Harela Festival of Uttarakhand: उत्तराखंड के हर साल लोकपर्व हरेला पर्व से वाहीं के पहाड़ी क्षेत्रों में सावन का महीना होता है शुरू। तो आइए जानें क्यों होता है ऐसा और क्या है हरेला पर्व?
हरेला कुमाऊं मंडल
उत्तराखंड के लोक पर्वों में से एक हरेला को कुमाऊं मंडल में मनाया जाता है। कुमाऊं में हरेले से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है।
उत्तराखंड के हरेला पर्व यह सीख भी देता है कि बरसात के इन दिनों में अगर कुछ भी बोया जाए या कोई नया पौधा लगाया जाए तो उसकी जड़ें जल्दी ही जमीन पकड़ लेती है।
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उत्तराखंड में इस बार हरेला 17 जुलाई से मनाया जा रहा है।
पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर हरेले से नौ दिन पहले दो बर्तनों में बोया जाता है। जिसे मंदिर में रखा जाता है। इस दौरान हरेले को पानी दिया जाता है और उसकी गुड़ाई की जाती है।
इस हरेले में गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों प्रमुख हैं। सूर्य की तेज रोशनी पड़ने के कारण यह अनाज इन नौ दिनों में ही अंकुरित हो जाते हैं।
श्रावण मास के पहले दिन काटा जाने वाला हरेला श्रावण संक्रांति से नौ दिन पहले आषाढ़ मास में बोया जाता है।
कुमाऊं में भगवान शिव
कुमाऊं में भगवान शिव अपने विभिन्न रूपों में विद्यमान है, पहाड़ में कई जगह शिव के विभिन्न रूपों को ईष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है।
हिमालयन सांस्कृतिक केंद्र
हिमालयन सांस्कृतिक केंद्र परिसर में पारंपरिक परिधानों में पहुंची महिलाओं ने हरेला का पूजन कर मंगल गीतों से कार्यक्रम की शुरूआत करती है।
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वैसे तो पूरे वर्ष में हरेला तीन बार मनाया जाता है परन्तु श्रावण मास में मनाए जाने वाले हरेले का त्योहार अपने आप में विशेष महत्व रखता है।