Input: Nandani…
तिरंगा देश की आन बान और शान
कैसा रहा भारतीय राष्ट्रीयध्वज का इतिहास
साल 1857 में पहली बार हिंदुस्तानमें फहराया गया था झंडा
साल 1904 से 1906 के बीच में बनाया गया दुसरा ध्वज
कैसे रिप्लेस किया गया चरखा
1907 में खादी के कपड़े पर बना था झंडा
1931 में कांग्रेस ने पिंगलि वेंकैया के ध्वज को दी मान्यता
तिरंगा मतलब देश की आन बान और शान तिरंगा कितना महत्वपूर्ण है, ये एक भारतीय बखूबी जानता है भारत का झंडा देश के लोगों के बीच एकता, शांति, समृद्धि और विकास को दर्शाता है, लेकिन क्या आप जानते है कि भारतीय राष्ट्रीय ध्वजइससे पहले कितनी बार बनाया गया था। फिरजाकर तीन रंगों से मिलकर बनाया गया झंडा तिरंगा , तो आइये डालते है एक नजर भारत के ध्वज के इतिहास पर।
एकता, शांति, समृद्धि और विकास को दर्शाता है…
साल 1857 में पहली बार हिंदुस्तान में आजादी की संगठित लड़ाई लड़ी गई। सैनिकों की तरफ से हुए इस विद्रोह को अंग्रेजोंने बेरहमी से कुचल दिया था। भारत के इस प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान जो झंडा राष्ट्रीय ध्वज के रूप में इस्तेमाल किया था इसमें हरे रंग की पृष्ठभूमि में एक चांद और कमल का फूल बना हुआ था। बताया जाता है, कि इसे बहादुर शाह जफर ने फहराया था। साल 1904 से 1906 के बीच स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने एक ध्वज तैयार किया था।
ध्वज पर बांग्ला में ‘बोंदे मातोरम’ लिखा था। इसमें एक वज्र भी बना था, जो इंद्र का अस्त्र माना जाता है। यह देश की शक्ति का प्रतीक था, बीच में एक कमल भी बना था, जिसे शुद्धता का प्रतीक बताया गया। निवेदिता के झंडे के बाद साल 1906 में एक और राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया इसमें तीन पट्टियां थीं, जिसके रंग नीला ,पीला ,और लाल थे, सबसे ऊपर की पट्टी पर कमल के फूल बने थे। मध्य में देवनागरी में वंदे मातरम लिखा था और नीचेवाली पट्टी पर चांद और सूर्य बने थे। 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक कोलकाता में इसे फहराया गया था।
बर्लिम कमिटी फ्लैग…
2साल 1907 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में भीकाजी कामा ने कुछ निर्वासित क्रांतिकारियों के साथ यह ध्वज फहराया था। यह कलकत्ता फ्लैग जैसा ही दिखता था। बस सबसे ऊपर वाली पट्टी में कमल की जगह सात सितारे लगा दिए गए थे इसे बर्लिम कमिटी फ्लैग भी कहा जाता है, इसके बाद साल 1916 में लेखक और जियोफिजिसिस्ट पिंगलि वेंकैया गांधी जी से मिले और उन्हें एक ध्वज दिखाते हुए उसे अप्रूव करने को कहा। यह ध्वज खादी के कपड़े पर बना था, जिसमें तीन रंग की पट्टियां थीं और बीच में चरखा बना हुआ था। चरखा भारत के आर्थिक उन्नयन का प्रतीक था। इसमें दो हरा और केसरियां रंग की पट्टियां थीं।
5 लाल और चार हरे रंग की पट्टियां थीं…
गांधी जी ने इस झंडे को मंजूरी देने से इनकार कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि हरा रंग मुस्लिम और केसरिया हिंदू धर्म से संबंधित है। ऐसे में इस झंडे में देश के बाकी धर्मों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने होमरूल लीग के साल 1917 में बनाए इस राष्ट्रीय ध्वज को फहराया था। इस झंडे में ऊपर अंग्रेजों का ध्वज यूनियन जैक बना हुआ था। बाकी के झंडे में 5 लाल और चार हरे रंग की पट्टियां थीं। इनमें सात सितारे भी लगे थे, जो सप्तर्षियों के प्रतीक बताए गए। इसके एक कोने पर चांद-तारा भी बना हुआ था। यह झंडा लोगों में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ।
दो समुदायों हिंदू और मुस्लिम को रिप्रेजेंट करते थे…
विजयवाड़ा में साल 1921 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस दौरान आंध्र के एक युवा ने एक झंडा तैयार किया और गांधीजी के पास लेकर गया। इस झंडे में दो रंग थे। दोनों रंग दो समुदायों हिंदू और मुस्लिम को रिप्रेजेंट करते थे। इस पर गांधीजी ने सुझाव दिया कि भारत के बाकीसमुदायों की प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें सफेद रंग की पट्टी भी जोड़ दिया जाए। विजयवाड़ा के झंडे से बहुत से लोग नाखुश थे। ऐसे में पिंगलि वेंकैया ने तीन रंगो का इस्तेमाल कर एक नया ध्वज तैयार किया, जिसमें केसरिया, हरा और सफेद रंग थे। बीच में चरखा बना हुआ था। 1931 में कांग्रेस ने इस ध्वज को मान्यता दी और इसे कमिटी के आधिकारिक ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया। साल 1931 भारतीय ध्वजों के इतिहास में एक उल्लेखनीय वर्ष के रूप में दर्ज है। इस ध्वज को सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिंद फौज ने भी अपनाया था।
सदियों के संघर्ष के बाद वह दिन भी आने वाला था, जब भारत को अंग्रेजों से पूरी तरह आजादी मिलने वाली थी। इस बीच 22 जुलाई 1947 को राजेंद्र प्रसाद की अगुआई में गठित कमिटी ने स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज को मान्यता दी। इस झंडे में तीन रंग केसरिया, हरा और सफेद बरकरार रखे गए थे। चरखे की जगह पर सम्राट अशोक के धर्मचक्र को रिप्लेस कर दिया गया था। इस तरह से स्वतंत्र भारत को उसका राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा मिल गया था।
हिंदू- मुस्लिम का प्रतीक और सफेद रंग…
भारत को आजादी मिलने से पहले संविधान सभा ने जून 1947 में राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली समिति को भारत के राष्ट्रीय ध्वज की परिकल्पना प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी दी। समिति के सुझाव के अनुसार चरखे की जगह अशोक स्तम्भ के धम्म चक्र को ध्वज पर जगह दी गयी। तिरंगे में मौजूद तीनों रंगों का अपना विशेष महत्व है। केसरिया रंग साहस और बलिदान का प्रतीक है। सफेद रंग शांति और सच्चाई को दर्शाता है। वहीं हरा रंग संपन्नता का प्रतीक है। जब तिरंगा डिजाइन किया गया था, तब लाल और हरे रंग को हिंदू- मुस्लिम का प्रतीक और सफेद रंग को अन्य धर्मों के प्रतीक के तौर पर प्रस्तुत किया गया था। तिरंगे में सफेद रंग पर नीले रंग में सम्राट अशोक के धर्म चक्र चिन्ह के तौर पर बना है। अशोक चक्र का कर्तव्य का पहिया कहा जाता है।