CM Chandrababu Naidu VS Stalin: हाल के दिनों में दक्षिण भारत के दो प्रमुख मुख्यमंत्रियों के जनसंख्या वृद्धि पर दिए गए बयानों ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू (CM Chandrababu Naidu) और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन (MK Stalin) ने जनसंख्या (Population) बढ़ाने की अपील की है। जहां नायडू ने “दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले” लोगों के लिए विशेष प्रावधान लाने की बात की, वहीं स्टालिन ने तो यहाँ तक कहा कि एक परिवार को 16 बच्चे पैदा करने चाहिए। इन बयानों के पीछे जो मकसद है, वह महज जनसंख्या नीति का पुनर्विचार नहीं, बल्कि राजनीतिक है, जिसका संबंध संसदीय सीटों के परिसीमन से है।
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आबादी और संसदीय सीटों का गणित है शामिल
भारत की संसदीय सीटों का निर्धारण काफी हद तक जनसंख्या पर आधारित है। वर्तमान में लोकसभा की सीटों की संख्या और संसाधनों के आवंटन का मुख्य आधार जनसंख्या है। जनसंख्या के अनुपात में संसदीय सीटें और संसाधन आवंटित किए जाते हैं। इस समय नियम के मुताबिक, लगभग 10 लाख की जनसंख्या पर एक लोकसभा सीट मानी जाती है। इसी आधार पर लोकसभा और विधानसभा में सीटों का वितरण होता है।
दक्षिणी राज्यों, खासकर तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश, की जन्मदर उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में काफी कम है। उत्तर भारत के राज्यों में जन्मदर उच्च होने के कारण, वहां जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और उसी अनुपात में लोकसभा सीटें भी बढ़ने की संभावना है। परिसीमन आयोग के आने वाले फैसलों के बाद उत्तर भारतीय राज्यों की लोकसभा सीटें बढ़ेंगी, जबकि दक्षिणी राज्यों में सीटों की संख्या स्थिर या घट सकती है।
चंद्रबाबू नायडू: ग्रामीण इलाकों में वृद्धावस्था की बढ़ती चिंता
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने 20 अक्टूबर को एक सभा के दौरान कहा कि राज्य में वृद्ध आबादी बढ़ रही है और युवाओं का शहरीकरण तेजी से हो रहा है। उनका कहना था कि आंध्र प्रदेश और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों को अधिक बच्चों को जन्म देना चाहिए ताकि राज्य की युवा जनसंख्या को बनाए रखा जा सके। उन्होंने तो यह तक कहा कि दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले लोगों को स्थानीय चुनाव में पात्रता प्रदान करने के लिए एक नया कानून लाने की जरूरत है। नायडू के इस बयान का उद्देश्य राज्य की वृद्ध होती जनसंख्या और युवा वर्ग के शहरीकरण के कारण गांवों में घटती जनसंख्या के मुद्दे को उठाना है। लेकिन इसके पीछे राजनीतिक कारण भी साफ नजर आते हैं।
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स्टालिन की बातों में साफ़ दिखा राजनीतिक मकसद
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी इसी दिशा में बयान दिया, लेकिन उनके बयान का मकसद थोड़ा अधिक राजनीतिक था। स्टालिन ने कहा कि परिवारों को 16-16 बच्चे पैदा करने चाहिए। उनके इस बयान के पीछे मुख्य कारण संसद में तमिलनाडु की सीटों की संख्या को बरकरार रखना और बढ़ाना है। स्टालिन ने कहा कि पहले तमिलनाडु में परिवारों को संपत्ति का आशीर्वाद दिया जाता था, अब उन्हें 16 बच्चों का आशीर्वाद मिलना चाहिए। यह बयान स्पष्ट रूप से लोकसभा में तमिलनाडु की सीटों को बनाए रखने के प्रयास का संकेत है, क्योंकि परिसीमन के बाद उत्तर भारतीय राज्यों की सीटों की संख्या में बढ़ोतरी का अनुमान है, जबकि दक्षिणी राज्यों की सीटें घट सकती हैं।
दक्षिण और उत्तर के बीच जनसंख्या का असंतुलन
दक्षिणी राज्यों के नेतृत्व को यह चिंता है कि उत्तर भारत की बढ़ती जनसंख्या के कारण संसद में उनकी राजनीतिक शक्ति कम हो सकती है। वर्तमान में, 1971 की जनगणना के आधार पर संसदीय सीटों का परिसीमन तय किया गया है। इस समय लोकसभा में 545 सीटें हैं, जो 1971 की 55 करोड़ की जनसंख्या पर आधारित हैं। 2026 में जब परिसीमन होगा, तो यह नई जनसंख्या पर आधारित होगा, जिसमें उत्तर भारत की जनसंख्या बहुत अधिक है।
उत्तर भारत के राज्यों में जनसंख्या बढ़ने से संसाधनों और राजनीतिक प्रभाव का ज्यादा हिस्सा उन राज्यों को मिलने की संभावना है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान में 80 लोकसभा सीटें हैं, जबकि परिसीमन के बाद यह संख्या बढ़कर 128 हो सकती है। बिहार में भी 30 सीटों का इजाफा हो सकता है। इसी तरह मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में भी लोकसभा सीटों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
दूसरी ओर, दक्षिणी राज्यों में सीटों की संख्या स्थिर या घट सकती है। तमिलनाडु में 39 सीटें हैं, जबकि परिसीमन के बाद यह संख्या घटकर 36 हो सकती है। केरल की सीटों में भी कमी का अनुमान है। यही कारण है कि दक्षिण भारतीय नेताओं ने जनसंख्या बढ़ाने की अपील की है, ताकि उनके राज्यों की राजनीतिक ताकत कमजोर न हो।
जनसंख्या नीति में बदलाव: क्या दक्षिण के लिए आवश्यक कदम?
दक्षिण भारत के राज्यों में जन्मदर नियंत्रण की नीतियां काफी हद तक सफल रही हैं, जिससे वहां की आबादी स्थिर हो गई है। लेकिन अब वही नीति इन राज्यों के लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदायक साबित हो रही है। उत्तर भारत की बढ़ती आबादी के कारण संसाधनों और सीटों का बड़ा हिस्सा उन्हें मिल सकता है। यही कारण है कि चंद्रबाबू नायडू और स्टालिन ने जनसंख्या बढ़ाने की अपील की है।
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क्या नई जनसंख्या नीति की जरूरत है?
सवाल यह उठता है कि क्या देश को अब एक नई जनसंख्या नीति की जरूरत है? दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में सफलता पाई है, जबकि उत्तर भारतीय राज्यों में जनसंख्या तेजी से बढ़ी है। अगर इसी तरह असंतुलन जारी रहा, तो दक्षिण भारतीय राज्यों की राजनीतिक और आर्थिक शक्ति कम हो सकती है।
चंद्रबाबू नायडू और स्टालिन की अपील इसी दिशा में एक कदम हो सकती है। हालांकि, इस तरह की अपील राजनीतिक मकसद से प्रेरित जरूर है, लेकिन इसका सीधा असर जनसंख्या नीति पर पड़ सकता है। आने वाले समय में देखना होगा कि देश की जनसंख्या नीति किस दिशा में जाती है, और क्या इसे परिसीमन के मद्देनजर फिर से विचार किया जाएगा।