Independence Day: 15 अगस्त 1947 के दिन हमने औपनिवेशिक शासन की बेड़ियों को काट दिया था। उस दिन हमने अपनी नियति को नया स्वरूप देने का निर्णय लिया था। उस शुभ-दिवस की वर्षगांठ मनाते हुए हम लोग सभी स्वाधीनता सेनानियों को सादर नमन करते हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया ताकि हम सब एक स्वाधीन भारत में सांस ले सकें। 15 अगस्त का दिन हर भारतीय के लिए बेहद खास होता है। स्वतंत्रता दिवस का महत्व समझाने के लिए अक्सर अभिभावक या फिर शिक्षक छोटे बच्चों को स्वतंत्रता दिवस से पहले स्वतंत्रता दिवस पर निबंध स्वतंत्रता दिवस पर भाषण लिखने का कार्य देते या प्रेरित करते हैं। भारत को ब्रिटिश राज से आजाद हुए लगभग 76 साल हो गए हैं।
15 अगस्त, 1947 वह तारीख है, जो भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों के साथ अंकित है। यह वो दिन था जिसके बाद पहली बार भारत के लोगों ने एक स्वतंत्र देश में सांस ली। यह वो दिन था जब भारत के लोगों को उनके वाजिब अधिकार मिले थे। यूं कहें तो यह वो दिन था जिस दिन इस देश की मिट्टी, धूल, नदियां, पहाड़, जंगल, आबोहवा और बच्चा-बच्चा आजाद हुआ था यानी सीधे शब्दों में समझें, तो हमारे देश भारत को इसी दिन 200 साल के अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिली थी। यह हर भारतीयो के लिए गर्व की बात थी।
अंग्रेजों की हुकूमत से इस एक आजादी को पाने के लिए हमने लंबा संघर्ष किया। इसके लिए कई क्रांतिकारियों ने लंबी लड़ाई लड़ी, कइयों ने हुकूमत के अत्याचारों का सामना किया। कइयों ने चोट खाई, कई शहीद हुए, कइयों तो मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे को चूम कर गले से लगा लिया, तो कइयों ने अपना पूरा जीवन, अपनी पूरी जवानी इस आजादी को पाने में झोंक दी। भारत माँ के इन सच्चे सपूतों के त्याग तथा बलिदान के कारण स्वतंत्रता का सपना साकार हुआ। भारत के मिट्टी के लालों और ललनाओं की इसी सरफ़रोशी की नियत की वजह से ही आज हम सब सिर उठा कर खुली हवा में लहराते हुए तिरंगे को देख पा रहे हैं। तभी तो 15 अगस्त, 1947 का जिक्र होते ही गर्व से हर भारतीय का सीना चौड़ा हो उठता है।
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1857 से 1947 के बींच देश के क्रांतिकारियों का बलिदान
1. महात्मा गांधी
जन्म: 2 अक्टूबर, 1869
निधन: 30 जनवरी 1948
जन्म स्थान: पोरबंदर, काठियावाड़ (गुजरात)
मृत्यु का स्थान: नई दिल्ली
जीवन-परिचय: देश महात्मा गांधी जी को राष्ट्रीय पिता और बापू जी कह कर भी बुलाया जाता है। उनके पिता का नाम ‘करमचंद्र गाँधी’ और माता का नाम ‘पुतलीबाई’ था। महात्मा गांधी को भारत के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ कुछ लोगों में से एक माना जाता है। जिन्होंने दुनिया को बदल दिया। उन्होंने सरल जीवन और उच्च सोच जैसे मूल्यों का प्रचार किया। उनके सिद्धांत थे सच्चाई, अहिंसा और राष्ट्रवाद. गांधी ने सत्याग्रह का नेतृत्व किया, हिंसा के खिलाफ आंदोलन, जिसने अंततः भारत की आजादी की नींव रखी। उन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए कई महत्वपूर्ण आंदोलन की लड़ाईयां लड़ी।
गांधी जी के इन आंदोलनों में देश की जनता का बहुत साथ मिला था। उन्होंने जीवनभर की गतिविधियों में किसानों, मजदूरों के खिलाफ भूमि कर और भेदभाव का विरोध करना शामिल है। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने नई दिल्ली में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। जब महात्मा गांधी को गोली लगी थी तब उनसे मुंख से हे राम शब्द निकला था।
2. जवाहर लाल नेहरु
जन्म: 14 नवम्बर, 1889
निधन: 27 मई, 1964
जन्म स्थान: इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु का स्थान: दिल्ली
देश आजाद होने के भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु बने। पंडित जवाहर लाला नेहरु को देश के बच्चें चाचा को कहकर पुकारते थे। इसके सात ही पंडित जवाहरलाल नेहरू को चाचा नेहरू और पंडित जी के नाम से भी बुलाया जाता है। पंडित जवाहर लाल नेहरु के पिता का नाम पंडित मोती लाल नेहरु व माता का नाम श्रीमती स्वरुप रानी था। पंडित जवाहर लाल नेहरु ने स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के साथ मिलकर सम्पूर्ण ताकत के साथ लड़े थे। नेहरु असहयोग आंदोलन का हिस्सा रहे!
