Prime Chaupal: ग्रामीण विकास को लेकर सरकारें बड़े-बड़े दावे करती हैं और कई योजनाएं भी बनाती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि गांवों के विकास के लिए अभी भी काफी काम किया जाना बाकी है. यह सच है कि कुछ क्षेत्रों में सराहनीय प्रगति हुई है और उसका सकारात्मक प्रभाव भी नजर आता है, मगर इस विकास को व्यापक और संतुलित रूप देने की आवश्यकता है.सड़कें और पेयजल जैसी सुविधाओं में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम क्षेत्रों में अभी भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं.
गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे मलिहाबाद के ग्राम पंचायत दौलतपुर में जब प्राइम टीवी की टीम अपने विशेष कार्यक्रम प्राइम चौपाल के तहत पहुंची, तो गांव की स्थिति देखकर दंग रह गई. जब प्राइम टीवी के कैमरे ने जमीनी हकीकत को अपने कैमरे में कैद किया, तो तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही थी. गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं और विकास की असली रफ्तार यहां अब भी पहुंचना बाकी है.
गांवों की उधड़ चुकी दीवारें
आजादी के दशकों बाद के गांवों की उधड़ चुकी दीवारें, गंदगी का अंबार और सुविधाओं से अछूते लोग.आजादी के बाद सरकारों ने तमाम ऐलान किए वादे किए और विकास के तमाम दावे भी किए लेकिन धरातल स्तर पर हकीकत आज भी कुछ और नजर आती है और इसी के मद्देनजर हमने मुहिम छेड़ी जमीनी स्तर पर गांव के विकास की नब्ज़ टटोलने की और इस मुहिम के तहत जब प्राइम टीवी की टीम गांव के बीच पहुंची तो सरकारी दावों और गांव की असलियत के बीच जमीन आसमान का अंतर सामने आ गया.
विकास के नाम पर केवल औपचारिकता

बताते चले कि, सरकार गांवों के विकास के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है लेकिन गांवों में विकास के नाम पर केवल औपचारिकता है. आजादी के इतने सालों बाद भी गांव अपने कायाकल्प के लिए अच्छे दिनों का इंताजार कर रहे हैं. प्राइम टीवी की टीम जब मलिहाबाद के ग्राम पंचायत दौलतपुर पहुंची तो वहां की बदहाल स्थिति को देखकर गांव के लोगों से वहां के विकास कार्यों के बारे में जानने की कोशिश की.
पानी की जगह नालियों में महज गंदगी

आपको बता दे कि, गांव में सौंदर्यीकरण के नाम पर तालाब में कचरा फेंका जा रहा है. पानी की जगह नालियों में महज गंदगी दिखाई दी.किसी को पेंशन नहीं मिल रही है तो कोई शौचालय की सुविधा से अछूता है. छप्पर तले गुजर बसर करने वालों के सिर पर छत नहीं है लेकिन गांव के विकास की जिम्मेदारी पाए हुए लोगों को को इन सब चीजों से कोई लेना देना नहीं है.
सरकारी फंड, गांवों की झोली खाली

सरकार के खजाने से पैसा निकलता है लेकिन गांव तक पहुंचते पहुंचते दम तोड़ देता है. इस दौरान सरकारी पैसे का किस कदर बंदरबांट होता है उसकी कोई हद नहीं है. ऊपर के अधिकारी से लेकर नीचे गांव के प्रधान तक हर कोई सरकारी पैसे का भरपूर मजा लेते हैं और गांव के लोगों के हिस्से में आता है महज बचा कुचा पैसा. वो जनता जो सरकारी पैसे के पूरे हिस्से की हकदार होती है उसके हिस्से में चंद हिस्सा ही आता है या कभी कभी तो जनता पूरी तरह से उस पैसे और योजना से महरूम रह जाती है.फिलहाल अच्छे दिनों का सपना सजाए हुए गांवों के असलियत में अच्छे दिन कब आते हैं ये देखने वाली बात होगी.