हाल ही में शेयर बाजार में आई बड़ी गिरावट के बाद पिछले हफ्ते जो शानदार तेजी आई, वह विदेशी निवेशकों (एफआईआई) की ओर से फिर से खरीदी की वजह से संभव हुई है। इस तेजी से निवेशकों की संपत्ति में इजाफा हुआ है, और अब बाजार में आगे क्या होगा, यह सवाल फिर से सबके मन में है।शेयर बाजार एक्सपर्ट और जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार का मानना है कि दिसंबर की शुरुआत में जब विदेशी निवेशकों ने फिर से खरीदी शुरू की, तो इससे बाजार की धारणा सकारात्मक हुई।
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विदेशी निवेशकों की बड़ी हिस्सेदारी
आगे कहा… इस सकारात्मक धारणा का असर आगे भी बाजार पर दिखाई दे सकता है।उन्होंने यह भी बताया कि यदि एफआईआई का खरीदारी का सिलसिला जारी रहता है, तो बाजार में तेजी बनी रह सकती है। इससे यह संकेत मिलता है कि विदेशी निवेशकों के भरोसे और निवेश से भारतीय शेयर बाजार में मजबूती आ सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां विदेशी निवेशकों की बड़ी हिस्सेदारी होती है।हालांकि, बाजार के उतार-चढ़ाव को लेकर हमेशा सतर्क रहने की आवश्यकता होती है, क्योंकि कई कारक जैसे वैश्विक आर्थिक स्थिति, घरेलू राजनीतिक और आर्थिक घटनाएँ, और अन्य वित्तीय संकेतक भी बाजार की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं। इस कारण से निवेशकों को सतर्क रहते हुए दीर्घकालिक दृष्टिकोण से निवेश करना चाहिए।
कीमतों में उतार-चढ़ाव
इस सप्ताह भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों की नजर कई महत्वपूर्ण कारकों पर होगी, जिनमें घरेलू और वैश्विक आर्थिक आंकड़े, वैश्विक रुझान, रुपया-डॉलर विनिमय दर और कच्चे तेल की कीमतें शामिल हैं। इन सभी कारकों का बाजार की दिशा पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है, और निवेशकों की भावना भी इन्हीं तत्वों से प्रभावित हो सकती है।
स्वास्तिका इन्वेस्टमार्ट लिमिटेड के वरिष्ठ तकनीकी विश्लेषक प्रवेश गौर ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि…. घरेलू शेयर बाजारों को वैश्विक संकेतों, घरेलू आर्थिक संकेतकों और विदेशी एवं घरेलू संस्थागत निवेशकों के रुख से आगे की दिशा मिल सकती है। उनका कहना था कि रुपये की विनिमय दर और कच्चे तेल की कीमतों जैसे प्रमुख कारक बाजार के रुझानों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। विशेष रूप से कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारे व्यापार घाटे और मुद्रा विनिमय दर को प्रभावित कर सकता है।
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डॉलर की कमजोरी का असर उभरते बाजारों में
वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव भी एक चुनौती बना हुआ है, जो वैश्विक आर्थिक माहौल पर असर डाल सकता है। हालांकि, प्रवेश गौर का कहना था कि डॉलर सूचकांक और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में हालिया गिरावट ने उभरते बाजारों, खासकर भारत, के लिए एक अनुकूल माहौल पैदा किया है। अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल और डॉलर की कमजोरी का असर उभरते बाजारों में विदेशी निवेशकों के आकर्षण को बढ़ा सकता है, क्योंकि इससे इन बाजारों में निवेश करना अपेक्षाकृत अधिक आकर्षक हो सकता है।इन सभी घटनाक्रमों को देखते हुए, निवेशकों को सतर्क रहते हुए और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से निवेश की रणनीति अपनानी चाहिए, क्योंकि बाजार में अनिश्चितता और उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है।
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शेयर बाजार में जोरदार तेजी
पिछले हफ्ते भारतीय शेयर बाजार में जोरदार तेजी देखने को मिली, जब बीएसई सेंसेक्स 1,906.33 अंक (2.38%) और एनएसई निफ्टी 546.7 अंक (2.26%) उछला। हालांकि, शुक्रवार को यह तेजी थम गई, जब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान नीतिगत दर को यथावत रखने का फैसला लिया गया और वित्त वर्ष 2024-25 के लिए आर्थिक वृद्धि अनुमान को घटा दिया गया। इस घोषणा के बाद बाजार में उतार-चढ़ाव आया।
कारोबार के अंत में, बीएसई सेंसेक्स 56.4 अंक गिरकर 81,709.12 पर और एनएसई निफ्टी 30.60 अंक गिरकर 24,677.80 पर बंद हुआ।यह बदलाव बाजार में संकोच और अनिश्चितता को दर्शाता है, जहां निवेशक मौद्रिक नीति के संकेतों और वैश्विक आर्थिक स्थिति को लेकर सतर्क रहते हैं। रिजर्व बैंक के निर्णय ने घरेलू आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं पर सवाल उठाए, जिससे बाजार में कुछ दबाव देखने को मिला। हालांकि, बाजार की दीर्घकालिक दिशा अभी भी विदेशी निवेशकों के रुख और वैश्विक आर्थिक रुझानों से प्रभावित होगी।