लखनऊ संवाददाता-Mohd Kaleem
लखनऊ: केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर की व्यवस्था खराब होती जा रही है। शुक्रवार रात को रिटायर जज को ही भर्ती करने से इनकार कर दिया। बेटा डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ाते रहा। इसके बावजूद डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा। परिजनों के हाथ जोडऩे के बाद भी उनकी सुनवाई नहीं हुई। मजबूरन परिवारीजन मरीज को लेकर बलरामपुर अस्पताल गए। यहां भी उन्हें मायूसी हाथ लगी। थक हार कर परिवारीजनों ने मरीज को निजी अस्पताल में भर्ती कराया। फिलहाल इलाज से बुजुर्ग रिटायर जज की हालत स्थिर बनी हुई है। ट्रॉमा सेंटर में अत्यधिक मरीजों का दबाव बताकर उन्हें टरका दिया जाता है।
यहां तक कि निजी अस्पतालों में भर्ती कराने की तक की सलाह दी जाती है। कभी दलाल मरीज को ले जा रहे हैं तो कभी बेड खाली न होने की बात कहकर मरीज को लौटाया जा रहा है। उधर, केजीएमयू में गैंगरीन पीडि़त मासूम को इलाज नहीं मिल पा रहा है। बच्चे के पैर में गैंगरीन हो गया है। परिवारीजन इलाज के लिए केजीएमयू में दो दिन से धक्के खा रहे हैं।
अंतिम पोस्टिंग वर्ष 2000 में एटा में थी…
रायबरेली स्थित निरालानगर निवासी राम चन्द्र शुक्ल रिटायर जज हैं। उनकी अंतिम पोस्टिंग वर्ष 2000 में एटा में थी। बेटे अनिल शुक्ला के मुताबिक पिता जी हॉर्निया की पुरानी परेशानी है। शुक्रवार को सुबह पिता को सांस लेने में परेशानी हुई। स्थानीय जिला अस्पताल ले गए। वहां डॉक्टरों ने मरीज की हालत गंभीर बताई। फेफड़ों में भी संक्रमण बताया। उन्हें सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है। रायबरेली एम्स ले जाने की सलाह दी। रायबरेली एम्स में डॉक्टरों ने मरीज को भर्ती नहीं किया। आनन-फानन में पिता को रात 10 बजे केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर लेकर पहुंचे। करीब आधे घंटे इंतजार के बाद पर्चा बना। तब एम्बुलेंस से उतार कर कैजुअल्टी ले गए। यहां डॉक्टरों ने ऑक्सीजन बेड की जरूरत बताई। बेड खाली न होने की बात कहकर मरीज को लौटा दिया।
ऑक्सीजन का स्तर लगातार गिरता जा रहा…
इस दौरान अनिल ने कई डॉक्टरों से मरीज को भर्ती करने की गुहार लगाई। पर, कोई सुनवाई नहीं हुई। दुखी परिवारीजन पिता को लेकर बलरामपुर अस्पताल पहुंचे। यहां भी इमरजेंसी में बेड नहीं मिला। मरीज के शरीर में ऑक्सीजन का स्तर लगातार गिरता जा रहा था। मरीज की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। आखिर में परिवारीजनों ने मरीज को निजी अस्पताल में भर्ती कराने का फैसला किया। अनिल के मुताबिक पिता की रात करीब 12 बजे निजी अस्पताल में भर्ती कराया। इलाज के बाद से तबीयत कुछ स्थिर बनी हुई। वहीं केजीएमयू में गैंगरीन पीडि़त मासूम को इलाज नहीं मिल पा रहा है। बच्चे के पैर में गैंगरीन हो गया है। परिवारीजन इलाज के लिए केजीएमयू में दो दिन से धक्के खा रहे हैं।
पीडी से लेकर ट्रॉमा तक परिवारीजन भटक रहे…
रायबरेली के इब्राहिमपुर निवासी एक माह 10 दिन के पीयूष के पैर में दिक्कत थी। परिवारीजन बच्चे को लेकर स्थानीय अस्पताल पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने बच्चे की हालत गंभीर बताई। उसे रायबरेली एम्स रेफर कर दिया। एम्स के डॉक्टरों ने बच्चे के पैर में गैंगरीन होने की बात कही। बच्चे को केजीएमयू रेफर कर दिया। परिवारीजन दो दिन पहले बच्चे को लेकर केजीएमयू पहुंचे। यहां ओपीडी से लेकर ट्रॉमा तक परिवारीजन भटक रहे हैं। परिवारीजनों का आरोप है दर्द से छटपटाने बच्चे को न तो ओपीडी में इलाज मिला। ट्रॉमा सेंटर के पीडियाट्रिक विभाग के डॉक्टरों ने बच्चे को प्लास्टिक सर्जरी विभाग रेफर कर दिया।
जब शरीर के किसी भी हिस्से में चोट लग जाती है, और वे सही ढग़ से ठीक नहीं होते हैं तो कुछ दिनों के बाद यह सडऩे लगता है और यह एक नई समस्या पैदा करती है जिसे गैंगरीन के नाम से जाना जाता है। गैंगरीन का अर्थ है ऊतक का सडऩा। यह रोग इतना घातक है कि यह शरीर की हर कोशिका को प्रभावित कर सकता है और एक दिन मृत्यु शरीर के सडऩे के कारण हो सकती है।