Prime Chaupal: भारत गांवों का देश है। यही गांव हमारी संस्कृति, हमारी पहचान और हमारी असली ताकत हैं, लेकिन सोचिए, जब इन्हीं गांवों के साथ सौतेला व्यवहार हो, जब उनके विकास की जिम्मेदारी जिन पर हो वही अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लें, तो हालात क्या होंगे? ऐसा ही कुछ देखने को मिला लखनऊ जिले की मलिहाबाद तहसील के ग्राम पंचायत हरिहरपुर में।
आपको बता दें कि हरिहरपुर की कहानी केवल एक गांव की नहीं है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश के कई ग्रामीण अंचलों की एक जैसी तस्वीर पेश करती है। जरूरत है कि ऐसे मामलों में प्रशासन सख्ती से कार्रवाई करे और ग्रामीण विकास की योजनाओं को सही मायनों में धरातल पर उतारा जाए। क्योंकि जब तक गांव मजबूत नहीं होंगे, तब तक देश की नींव भी मजबूत नहीं हो सकती।
हरिहरपुर गांव की जमीनी हकीकत
यहां के हालात इस कदर बदतर हैं कि किसी को भी देखकर हैरानी होगी कि ये गांव 21वीं सदी के भारत का हिस्सा है। सरकारी योजनाओं के दावे चाहे जितने किए जाएं, लेकिन जमीनी सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। सामुदायिक शौचालय, जो ग्रामीणों के लिए बनाए गए थे, या तो पूरी तरह से बंद पड़े हैं, और जो खुले भी हैं, वहां गंदगी का ऐसा आलम है कि कोई इस्तेमाल करने की सोच भी नहीं सकता।
स्वच्छ भारत अभियान की खुली पोल
स्वच्छता अभियान को लेकर बड़े-बड़े प्रचार-प्रसार होते हैं, लेकिन हरिहरपुर गांव में इस अभियान की सच्चाई बेहद शर्मनाक है। न गलियों की सफाई होती है, न ही कूड़े-कचरे के निस्तारण की कोई व्यवस्था। पूरे गांव में गंदगी का अंबार लगा हुआ है। नालियां बजबजा रही हैं और मच्छरों का प्रकोप आम है।
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
गांव में न तो कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ठीक से काम कर रहा है और न ही शिक्षा व्यवस्था पर कोई ध्यान दिया जा रहा है। स्कूलों की हालत जर्जर है और अस्पतालों में जरूरी दवाइयों से लेकर स्टाफ तक की भारी कमी है। ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम प्रधान ने विकास के नाम पर केवल कागज़ों में काम किया है।
सरकारी योजनाएं चहेतों की झोली में
केंद्र और राज्य सरकार की ओर से ग्रामीण विकास के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन हरिहरपुर में इन योजनाओं का लाभ सिर्फ चुनिंदा लोगों को ही मिल रहा है। आरोप हैं कि जो वाकई में पात्र हैं, उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है और प्रधान के करीबी लोगों को योजनाओं का लाभ दिलवाया जाता है।
टूटी सड़कें और गड्ढों का राज
गांव की सड़कें इतनी खराब हैं कि यह समझना मुश्किल हो जाता है कि सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क। बारिश के दिनों में हालात और भी खराब हो जाते हैं। मिट्टी के कच्चे मकान, टूटी हुई दीवारें और सड़क पर जमा पानी इस बात की गवाही देते हैं कि यहां विकास की कोई किरण नहीं पहुंची।