बिहार (गया): संवाददाता- बिप्लव कुमार
गया। किसान पानी के इंतजार के आस में बैठे है। धान का मोरी खराब हो रहा। गया जिले में महज 3 फ़ीसदी धान की रोपनी हुई है। किसान मूसलाधार बारिश को लेकर आसमान को टकटकी लगाए बैठ है। जिले में बारिश नहीं होने से किसान काफी चिंतित हैं। इस वर्ष भी गया जिला सुखाड़ की ओर अग्रसर होते दिख रहा है।
गया के किसान तेज बारिश को लेकर आसमान में आंख टक टका लगाए बैठे है। कब इंद्र भगवान किसान पर मेहरबान हो और तेज बारिश करें। लेकिन गया जिले में इंद्र भगवान की महिमा ही कुछ और है। गया जिले में औसतन बारिश से 32 फ़ीसदी बारिश इस वर्ष कम हुई है। कम बारिश होने से गया जिले के किसान डीजल पंप और मोटर चलाकर महज 3 फ़ीसदी ही धान की रोपाई कर पाए है। बाकी किसान बारिश नहीं होने से नाखुश है। गया जिले में धान की रोपनी अभी 70 प्रतिशत कम होने से काफी चिंता का विषय है।
3 प्रतिशत ही हुई धान की रोपनी, 32 प्रतिशत कम हुई है वर्षा:
गया जिले के किसान बरसात कम होने को लेकर चिंतित है। उनका चिंतित होना भी लाजिमी है, क्योंकि अब तक किसानों के खेतों में धान की रोपनी नहीं हो सकी है। जिले सभी प्रखंडों की यही स्थिति है। अब तक सिर्फ 2.8% ही धान की रोपनी की जा सकी है। इसमें भी डीजल पंप और मोटर का सहारे संभव हो पाया है। वर्षा की बात की जाए तो 32% कम वर्षा हुई है।
मूसलाधार बारिश की आस में आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे किसान:
सावन महीने में धान की रोपनी होती है, किंतु श्रावण माह का एक पखवारा बीत चुका है। महज जिले में 3 % ही धान की रोपनी हो सकी है। कम बारिश से किसानों के चेहरे पर मायूसी है। किसान को भी अब धान की फसल की उम्मीद टूटने लगी है। जब कभी रुक-रुक कर छिटपुट बारिश होती भी तो खेत में पानी नहीं भर पाता है। जिससे धान की रोपनी नहीं हो पा रही है।
जिले में 1.90 लाख हेक्टेयर धान की रोपनी का लक्ष्य:
गया जिले में धान की रोपनी 1 लाख 90 हजार 186 हेक्टेयर में है। किंतु अब तक यह लक्ष्य से काफी पीछे है। जिले में धान की रोपनी सिर्फ 4352 हेक्टेयर में ही हो सकी है। वहीं, वर्षा की बात करें तो कम से कम 300 से अधिक मिलीमीटर वर्षा होनी चाहिए थी, किंतु 200 मिलीमीटर के करीब ही वर्षा हो पाई है। यह आंकड़ा कृषि विज्ञान केंद्र मानपुर के वैज्ञानिक द्वारा दिया गया है। यह आंकड़ा 1 जून से 17 जुलाई तक का है। इस तरह से बारिश करीब 32% कम हुई है।
अगले 5 दिन तक बारिश के आसार नही:
कृषि से जुड़े वैज्ञानिकों की मानें तो अगले 5 दिन तक गया जिले में मूसलाधार बारिश के आसार नहीं है। इस तरह से बारिश न होने से किसानों के लिए चिंता का विषय है। वहीं, बारिश नहीं होने से बिचड़े भी काफी उम्र के हो गए हैं और जलने भी लगे है। मोरी की उम्र बढ़ने से यदि फसल किसी प्रकार से लग भी जाए तो उत्पाद में कमी होने से किसान को लाभ काम होगा। मूसलाधार बारिश के आश में आसमान की ओर आंख टकटका देख रहे है।
इस संबंध में किसान उपेंद्र पासवान कहते हैं, कि हम किसान हैं। बिचड़े तैयार हैं, लेकिन बारिश का इंतजार है। बारिश नहीं हो रही है, बिचड़े भी मर रहे है। ऐसे में धान की रोपनी संभव नहीं प्रतीत हो रही है। धान की रोपनी नहीं करते है तो भूखे मर जाएंगे। 3 बीघे में धान की रोपनी के लिए बिचड़े तैयार किए थे। उसमें कम पूंजी फंसी और अब नुकसान ही नुकसान होना रह गया है। हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए क्षतिपूर्ति करे। वहीं महिला किसान गोरी खातून बताती है, कि 3 बीघा में खेती करनी थी. पानी नहीं है। धान की रोपनी नहीं कर पा रही है, बिचड़ा भी जल रहा है, आधा सावन चला गया है, अब तक रोपनी कर देते थे।
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कृषि वैज्ञानिको बताया 32 प्रतिशत कम हुई बरसातः
इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र मंडल बताते हैं, कि धान की रोपनी को लेकर गया की स्थिति अच्छी नहीं है। वर्षा कम हो रही है, 32% वर्षा अभी तक तक कम हुई है। आच्छादन 1.90 लाख हेक्टेयर का था, जिसमें से अब तक 4352 हेक्टेयर में ही धान की रोपनी हो पाई है। यह 2.9 प्रतिशत है, धान की रोपनी में यह बहुत बड़ा गैप है। जुलाई के 17 दिन बीत चुके है , अगले 5 दिन पानी के आसार नहीं दिख रहे है। यदि किसान देर से किसी तरह फसल लगा भी लेते हैं तो रबी का उत्पादन भी प्रभावित होगा। वहीं उत्तम किस्म के धान की उपज नहीं हो सकेगी।
देवेंद्र मंडल बताते हैं कि वर्षा कम होने के बीच किसानों के पास कई विकल्प हैं, जिसमें मोटे अनाज की खेती करना है। उन्होंने बताया कि धान की रोपनी नहीं होने की स्थिति में किसान बाजरा, ज्वार, मङुआ, कांगड़ी, कोदो की खेती कर सकते हैं, जो कि फायदेमंद भी है। बताते हैं कि मोरी पुरानी हो रही है, उम्र बढ़ने से वह जल भी रही। ऐसे में धान की रोपनी निश्चित तौर पर जिले में व्यापक पैमाने पर प्रभावित हुई है, किसानों को वैकल्पिक कृषि करनी चाहिए।