Demand of Bhil Pradesh: आदिवासी समाज ने बांसवाड़ा (Banswara) में आयोजित एक सांस्कृतिक महारैली में एक बड़ा कदम उठाते हुए ‘भील प्रदेश’ के गठन की मांग को जोर-शोर से उठाया। इस प्रस्ताव के तहत राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के कुल 49 जिलों को मिलाकर एक नया प्रदेश बनाने की अपील की गई है। विशेष रूप से, राजस्थान के पुराने 33 जिलों में से उदयपुर समेत 12 जिलों को इसमें शामिल करने की मांग की गई है।
आदिवासी समाज की प्रमुख मांगें
मंच पर उपस्थित आदिवासी नेताओं ने स्पष्ट किया कि वे एक ऐसा प्रदेश चाहते हैं जहाँ प्रशासनिक पदों पर आदिवासी समुदाय के लोग ही नियुक्त किए जाएं। इसमें कलेक्टर, एसपी, एसडीएम समेत सभी सरकारी पदाधिकारी आदिवासी होंगे। इसके अलावा, आदिवासी समाज ने केंद्र शासित प्रदेशों को भी शामिल करने की मांग की है। सांस्कृतिक महारैली में भंवरलाल ने कहा कि मानगढ़ पर गोविंद गुरु द्वारा शुरू किया गया आंदोलन आदिवासी समाज को एकजुट करने का प्रयास था, जो अब भी अधूरा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह एक लोकतांत्रिक मांग है और इसका संबंध जाति या भाषा से नहीं है। भंवरलाल ने उम्मीद जताई कि भील प्रदेश की मांग समय पर पूरी होगी।
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इतिहासकारों ने इस मांग को दबाया
सांसद राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) ने सभा में कहा कि आदिवासी समाज ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था और उनका आंदोलन भील प्रांत की स्थापना के लिए था। उन्होंने आरोप लगाया कि इतिहासकारों ने इस मांग को दबाया और भारत को चार राज्यों में विभाजित किया। बागीदौरा विधायक जयकृष्ण पटेल ने भी टिप्पणी की कि जब आदिवासी समाज ने आवाज उठाई, तो उसे नक्सलवादी करार दिया गया, जबकि मुस्लिम समाज को आतंकवादी कहा गया।
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जनजाति उपयोजना और आरक्षण की मांग
सभा में वक्ताओं ने स्थानीय स्तर पर जनजाति उपयोजना क्षेत्र में पांचवीं अनुसूची लागू करने और जनसंख्या के अनुपात में आदिवासी समाज को आरक्षण देने की भी मांग की। इस दौरान आदिवासी समाज के नेताओं ने जोर देकर कहा कि उनकी मांगें लोकतांत्रिक हैं और उन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
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राज्य सरकार और केंद्रीय प्रतिक्रिया
हालांकि आदिवासी समाज की इस मांग का राज्य सरकार ने विरोध किया है। जनजाति विकास मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने इसे जाति आधारित मांग करार दिया और कहा कि जाति के आधार पर नया राज्य नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने धर्म बदलने वाले आदिवासियों को आरक्षण का लाभ न देने की भी बात की। सांसद राजकुमार रोत ने कहा कि भील प्रदेश की मांग नई नहीं है और भारत आदिवासी पार्टी इसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सामने मजबूती से पेश करेगी।
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इन क्षेत्रों को भील प्रदेश में शामिल करने की मांग
राजस्थान – बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां, पाली
गुजरात के – अरवल्ली, महीसागर, दाहोद, पंचमहल, सूरत, बड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदेपुर, नर्मदा, साबरकांठा, बनासकांठा, भरूच, वलसाड़
मध्यप्रदेश के – इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी, अलीराजपुर
महाराष्ट्र के – नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर, नंदुरबार
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अन्य राज्यों का समर्थन
संस्कृतिक सम्मेलन के नाम पर आयोजित इस कार्यक्रम में राजस्थान के अलावा गुजरात, मध्यप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और दादर नगर हवेली से भी समाज जन शामिल हुए। इन जिलों से भी अपने-अपने राज्यों को अलग करने की मांग की गई। रैली में एक आदिवासी सांसद और एक विधायक ने भी भाग लिया। भील प्रदेश की मांग आदिवासी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है। इसके माध्यम से आदिवासी समाज ने अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अधिकारों को पुनः स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा और निर्णय की आवश्यकता है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मांग पर केंद्र और राज्य सरकारों का क्या रुख होता है।
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