Rahul Gandhi On Budget: संसद के मॉनसून सत्र में आज राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने बजट पर चर्चा के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर कड़े हमले किए। उन्होंने कहा कि देश का हर युवा पेपर लीक पर वित्त मंत्री का जवाब सुनना चाहता था और इस बजट से किसान भी असंतुष्ट हैं। राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा कि केंद्र सरकार ने कोविड के दौरान छोटे व्यवसायों को खत्म कर दिया, जिससे देश की रीढ़ की हड्डी टूट गई। उन्होंने कहा कि बजट में इंटर्नशिप प्रोग्राम की बात की गई है, जिसमें 500 बड़ी कंपनियों में इंटर्नशिप दी जाएगी, लेकिन 99% युवाओं को इससे कोई फायदा नहीं होगा। राहुल ने कहा, “आपने पहले टांग तोड़ दी और फिर बाद में बैंडेज लगा रहे हैं।”
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अडानी-अंबानी का नाम लेकर बोला हमला
राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर सीधा हमला करते हुए पहले अडानी और अंबानी का नाम लिया और फिर कहा कि देश की अर्थव्यवस्था केवल दो लोगों के हाथों में है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा टोके जाने पर उन्होंने कहा, “अब मैं नाम नहीं लूंगा लेकिन ए1 और ए2 कह दूंगा।” उन्होंने कहा कि सरकार ने रोजगार के क्षेत्र में कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं और यह बजट सिर्फ दिखावा है।
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21वीं सदी का नया चक्रव्यूह
राहुल गांधी ने कहा कि देश में 21वीं सदी में नया चक्रव्यूह रचा जा रहा है, जिसमें युवाओं और किसानों को फंसाने का काम किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस बजट में युवाओं के लिए कुछ भी ठोस नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि बजट में पेश किया गया इंटर्नशिप प्रोग्राम केवल एक मजाक है और युवाओं के साथ धोखा है। राहुल गांधी ने कहा कि बजट में वित्त मंत्री ने पेपर लीक पर एक भी शब्द नहीं बोला और शिक्षा पर 20 साल में सबसे कम बजट दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि बजट में सरकार ने मध्यम वर्ग के साथ धोखा किया है। उन्होंने कहा, “मध्यम वर्ग सरकार का साथ छोड़कर ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ आ रहा है।”
राहुल गांधी: बजट लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ
राहुल गांधी ने अपने भाषण के अंत में कहा कि यह बजट लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ है और यह सरकार युवाओं और किसानों के हित में नहीं है। राहुल गांधी के इस भाषण ने सरकार के बजट पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उनके आरोपों और बजट के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। राहुल गांधी का कहना है कि वास्तव में यह बजट युवाओं और किसानों के लिए नुकसानदायक है, तो सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। लोकतंत्र की यही परख है कि जनता की आवाज़ सुनी जाए और उनके हितों की रक्षा की जाए।
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