Shri Krishna Janmabhoomi: श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में बड़ी सुनवाई होने वाली है। इस मामले में मुस्लिम पक्ष ने 1600 पन्नों की एक विस्तृत याचिका दायर की है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें कोर्ट ने हिंदू पक्ष के दावों को सुनवाई योग्य माना था।
क्या है मामला?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1 अगस्त 2023 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद को सुनवाई योग्य मानते हुए, शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन पर स्वामित्व का दावा करने वाले हिंदू पक्षकारों द्वारा दायर 16 मुकदमों को सुनने योग्य माना। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की पांच आपत्तियों को खारिज कर दिया था। मुस्लिम पक्ष की ओर से शाही ईदगाह कमेटी ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में मुस्लिम पक्ष ने दावा किया है कि हाईकोर्ट ने उपासना स्थल अधिनियम 1991, परिसीमा अधिनियम, और वक्फ एक्ट के प्रावधानों को नजरअंदाज कर दिया है।
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क्या कहते हैं दोनों पक्षों के वकील?
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष और हिंदू पक्ष के वकील एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि मुस्लिम पक्ष की याचिका पर हिंदू पक्ष की ओर से कैविएट दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष भी अपना पक्ष मजबूती से रखेगा। मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच करेगी। वहीं, शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के सचिव एडवोकेट तनवीर अहमद का कहना है कि सर्वोच्च अदालत में उनका पक्ष मजबूती से रखा जाएगा और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी जाएगी।
हिंदू पक्षकारों की दलीलें
हिंदू पक्ष का दावा है कि विवादित क्षेत्र (ढाई एकड़) श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर का गर्भगृह है, जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद भी शामिल है। हिंदू पक्ष का यह भी कहना है कि ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई वैध रिकॉर्ड नहीं है। उनका आरोप है कि श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़कर ही शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया था। इसके अलावा, हिंदू पक्षकारों का कहना है कि वक्फ ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इसे वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया। उनका दावा है कि इस भूमि पर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण इतिहास के दौरान जबरन किया गया था।
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मुस्लिम पक्ष की दलीलें
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि जमीन को लेकर 1968 में दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ था, और अब 60 साल बाद इस समझौते को गलत ठहराना उचित नहीं है। इसलिए, मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है। मुस्लिम पक्ष ने उपासना स्थल अधिनियम 1991 का भी हवाला दिया है, जिसके तहत मुकदमा सुनवाई के योग्य नहीं माना जा सकता। इस अधिनियम के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को जिस धार्मिक स्थल की जो स्थिति थी, वही बनी रहेगी और उसकी प्रकृति को नहीं बदला जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी सबकी नजरें
सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। शाही ईदगाह कमेटी की याचिका के बाद मामले ने फिर से तूल पकड़ लिया है। अब यह देखना होगा कि सर्वोच्च अदालत क्या रुख अपनाती है। इस विवाद को धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील माना जा रहा है, इसलिए अदालत का फैसला सभी पक्षों के लिए खास मायने रखता है।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का प्रभाव
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद हिंदू पक्ष में उत्साह देखा गया था, क्योंकि कोर्ट ने उनके दावों को सुनवाई योग्य माना था। दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का मानना है कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में उपासना स्थल अधिनियम और वक्फ एक्ट जैसे महत्वपूर्ण कानूनों की अनदेखी की है। इसी के आधार पर मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं, जहां यह मामला फिर से धार्मिक स्थल और संपत्ति विवाद की गंभीरता को लेकर एक नई दिशा ले सकता है।