Shardiya Navratri 2024: आज से शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) की शुरुआत हो गई है. ये सनातन धर्म में अत्यंत धार्मिक महत्व रखने वाला पर्व है. इसे शक्ति की देवी दुर्गा की उपासना के रूप में मनाया जाता है. नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि (Navratri) का पहला दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन ‘कलश स्थापना’ की जाती है, जो पूरे नौ दिनों की पूजा का आधार होती है. इस दिन देवी दुर्गा का आह्वान कर शुभता, समृद्धि और सुख की प्राप्ति की कामना की जाती है.
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कलश स्थापना: शुभता और समृद्धि का प्रतीक
शास्त्रों के अनुसार, कलश स्थापना को शुभता और मंगल का प्रतीक माना जाता है. कलश में जल को ब्रह्मांड की सभी सकारात्मक ऊर्जाओं का स्रोत माना जाता है. यह देवी दुर्गा की शक्ति और सृजन की प्रतीकात्मक उपस्थिति होती है. कलश स्थापना के साथ ही देवी के नौ रूपों का आह्वान किया जाता है, और यह नौ दिनों तक चली पूजा का प्रमुख केंद्र होता है. यह विधि साधक और उसके घर को नकारात्मक शक्तियों से बचाने और सुख-समृद्धि बनाए रखने का एक साधन मानी जाती है. कलश स्थापना के साथ देवी दुर्गा की आराधना शुरू होती है, जो मन और घर को पवित्र बनाने का एक माध्यम होती है.
जानिए शुभ मुहूर्त का महत्व
कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है. इसे शुभ मुहूर्त में करना अत्यंत आवश्यक होता है, जो प्रायः सूर्योदय के समय या अभिजीत मुहूर्त में होता है. इस वर्ष, नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन, 3 अक्तूबर को पहला शुभ मुहूर्त सुबह 6:15 से 7:22 तक रहेगा. दूसरा अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:46 से 12:33 तक रहेगा. इन मुहूर्तों में की गई कलश स्थापना शुभ फलदायी मानी जाती है.
कलश स्थापना की विधि
कलश स्थापना के लिए पूजा स्थल का शुद्ध और स्वच्छ होना आवश्यक है. गंगाजल या शुद्ध जल से पूजा स्थल को पवित्र किया जाता है. इसके बाद, एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर, उस पर कलश स्थापित किया जाता है. कलश के ऊपर आम के पत्ते रखे जाते हैं, और नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर कलश के ऊपर रखा जाता है. कलश में गंगाजल या शुद्ध जल भरा जाता है, जिसमें सुपारी, सिक्के, अक्षत (चावल) और दूर्वा आदि डालकर विधिवत पूजा की जाती है. इस कलश को देवी दुर्गा के निवास के रूप में स्थापित किया जाता है.
जौ बोने की परंपरा
कलश स्थापना के साथ जौ बोने की परंपरा भी होती है, जिसे सुख, समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है. जौ को मिट्टी के पात्र में बोया जाता है, और इसके अंकुरण को शुभ संकेत माना जाता है. कुछ परंपराओं में सप्त जल धाराओं का उपयोग कर कलश में जल भरा जाता है, जिनमें गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु और कावेरी नदियों का जल शामिल होता है. यदि यह संभव न हो, तो गंगाजल का उपयोग भी पर्याप्त माना जाता है.
नौ दिनों की पूजा और कलश विसर्जन
कलश स्थापना के बाद देवी दुर्गा की नौ दिनों तक पूजा की जाती है. हर दिन देवी के एक रूप की आराधना की जाती है. साधक नियमपूर्वक व्रत और ध्यान करता है, और देवी से सुख-समृद्धि की कामना करता है. नवरात्रि (Navratri) के अंत में दशमी के दिन ‘विजयादशमी’ के पर्व पर कलश विसर्जन कर पूजा का समापन किया जाता है.
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