Sanjauli Masjid Controversy: शिमला (shimla) के संजौली स्थित मस्जिद के विवादित अवैध (Sanjauli Mosque controversy) हिस्से को तोड़ने का कार्य सोमवार से शुरू हो गई है। मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष मोहम्मद लतीफ के अनुसार, वक्फ बोर्ड (Wakf Board) से इजाजत मिलने के बाद मजदूरों ने छत से टीन की शेड हटाने का काम शुरू कर दिया है। हालांकि, मस्जिद कमेटी ने यह भी बताया कि फंड्स की कमी के चलते काम पूरा होने में देरी हो सकती है।
संजौली मस्जिद पर लंबे समय से चल रहा था विवाद
यह मस्जिद शिमला के संजौली इलाके में स्थित है, और इसके अवैध निर्माण को लेकर कई वर्षों से विवाद चल रहा था। मस्जिद के निर्माण के खिलाफ स्थानीय लोगों और हिंदू संगठनों ने जमकर प्रदर्शन किया था। 11 सितंबर को हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी, जिसमें पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। इस घटना के बाद संजौली का मस्जिद विवाद राज्य और देश की राजनीति का गर्म मुद्दा बन गया।
वक्फ बोर्ड से इजाजत के बाद तोड़ने की प्रक्रिया शुरू
वक्फ बोर्ड द्वारा मस्जिद कमेटी को अवैध निर्माण तोड़ने की इजाजत दिए जाने के बाद सोमवार से इस पर कार्रवाई शुरू हो गई। मस्जिद के अवैध हिस्से को तोड़ने के लिए मजदूर बुलाए गए, जिन्होंने टीन की शेड उखाड़ना शुरू किया। हालांकि, मस्जिद कमेटी का कहना है कि आर्थिक तंगी के कारण पूरे निर्माण को हटाने में समय लग सकता है।
विरोध प्रदर्शनों और लाठीचार्ज ने विवाद को दी और हवा
संजौली मस्जिद विवाद की शुरुआत एक स्थानीय विवाद से हुई थी, लेकिन जल्दी ही यह मामला राज्य की राजनीति में छा गया। 11 सितंबर को हिंदू संगठनों द्वारा किए गए विशाल प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर पथराव हुआ, जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस घटना के बाद प्रदेशभर में मस्जिदों के बाहर प्रदर्शन हुए और कई जगहों पर मस्जिदों के अवैध निर्माण को लेकर विरोध तेज हो गया। मंडी जिले में भी एक मस्जिद को तोड़ा गया।
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मस्जिद कमेटी की प्रतिक्रिया
5 अक्टूबर को शिमला कमिश्नर कोर्ट ने संजौली मस्जिद के अवैध रूप से निर्मित तीन मंजिलों को गिराने का आदेश दिया था। कोर्ट ने मस्जिद कमेटी को दो महीने का समय दिया और कहा कि तोड़ने का खर्च कमेटी को खुद उठाना होगा। मस्जिद के ग्राउंड फ्लोर और पहले हिस्से को लेकर कोर्ट में अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होनी है।
विवाद का पुराना इतिहास: 2010 से शुरू हुआ मस्जिद निर्माण
शिमला नगर निगम के आयुक्त भूपेंद्र अत्री के अनुसार, संजौली मस्जिद विवाद का इतिहास 2010 से जुड़ा हुआ है। उस समय मस्जिद कमेटी ने यहां पिलर का निर्माण किया था, जिसके बाद निगम प्रशासन ने नोटिस जारी किया। इसके बाद मस्जिद कमेटी ने वक्फ बोर्ड से एनओसी ली, लेकिन निर्माण के लिए जरूरी अनुमतियां निगम प्रशासन से नहीं ली गईं। इस प्रक्रिया में मस्जिद कमेटी और वक्फ बोर्ड ने निगम के निर्देशों को नजरअंदाज किया, जिससे 2015 से 2018 के बीच तीन साल में मस्जिद की अवैध मंजिलों का निर्माण किया गया।
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सियासी गलियारों में गूंजा मस्जिद का विवाद
संजौली मस्जिद का विवाद जल्द ही सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गया। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भी इस मुद्दे पर तीखी बहस हुई। मस्जिद को लेकर सरकार के एक मंत्री का बयान राष्ट्रीय स्तर पर वायरल हो गया और राष्ट्रीय नेताओं की भी प्रतिक्रिया देखने को मिली। राज्य के कई जनप्रतिनिधियों और हिंदू संगठनों ने मस्जिद को अवैध बताते हुए इसे गिराने की मांग की।
फिलहाल, मस्जिद का अवैध हिस्सा गिराने का काम शुरू हो चुका है, लेकिन फंड्स की कमी और मस्जिद कमेटी की आर्थिक स्थिति के चलते यह प्रक्रिया धीमी हो सकती है। मस्जिद के चारों ओर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और किसी भी बाहरी व्यक्ति को मस्जिद के आसपास जाने की अनुमति नहीं है। केवल स्थानीय निवासी ही यहां से गुजर सकते हैं। आने वाले समय में इस विवाद की अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होने वाली है, जिसमें मस्जिद के ग्राउंड फ्लोर और पहले हिस्से के भविष्य पर फैसला लिया जाएगा।