2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पूरे देश भर में जातीय जनगणना औऱ आरक्षण को लेकर कई राज्यों में आंदोलन शुरू हो गया है वही एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में आरक्षण को लेकर राजनीतिक गलियारों में जहाज हिचकोले लेने लगा है. इस बार सत्ता के जहाज को डांवाडोल करने वाली लहर मराठा आरक्षण आंदोलन की है. आंदोलन सिर्फ महाराष्ट्र में नही देश के तमाम राज्यों जैसे राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश , पक्षिम बंगाल जैसे राज्यों में आरक्षण कि माँग को लेकर आंदोलन तेज होता जा रहा हैं वही बीजेपी-शिवसेना (शिंदे) गुट की सरकार ने सत्ता में आने के बाद पहली बार विपक्ष के विचारों को जानने की पहल की है.
बता दें मराठा समुदाय राज्य की आबादी का करीब एक-तिहाई है. यह समुदाय महाराष्ट्र की राजनीति में अच्छी खासी पकड़ रखता है. समुदाय सरकारी नौकरी और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहा है. हालांकि यह मांग आज की नहीं है, बल्कि इसकी शुरुआत 32 साल पहले 1981 में हुई थी
आपको बता दें मराठा आरक्षण को लेकर इस तरह का पहला विरोध प्रदर्शन करीब 32 साल पहले मथाडी लेबर यूनियन के नेता अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में किया था. उसके बाद 2023 में 1 सितंबर से इस विरोध ने फिर से सर उठाना शुरू किया. तब आरक्षण की मांग के लिए प्रदर्शन कर रहे मराठाओं पर जालना में पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया था. यह वही जगह थी जहां जारांगे-पाटिल भूख हड़ताल पर बैठे थे. दशकों पुरानी इस मांग का अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका है. हालांकि 2014 में सीएम पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने नारायण राणे आयोग की सिफारिशों के आधार पर मराठों को 16 फीसदी आरक्षण देने के लिए एक अध्यादेश पेश किया था.
मराठा आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट से झटका
इसके बाद 2018 में व्यापक विरोध के बावजूद महाराष्ट्र की राज्य सरकार ने मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया. बंबई उच्च न्यायालय ने इसे घटा कर नौकरियों में 13 फीसदी और शिक्षा में 12 फीसदी कर दिया. 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के इस कदम को रद्द कर दिया. मौजूदा विरोध की तेजी को देखते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने घोषणा की थी कि मध्य महाराष्ट्र क्षेत्र के मराठा अगर निजाम युग से कुनबी के रूप में वर्गीकृत करने वाला प्रमाण पत्र पेश कर दें तो वे ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं.
आपको बता दें कुछ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जे पी नड्डा ने दावा किया कि पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार और पंजाब की सरकारें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को नौकरियों में आरक्षण से वंचित कर रही हैं और उन्होंने तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी पर मुसलमानों का पक्ष लेने का आरोप लगाया. बिलासपुर में संवाददाता सम्मेलन में नड्डा ने कहा कि ये गैर-भाजपा शासित राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के साथ भेदभाव कर रहे हैं क्योंकि उनकी कथनी और करनी में अंतर है.
बिहार के संदर्भ में, नड्डा ने कहा कि वहां ‘‘जाति जनगणना” शुरू की गई लेकिन ओबीसी समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का हवाला देते हुए भाजपा प्रमुख ने कहा, ‘‘ओबीसी के हितैषी होने का दावा करने वाले पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान और पंजाब राज्य नौकरियों में आरक्षण के उनके अधिकार का हनन कर रहे हैं.”
साथ ही नड्डा ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी पर निशाना साधते हुए कहा कि राज्य में आरक्षण का लाभ पाने वाले 91.5 फीसदी लोग मुस्लिम हैं जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग इससे वंचित है. उन्होंने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल में कुल 179 जातियों को ओबीसी सूची में शामिल किया गया है, जिनमें से 118 जातियां मुस्लिम समुदाय की हैं और ‘‘बांग्लादेश से आए घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को ओबीसी प्रमाणपत्र” देने का प्रयास किया जा रहा है.
”वही नड्डा ने दावा किया कि 2011 में, 108 ओबीसी जातियां थीं, जिनमें 53 मुस्लिम और 55 हिंदू जातियां शामिल थीं, लेकिन 71 नई जातियों को जोड़ने के बाद, मुस्लिम ओबीसी जातियों की संख्या 118 हो गई.उन्होंने कहा कि इसी तरह, पंजाब में ओबीसी के लिए कोटा 25 प्रतिशत है, लेकिन केवल 12 प्रतिशत ओबीसी समुदायों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है, जबकि राजस्थान में सात जिलों को आदिवासी जिलों के रूप में घोषित किया गया है, जिसमें ओबीसी के लिए कोई आरक्षण नहीं है. नड्डा ने इस संबंध में एनसीबीसी से आवश्यक कदम उठाने का अनुरोध किया.
राजस्थान में जाट समुदाय का आरक्षण ..
आपको बता दें राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाला है अभी से वहा जाट समुदाय ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई और साथ ही अन्य पिछाड़ा वर्ग के आरक्षण को 21 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की मांग भी की है. राजस्थान में जाट समुदाय ओबीसी में आता है. ओबीसी में सबसे बड़ी संख्या जाटों की है. ऐसे में जातिगत की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी आबादी और उनके प्रतिधिनित्व का सही आंकड़ा सामने आ सके. जाट महासभा राजाराम मील कहते हैं कि जाट समुदाय की जितनी आबादी है, उस लिहाज से न तो उसे राजनीति में प्रतिनिधित्व मिल रहा है और न ही सरकारी नौकरियों में
राजस्थान के चुनाव कि बात करे तो जाट समुदाय अहम रोल अदा करते है वही अभी से ही जाट समुदाय ने राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चलना शुरू कर दिया है. राज्य में ओबीसी के अंदर सबसे बड़ी आबादी जाट समुदाय की है. जयपुर में अपनी सियासी ताकत दिखाकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों एहसास करा दिया है. इतना ही नहीं जाट समुदाय का वोट जाट को देने का ऐलान करके अपने विधायकों की संख्या को भी बढ़ाने के लिए सियासी दांव भी चल दिया है. इतना ही नहीं ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की मांग करके गहलोत सरकार पर भी दबाव बना दिया है