Ordinance: दिल्ली सरकार में LG बनाम आप सरकार के अधिकार को लेकर 8 साल के लम्बे संघर्ष के बाद केजरीवाल सरकार को राहत की सांस मिली जब मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 11 मई को फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली में जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सारे प्रशासनिक फैसले लेने के लिए दिल्ली की सरकार स्वतंत्र होगी। अधिकारियों और कर्मचारियों का ट्रांसफर-पोस्टिंग भी कर पाएगी।
वही कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश ले आई जिसे लेकर आम आदमी पार्टी विरोध कर रही है आप सरकार का कहना है केन्द्र सरकार दिल्ली के जनता औऱ राज्य सरकार पर तानाशाही कर रही है वही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अध्यादेश पर समर्थन के लिए तमाम विपक्ष दलों से मुलकात की हैं।
आपको बता दें केंद्र ने ‘गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली ऑर्डिनेंस, 2023’ लाकर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार वापस उपराज्यपाल को दे दिया। उपराज्यपाल इन तीन मुद्दों को छोड़कर दिल्ली सरकार के बाकी फैसले मानने के लिए बाध्य हैं। इस फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती उपराज्यपाल के कार्यकारी नियंत्रण में थे।
वही इस अध्यादेश के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन किया गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और गृह सचिव को इसका सदस्य बनाया गया है। मुख्यमंत्री इस अथॉरिटी के अध्यक्ष होंगे और बहुमत के आधार पर यह प्राधिकरण फैसले लेगा। हालांकि, प्राधिकरण के सदस्यों के बीच मतभेद होने पर दिल्ली के उपराज्यपाल का फैसला अंतिम माना जाएगा…
केजरीवाल सरकार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
आपको बता दें जिस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया था, वह केजरीवाल सरकार के पक्ष में था। ऐसे में इसे कानून में संशोधन करके या नया कानून बनाकर ही पलटा जाना संभव था। संसद उस वक्त चल नहीं रही थी, ऐसे में केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर इस कानून को पलट दिया। छह महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों में किसी भी अध्यादेश को पारित कराना जरूरी होता है। इसीलिए मंगलवार को सरकार लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 लेकर आई।
अब केजरीवाल सरकार पुरी कोशिश कर रही है कि ये बिल संसद में पास ना हो पाए वही बीजेपी सरकार लोकसभा में ये बिल आसानी से पास करा सकती है क्योकि लोकसभा कि बात करे तो बहुमत का आंकडा 270 इसे कही ज्यादा 333 आंकडा फुल बहुमत के साथ है वही बात करे आप पार्टी की तो इनके पास 143 बहुमत जिसे लोकसभा में बिल को रोकना आप पार्टी के लिए मुश्किल हो सकता पर बात करे राज्यसभा कि तो इसमे बहुमत के लिए 123 आंकडा जिसमें बीजेपी के पास 105 बहुमत वही आप सरकार के पास 93 बहुमत है,
जिसे राज्यसभा मे आप सरकार के लिए राहत है कायस लगाया जा सकता है कि आप सरकार राज्यसभा में बिल पास कराने के लिए पुरी कोशिश करेंगे वही बीजेपी सरकार राज्यसभा में भी बिल पास कराने को लेकर अश्वसत है
नया बिल अध्यादेश से कितना अलग
आपको बता दें विधेयक में अध्यादेश के सभी प्रमुख प्रावधान होंगे। हालांकि, विधेयक में अध्यादेश में शामिल उस प्रावधान का कोई जिक्र नहीं है जो राज्य विधानसभा को ‘सेवाओं’ पर कोई कानून बनाने से रोकता है।
यह विधेयक अखिल भारतीय सेवाओं और दिल्ली और अंडमान निकोबार द्वीप सिविल सेवाएं से संबंधित अधिकारियों की नियुक्ति पर केंद्र सरकार को दिल्ली सरकार पर प्रमुखता देगा। इसमें अध्यादेश में उल्लिखित उस प्रावधान को हटा दिया गया है, जिसके तहत ‘सेवाओं’ पर कोई कानून बनाने में राज्य विधानसभा की कोई भूमिका नहीं थी।
विधेयक में दिल्ली सरकार के लिए केंद्र सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए अध्यादेश के तहत अनिवार्य आवश्यकता को हटा दिया गया। बिल में केंद्र सरकार को भेजे जाने वाले प्रस्तावों या मामलों से संबंधित मंत्रियों के आदेशों/निर्देशों को एलजी और दिल्ली के मुख्यमंत्री के समक्ष रखने की अनिवार्यता को भी हटा दिया गया।
अध्यादेश से अलग बिल में एनसीटी सरकार को किसी भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या वैधानिक निकाय में एलजी द्वारा नियुक्ति के लिए उपयुक्त व्यक्तियों के एक पैनल की सिफारिश करने की अनुमति देने के लिए बिल की धारा 45 डी में उप-धारा (बी) जोड़ा गया है। अध्यादेश में (धारा 45डी के तहत) ऐसी सभी शक्तियां राष्ट्रपति या दूसरे शब्दों में केंद्र के पास थीं।
वही प्रावधान में कहा है कि राज्य सरकार की सिफारिशें करने की शक्ति केवल राज्य विधानसभा द्वारा निर्मित और शासित निकायों तक ही सीमित होगी। साथ ही, इस मामले में दिल्ली सरकार की भूमिका सिफारिश करने तक ही सीमित रहेगी। विधेयक एलजी को सिफारिशों को अस्वीकार करने या संशोधन की मांग करने की शक्ति प्रदान करेगा। विधेयक के अनुसार, दिल्ली सरकार में वरिष्ठ अधिकारियों के सभी स्थानांतरण और पोस्टिंग दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति द्वारा की जाएगी।