दरअसल में वह एक बैरिस्टर और भारतीय राजनीति में एक केन्द्रित व्यक्ति थे। आगे चलकर वे राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। बाद में वह उसी दृढ़ विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधीजी के साथ जुड़ गए। पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए 35 साल तक लड़ाई लड़ी और तकरीबन 9 साल जेल भी गए। 15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1964 तक पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधान मंत्री बने थे।
3. चंद्रशेखर आजाद
जन्म: 23 जुलाई 1906
निधन: 27 फरवरी 1931
जन्म स्थान: भाबरा, अलीराजपुर, मध्य प्रदेश
मृत्यु का स्थान: अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था। इन्होंने अपना पूरा जीवन देश की आजादी की लड़ाई के लिए कुर्बान कर दिया। चंद्रशेखर बेहद कम्र उम्र में देश की आजादी की लड़ाई का हिस्सा बने थे। जब सन् 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद गांधीजी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया तो आज़ाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया।
इसके बाद वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल और शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेश चन्द्र चटर्जी द्वारा 1924 में गठित हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 27 फरवरी, 1931 को इसी पार्क में स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे वीर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्मस्थान भाबरा अब ‘आजादनगर’ के रूप में जाना जाता है।
चंद्रशेखर को इसलिए बुलाया जाता है ‘आजाद’
चंद्रशेखर को ‘आजाद’ नाम एक खास वजह से मिला। चंद्रशेखर जब 15 साल के थे तब उन्हें किसी केस में एक जज के सामने पेश किया गया। वहां पर जब जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने ने कहा, ‘मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है’। जज ये सुनने के बाद भड़क गए और चंद्रशेखर को 15 कोड़ों की सजा सुनाई, यही से उनका नाम आजाद पड़ गया। चंद्रशेखर पूरी जिंदगी अपने आप को आजाद रखना चाहते थे।
4. सुभाष चंद्र बोस
जन्म: 23 जनवरी 1897
निधन: 18 अगस्त 1945
जन्म स्थान: कटक (ओड़िसा)
मृत्यु का स्थान। रहस्यमय
सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उनके पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और माता का नाम ‘प्रभावती’ था। उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक (1939- 1940) नामक पार्टी की स्थापना की। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ जापान की सहायता से भारतीय राष्ट्रीय सेना “आजाद हिन्द फ़ौज़” का निर्माण किया।
05 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने “सुप्रीम कमांडर” बन कर सेना को संबोधित करते हुए “दिल्ली चलो” का नारा लागने वाले सुभाष चन्द्र बोस ही थे। 18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया था इसलिए आज भी उनकी मृत्यु एक रहस्यमय है।
5. भगत सिंह
जन्म: 27 सितंबर 1907
निधन: 23 मार्च 1931
जन्म स्थान: गाँव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब
मृत्यु का स्थान: लाहौर जेल, पंजाब
सरदार भगत सिंह का नाम तो छोटे से लेकर बड़े से बड़े लोग भी जानते है, क्योंकि उनका नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप में लिया जाता है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में स्थित है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह सिन्धु और माता का नाम श्रीमती विद्यावती जी था। भगत सिंह जी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है, क्योंकि उनके द्वारा किये गए त्याग को कोई माप नहीं सकता है। भगत सिंह जब केवल 23 वर्ष के ही थे, तभी उन्हें फांसी दे दी गई थी। भगत सिंह जी की मृत्यु 23 वर्ष की आयु में हुई जब उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया।
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है जो पंजाब, भारत में है। उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजित और स्वरण सिंह जेल में थे। 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने नलगढ़ा गांव में बनाए गए बम नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश हुकूमत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में फेंके थे। बम फेंकने के लिए ही 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था।
6. राजगुरु
जन्म: 24 अगस्त 1908
निधन: 23 मार्च 1931
