Karnataka News: कर्नाटक विधानसभा ने गुरुवार को नीट (NEET) परीक्षा के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने कहा है कि नीट परीक्षा प्रणाली ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले गरीब बच्चों के लिए मेडिकल शिक्षा के अवसरों को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। यह न केवल स्कूली शिक्षा प्रणाली को अप्रभावी बनाता है, बल्कि राज्य सरकार द्वारा प्रबंधित मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को प्रवेश देने के राज्य के अधिकार को भी छीन लेता है।
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नीट प्रणाली की अनियमितताओं पर सवाल

प्रस्ताव में कहा गया है कि नीट (NEET) की परीक्षाओं में बार-बार होने वाली अनियमितताओं को देखते हुए, केंद्र सरकार को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 (केंद्रीय अधिनियम 30, 2019) में आवश्यक संशोधन करना चाहिए ताकि राष्ट्रीय स्तर पर नीट प्रणाली को खत्म किया जा सके। नीट को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। हर साल लाखों बच्चे नीट एग्जाम में हिस्सा लेते हैं, जिनमें कर्नाटक से भी हजारों की संख्या में छात्र शामिल होते हैं।
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सीईटी प्रणाली की बहाली की मांग
कर्नाटक विधानसभा ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि राज्य को नीट परीक्षा से छूट दी जाए और राज्य सरकार द्वारा आयोजित कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (सीईटी) के नंबरों के आधार पर छात्रों को मेडिकल एडमिशन दिया जाए। पिछली कैबिनेट मीटिंग में भी नीट को गलत बताते हुए इस परीक्षा से छूट देने और सीईटी सिस्टम को फिर से लागू करने का केंद्र सरकार से आग्रह किया गया था।
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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के खिलाफ भी प्रस्ताव पारित

इसके साथ ही, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (‘One Nation, One Election’) यानी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के खिलाफ भी प्रस्ताव पारित कर दिया है। कर्नाटक सरकार का मानना है कि यह व्यवस्था लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। बीजेपी की लंबे समय से मांग रही है कि देश में एक बार में चुनाव होने चाहिए, क्योंकि इससे धन और समय की बचत होगी। इस व्यवस्था के विरोधियों का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो फिर स्थानीय मुद्दे चुनाव के समय राष्ट्रीय मुद्दों के बीच दब जाएंगे।
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केंद्र सरकार को चुनौती

कर्नाटक सरकार का यह प्रस्ताव नीट और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (‘One Nation, One Election’) की व्यवस्था के खिलाफ एक मजबूत संदेश देता है। नीट के खिलाफ यह कदम राज्य की सरकार का यह मानना दर्शाता है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है और राज्य सरकार को अधिकार दिए जाने चाहिए कि वे अपने तरीके से छात्रों को मेडिकल एडमिशन दे सकें।
नीट परीक्षा का प्रभाव
नीट की परीक्षा ग्रामीण और गरीब छात्रों के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है। इसकी अनियमितताओं और धांधली के कारण छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ रहा है। नीट परीक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी पेपर को रद्द करने की मांग को ठुकरा दिया है। ऐसे में कर्नाटक सरकार का यह प्रस्ताव छात्रों के हित में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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नीट का मुद्दा और उसकी चुनौतियाँ
नीट परीक्षा में हुई धांधली ने शिक्षा व्यवस्था को हिला कर रख दिया है। कर्नाटक सरकार का यह कदम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है कि राज्य सरकारें केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ अपने अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार हैं। यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है और भविष्य में नीट और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के मुद्दे पर क्या कदम उठाए जाते हैं।

कर्नाटक विधानसभा का नीट के खिलाफ यह प्रस्ताव छात्रों के हित में एक सकारात्मक कदम है। नीट परीक्षा की अनियमितताओं और धांधली के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार की यह मांग उचित है कि छात्रों को राज्य स्तर पर आयोजित परीक्षा के आधार पर मेडिकल एडमिशन दिया जाए। इसके साथ ही, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के खिलाफ भी कर्नाटक सरकार का विरोध लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। इससे स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मुद्दों के बीच दबने से बचाया जा सकेगा। यह आवश्यक है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर शिक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाएं और छात्रों के भविष्य को सुरक्षित करें। नीट (NEET) परीक्षा की वर्तमान स्थिति में सुधार करना और छात्रों को एक निष्पक्ष और पारदर्शी प्रणाली प्रदान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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