Supreme Court On Alimony: सुप्रीम कोर्ट ने आज मुस्लिम महिलाओं को लकेर एक बड़ा और अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि सीआरपीसी (Code of Criminal Procedure) की धारा 125 (Section 125) के तहत मुस्लिम महिलाएं भी अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं. यह मामला एक मुस्लिम व्यक्ति, मोहम्मद अब्दुल समद द्वारा तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के बाद सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया था. हाईकोर्ट ने मोहम्मद समद को उनकी पत्नी को 10,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था.
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CrPC की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होती
आपको बता दे कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका को खारिज कर दिया है.पीठ ने निर्णय दिया कि ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986’ धर्मनिरपेक्ष कानून पर हावी नहीं हो सकता है. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125(Section 125) सभी महिलाओं पर लागू होती है, न कि केवल शादीशुदा महिलाओं पर.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?
बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन लंबित रहने के दौरान किसी मुस्लिम महिला का तलाक होता है, तो वह ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019’ का सहारा ले सकती है. यह अधिनियम सीआरपीसी की धारा 125 (Section 125) के तहत उपाय के अलावा अन्य समाधान भी प्रदान करता है.
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क्या है CrPC की धारा 125 ?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में शाह बानो मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि सीआरपीसी की धारा 125 (Section 125) एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है, जो मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है. हालांकि, इस निर्णय को ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986’ द्वारा रद्द कर दिया गया था. 2001 में इस कानून की वैधता को बरकरार रखा गया था.
यदि कोई माता-पिता के भरण-पोषण से इनकार करता ?
सीआरपीसी की धारा 125 के तहत यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चे या माता-पिता के भरण-पोषण से इनकार करता है, जबकि वह ऐसा करने में सक्षम है, तो अदालत उसे भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता देने का आदेश दे सकती है.