और फैसला सुनाते हुए उनकी जमानत याचिका को ठुकरा दिया।
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दुर्दांत आरोपों का सामना कर रहे पूर्व मंत्री
गायत्री प्रजापति पर बलात्कार, आपराधिक साजिश और आपराधिक धमकी जैसे संगीन आरोप लगे हैं। वह समाजवादी पार्टी (सपा) के शासन में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं, लेकिन अब उन्हें अपनी राजनीतिक विरासत के साथ-साथ अपनी स्वतंत्रता भी गंवानी पड़ी है। पिछले सात वर्षों से वह जेल में हैं और उनके खिलाफ लगे आरोपों ने उनके भविष्य पर काली छाया डाल दी है।
कोर्ट की सुनवाई
कोर्ट में हुई सुनवाई में प्रजापति और उनके साथियों ने जेल में बिताई गई अवधि को जमानत का आधार बताते हुए अपना पक्ष रखा। हालांकि, राज्य सरकार ने जमानत दिए जाने का विरोध किया और अदालत को बताया कि प्रजापति जैसे आरोपी को जमानत देना समाज के लिए खतरा हो सकता है। कोर्ट ने इन तर्कों को ध्यान में रखते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी।
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सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
इस मामले की गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 18 फरवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता की याचिका पर गायत्री प्रजापति और अन्य आरोपियों के खिलाफ थाना गौतमपल्ली में गैंगरेप, जानमाल की धमकी और पॉक्सो एक्ट के तहत FIR दर्ज करने का आदेश दिया था। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि गायत्री प्रजापति और उनके साथियों ने उसकी नाबालिग बेटी के साथ भी जबरन शारीरिक संबंध बनाए। इसके बाद 18 जुलाई, 2017 को पॉक्सो की विशेष अदालत ने सभी आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की कई धाराओं के तहत आरोप तय किए थे।
गायत्री प्रजापति का भविष्य अंधकार में
गायत्री प्रजापति का मामला न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन पर बल्कि भारतीय राजनीति पर भी गहरा असर डाल रहा है। जब राजनीति में ऐसे आरोपों का सामना करने वाले नेताओं की बात होती है, तो यह पूरे सिस्टम की ईमानदारी और विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। क्या यह मामला समाजवादी पार्टी के लिए संकट बन जाएगा या फिर इससे उबरने का एक अवसर मिलेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
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