Supreme Court: लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के मतदान की तारीख अब बेहद ही नजदीक हैं और इसी बीच मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में EVM की जगह मतपत्रों के उपयोग को लेकर जारी चर्चाओं पर एक अहम सुनवाई की हैं. दरअसल, EVM से मतदान के दौरान हर वोटर को वेरिफिकेशन के लिए वीवीपैट स्लीप दिए जाने वाली याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि, जब सीक्रेट बैलेट से वोटिंग होती थी, तब भी समस्याएं हुआ करती थीं.
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बेंच में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि, ‘हम अपनी जिंदगी के छठे दशक में हैं. हम सभी जानते हैं कि जब बैलेट पेपर्स से मतदान होता था तो क्या स्थिति थी. आप भूल गए होंगे, पर हमें सब कुछ याद है.’ इसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई को लेकर कहा कि, वो 18 अप्रैल को उन याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखेगा, जिनमें वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) के साथ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) में उनके द्वारा डाले गए वोटों को रिकॉर्ड किए गए अनुसार गिने जाने की मांग की गई है.
बैलेट पेपर पर कोर्ट ने कही ये बात
EVM से मतदान के दौरान हर वोटर को वेरिफिकेशन के लिए वीवीपैट स्लीप दिए जाने वाली याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने सुनवाई की. EVM को हटाने की याचिका के पक्ष में अपनी बात रख रहे प्रशांत भूषण से जस्टिस संजीव खन्ना ने पूछा कि अब आप क्या चाहते हैं?
इस प्रश्न का जवाब देते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि, पहला बैलेट पेपर पर वापस जाएं और दूसरा फिलहाल 100 फीसदी VVPAT मिलान हो. जिसके जवाब में कोर्ट ने कहा कि, देश में 98 करोड़ वोटर हैं. आप चाहते हैं कि 60 करोड़ वोटों की गिनती हो. प्रशांत भूषण ने कहा कि बैलेट से वोट देने का अधिकार दिया जा सकता है या वीवीपैट मे जो पर्ची है उसे मतदाताओं को दिया जाए.
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यूरोपीय उदाहरण यहां काम नहीं आते– जस्टिस दीपांकर
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण द्वारा जर्मनी के सिस्टम का उदाहरण देने पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि, “मेरे गृह राज्य पश्चिम बंगाल की जनसंख्या जर्मनी से भी अधिक है. हमें किसी पर भरोसा और विश्वास जताना होगा. इस तरह से व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की कोशिश मत करिए. इस तरह के उदाहरण मत दीजिए. ये एक बहुत बड़ा काम है और यूरोपीय उदाहरण यहां काम नहीं आते.”
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