Sultanpur Durga Puja: उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में दुर्गापूजा का महोत्सव देशभर में मशहूर है। अगर किसी को दुर्गापूजा की भव्यता और दिव्यता का अनुभव करना है, तो सुल्तानपुर एक बेहतरीन विकल्प है। यह माना जाता है कि कोलकाता के बाद सुल्तानपुर की दुर्गापूजा दूसरे स्थान पर आती है। यहां मां भगवती की नौ दिन तक आराधना के बाद दशहरा से पंडालों पर भक्तों की भीड़ जुटने लगती है।
Read more: बीजेपी पर फिर बरसे Mallikarjun Kharge, कहा- “लिंचिंग करने वाले, आतंकी हैं उनकी पार्टी”
पंडालों की भव्य सजावट आकर्षण का केंद्र
सुल्तानपुर में दुर्गापूजा के दौरान भव्य सजावट और दुर्गा जागरण के कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिससे शहर अलौकिक रूप से सज जाता है। नगर के गल्ला मंडी में माहिष्मती का पंडाल, मेजरगंज चौराहे पर जंगल थीम गुफा और बाटा गली में पशुपतिनाथ मंदिर जैसे आकर्षक पंडालों को देखने के लिए देशभर से लोग शामिल होते हैं। दुर्गापूजा का एक प्रमुख आकर्षण मूर्ति विसर्जन होता है, जो परंपरागत तरीके से नहीं, बल्कि पूर्णिमा को सामूहिक शोभायात्रा के रूप में आयोजित होता है। यह शोभायात्रा करीब 36 घंटे में समाप्त होती है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
सुल्तानपुर की दुर्गापूजा का इतिहास
सुल्तानपुर में दुर्गापूजा की शुरुआत करीब 55 साल पहले 1959 में हुई थी। ठठेरी बाजार में भिखारीलाल सोनी और उनके सहयोगियों ने पहली बार बड़ी दुर्गा की मूर्ति की स्थापना की थी, जिसे बिहार से बुलाए गए मूर्तिकारों ने बनाया था। विसर्जन के समय डोली में शोभायात्रा निकाली गई थी, जिसमें आठ लोग लगते थे। पहली बार जब शोभायात्रा सीताकुंड घाट के पास पहुंची, तो जिला प्रशासन ने विसर्जन पर रोक लगा दी थी। लेकिन सामाजिक हस्तक्षेप के बाद विसर्जन संभव हो सका। यह स्थिति दो सालों तक जारी रही।
Read more: Haryana Election: चुनाव में हार से बौखलाए Balraj Kundu ने बंद करवा दी महिलाओं के लिए फ्री बस सर्विस
लखनऊ में भी हुई नए मंदिरों की स्थापना
1961 में, रुहट्टा गली में बंगाली प्रसाद सोनी द्वारा काली माता की मूर्ति की स्थापना की गई। फिर 1970 में लखनऊ नाका पर कालीचरण उफर नेता ने संतोषी माता की मूर्ति स्थापित की। 1973 में अष्टभुजी माता, श्री अम्बे माता, श्री गायत्री माता, और श्री अन्नापूर्णा माता की मूर्तियों की स्थापना के साथ ही सुल्तानपुर की दुर्गापूजा में और भी रंग भर गए। इन सभी घटनाओं के बाद सुल्तानपुर में दुर्गापूजा महोत्सव ने एक नई पहचान बनाई है। यह न केवल धार्मिक महत्व का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी स्थापित हो चुका है। यहां की दुर्गापूजा महोत्सव न केवल शहर बल्कि पूरे राज्य और देश में विशेष स्थान रखती है। सुल्तानपुर की दुर्गापूजा अब हर साल श्रद्धालुओं का एक बड़ा आकर्षण बन चुकी है, जो इसे कोलकाता के बाद एक महत्वपूर्ण स्थल बनाती है।
उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता
देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई अपनी-अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की पहचान इसकी सांस्कृतिक विविधता में निहित है। लखनऊ की नवाबी और अयोध्या की धार्मिकता में रचे बसे इस राज्य का दुर्गापूजा महोत्सव सुल्तानपुर में अनोखा नजर आता है। यहां का दुर्गापूजा महोत्सव अन्य जिलों की तुलना में विशेष रूप से भव्य और दिव्य है, जिससे यह कोलकाता को चुनौती देने की क्षमता रखता है।
Read more: Lucknow Accident: मोहनलालगंज में हुए दो सड़क हादसों में डेढ़ दर्जन से अधिक लोग घायल, 7 की हालत गंभीर