ब्यूरो चीफ- गौरव श्रीवास्तव
Lucknow: यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट का मसला सिर्फ मुसलमानों का नहीं है बल्कि जितने भी रिलीज कम्युनिटी है सबके अपने पर्सनल लॉ है। हमारे मुल्क के संविधान ने हर शहरी को अपने मजहब पर अमल करने का पूरा अख्तयार दिया है।
मजहबी आजादी हर हिंदुस्तानी का फंडामेंटल राइट है फंडामेंटल राइट को डायरेक्टर प्रिंसिपल से खत्म नहीं किया जा सकता इसलिए यह पॉसिबल नहीं है कि यह हमारे मुल्क में यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट को लागू किया जाए, हमारे मुल्क में हर 200 से 300 किलोमीटर पर ट्रेडिशनल कस्टम्स बदल जाते हैं और मुल्क की कॉन्स्टिट्यूशन ने ट्रेडिशनल और कस्टम की तहफ़्फ़ुज़ की जमानत दी है।
सबसे बड़ा सवाल है नॉर्थ ईस्टर्न स्टेट त्रिपुरा, मिजोरम, नागालैंड, है इनके अपने ट्रेडिशनल और कस्टम है इसकी जमानत और स्पेशल प्रोविजल बकायदा अपने मुल्क के कांस्टिट्यूशन में दी गई है उन तमाम चीज़ों को कैसे खत्म कर दिया जाएगा यह बड़ा सवाल है।
अपने मुल्क में इस बात का कॉन्स्टिट्यूशन प्रोविजन है जो लोग अपने पर्सनल लॉ के तहत शादी नहीं करना चाहते उनके लिए सिविल कोर्ट के तहत पहले से स्पेशल मैरिज एक्ट मौजूद है प्रॉपर्टी हेरिटेज लो मौजूद लिहाजा पहले से ही यह सब मौजूद है।
यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट मुल्क पर लागू नहीं किया जा सकता और मुसलमानों का यह मजा भी बड़ा मसला है क्योंकि अपने पर्सनल लॉ है इसका डायरेक्ट मामला कुरान और हदीस से है, हुकूमत से मेरी अपील है मुल्क के और जो बड़े मसले हैं उनको हल करने की कोशिश करें यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट को मुल्क पर लागू नहीं किया जाए।