जन्म स्थान: खेड़, वर्तमान रत्नागिरी जिला, महाराष्ट्र (भारत)
मृत्यु का स्थान: लाहौर जेल, पंजाब
आपको बता दे शिवराम राजगुरु को राजगुरु के नाम से जाना जाता है जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारियों में एक थे। उन्होंने देश की आजादी के लिए आपने आप को फांसी पर चढ़वाना स्वीकार कर लिया ,परंतु कभी अंग्रेजों की गुलाम स्वीकार नही की। चंद्रशेखर आजाद के द्वारा स्थापित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन से राजगुरु जुड़े हुए थे। भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव ने जॉन सॉण्डर्स नाम के ब्रिटिश अधिकारी की हत्या कर दी थी जिसके बाद ब्रिटिश सरकार के द्वारा 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और सुखदेव सहित राजगुरु को फांसी दे दी गई।
7. सुखदेव
जन्म: 15 मई 1907
निधन: 23 मार्च 1931
जन्म स्थान: , लुधियाना, पंजाब, भारत
मृत्यु का स्थान: लाहौर जेल, पंजाब
जिसमे सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर था जो एक क्रांतिकारी थे। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में सम्मिलित होकर देश को ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाने के लिए अथक प्रयास किये। एक दिन सुखदेव, भगत सिंह व राजगुरु ने मिल करके जॉन सांडर्स नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या कर दी। इस हत्याकांड के बाद ब्रिटिश सरकार ने तीनों को 24 मार्च 1931 को फांसी देने की सजा सुनाई। सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना, पंजाब में हुआ था। उसके पिता रामलाल थापर तथा माता रल्ली देवी थी। उसका परिवार पंजाबी-हिन्दू परिवार था जो हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों को मानता था।
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7.रामप्रसाद बिस्मिल
जन्म: 11 जून, 1897
निधन: 19 दिसंबर, 1927
जन्म स्थान: शाहजहाँपुर
मृत्यु का स्थान: गोरखपुर
जिसमे राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था। जब राम प्रसाद सात वर्ष के हुए तब पिता पंडित मुरलीधर घर पर ही उन्हें हिन्दी अक्षरों का ज्ञान कराने लगे। राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ एक महान क्रन्तिकारी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाविद् व साहित्यकार भी थे।
इन्होने अपनी बहादुरी और सूझ-बूझ से अंग्रेजी हुकुमत की नींद उड़ा दी और भारत की आज़ादी के लिये मात्र 30 साल की उम्र में अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है… देखना है जोर कितना बाजुओं कातिल में है..’ गाते हुए न जाने कितने क्रान्तिकारी देश की आजादी के लिए फाँसी के तख्ते पर झूल गये। राम प्रसाद बिस्मिल ने ‘मैनपुरी कांड’ और ‘काकोरी कांड’ को अंजाम देकर अंग्रेजी साम्राज्य को हिला दिया था।
8. मंगल पाण्डेय
जन्म: 19 जुलाई 1827
निधन: 8 अप्रैल 1857
जन्म स्थान: नगवा, बल्लिया जिला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु का स्थान: फांसी पर लटकाए गए
आजादी में एक नाम मंगल पांडेय भी है जिनका जन्म 19 जुलाई 1827 को नगवा गाँव जिला बल्लिया में हुआ था, ये आज के समय में उत्तर प्रदेश के ललितपुर के पास है। ये एक ब्राह्मण परिवार से थे, जो हिंदुत्व को बहुत मानते है, उनके हिसाब से हिन्दू धर्म सबसे अच्छा होता था। पाण्डेय जी ने 1849 को ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्मी ज्वाइन कर ली। कहा जाता है सेना एक ब्रिगेड के कहने पर उन्हें इसमें शामिल किया गया था, क्यूंकि वे मार्च(परेड) बहुत तेज किया करते थे। यहाँ उन्हें पैदल सेना में सिपाही बनाया गया। मंगल पाण्डेय बहुत अच्छे सिपाही थे।
अंग्रेजों के जुल्म भारत में बढ़ते ही जा रहे थे, उनके सितम से पूरा देश आजादी के सपने देखने लगा था। मंगल पाण्डेय जिस सेना में थे, वह बंगाल की इस सेना में एक नई रायफल को लाया गया, ये एनफ़ील्ड 53 में कारतूस भरने के लिए रायफल को मुंह से खोलना पड़ता था, और ये अफवाह उड़ी थी कि इस रायफल में गाय व सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया था।
इस बात ने पूरी सेना में हडकंप मचा दिया। सभी को लगा कि अंग्रेजों ने हिन्दू मुस्लिम के बीच विवाद पैदा करने के लिए ऐसा किया है। हिन्दुओं को लग रहा था कि अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट कर रहे है, हिन्दुओं के लिए गाय उनकी माता के समान होती है, जिनकी वे पूजा करते है। इस हरकत से वे सब अंग्रेज सेना के खिलाफ खड़े हो गए थे। सबके अंदर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की भावना जाग उठी।