छत्तीसगढ़ : जाँजगीर महाराष्ट्र के अमरावती के छोटे से गॉंव पथरोट में 29 अप्रैल 1935 को जन्मे पद्मश्री डॉ. दामोदर गणेश बापट जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है, घर परिवार त्याग के अपना संपूर्ण जीवन समाज के लिए समर्पित करने वाले बापट जी 1962 में पहली बार जब आश्रम देखनें पहुंचे तब से वही के होंके रह गए है।
युवा प्रंबधक के समक्ष कई चुनौतियां
समय के साथ संस्था के संस्थापक स्वर्गीय कात्रेजी और अशक्त होते गए तब बापट जी इस सेवाश्रम का प्रबंधन अपने हाथ में लेकर कात्रेजी के सपने को पूरा करने में जुट गए। इस युवा प्रंबधक के समक्ष कई चुनौतियां थी उन दिनों स्वस्थ हो चुकें कुष्ठ रोगी भी मानसिक तनाव के शिकार थे क्योंकि वे सभी अपने आप को नकारा व समाज के लिए अभिशाप मानते थें किंतु बापट जी ने मरीजों की स्वयं मरहम पट्टी कर बाक़ी समाज को यह संदेश दिया की छूने या उनके साथ बातचीत करने से कुष्ठ नहीं फैलता।
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- वे देशभर घुमकर ना सिर्फ आश्रम के लिए धन संग्रह करतें रहें बल्कि कुष्ठ के बारे में समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास करतें रहें।
मरीज़ मन से भी पूरी तरह स्वस्थ हो जाए इसलिए आश्रम में सब्जियां उगाने से लेकर चाक बनाने, दरी, रस्सी बनानें जैसे काम शुरू किये आश्रम पर खुद को भार समझने वालें रोगी जब खुद काम करने लगे तो संतोष से उनका चेहरा खिल उठे!- आजीवन सेवा कार्य में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले बापट जी अन्तिम क्षणों में भी अपना शरीर दूसरों की भलाई के लिए सिम्स हॉस्पिटल बिलासपुर में अपना देह दान कर दिए।
- समाज में उत्कृष्ट योगदान हेतु वर्ष 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया।
- आज उनकी चौथी पुण्यतिथि के अवसर पर संस्था में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित हुए तथा संस्था के सचिव श्री सुधीर देव जी, समस्त आश्रम के कार्यकताओं व रुग्ण माता बहनों द्वारा उनके इच्छा अनुरुप बनें स्मृति स्थल श्री तुलसी वृंदावन में पुष्प अर्पित कर उन्हें स्मरण किये।