Paris Paralympics 2024: पेरिस पैरालम्पिक में भारतीय खिलाड़ियों ने बहुत ही शानदार प्रदर्शन करते हुए पेरिस में भारत का परचम लहरा रहे हैं और जमकर मेडल जीत रहे हैं। अभी तक भारत के बैडमिंटन खिलाड़ियों ने जबरदस्त प्रदर्शन दिखाते हुए मेडल जीते, अब तीरंदाजों ने भी अपना शानदार प्रदर्शन दिखाया है। भारत की शीतल देवी और राकेश कुमार ने पेरिस 2024 पैरालंपिक में सोमवार को मिश्रित कंपाउंड ओपन तीरंदाजी स्पर्धा में इस जोड़ी ने इटली के एलोनोरा सार्टी और माटेओ बोनासिना के खिलाफ एक रोमांचक मैच में 156-155 के स्कोर के साथ देश की झोली में एक और मेडल डाल दिया। इन दोनों मिक्सड टीम काम्पाउंड इवेंट में शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया है।
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जीता कांस्य पदक
शीतल और राकेश के सामने इटली की एलोनोरा सार्टी और माटेओ बोनासिना की जोड़ी थी। भारतीय जोड़ी ने बेहद कम अंतर से ये जीत हासिल की है। शीतल और राकेश ने 156-155 से ये मुकाबला जीत मेडल अपने नाम किया। ये दूसरी बार है जब भारत ने पैरालंपिक्स में तीरंदाजी में कोई मेडल जीता है। भारत में पैरालम्पिक में तीरंदाजी का पदक हरविंदर सिंह ने 2020 में टोक्यो पैरालम्पिक में कांस्य पदक जीता था।
शीतल ने 17 साल की उम्र में रचा इतिहास
ये जीत शीतल के लिए बेहद खास है क्योंकि वह पैरालंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली देश की पहली महिला तीरंदाज हैं। 17 साल की उम्र में शीतल देवी इतिहास में भारत की सबसे कम उम्र की पैरालंपिक पदक विजेता बन गईं हैं। वह पेरिस 2024 में एकमात्र बिना हाथ वाली महिला तीरंदाज थीं। आखिरी के पलों में दोनों ही खिलाड़ियों ने दमदार खेल दिखाया। भारत ने 10, 9, 10, 10 के निशाने लगाए थे और 155 के स्कोर पर पहुंच गई थी। इटली की टीम ने 9, 9, 10, 10 का स्कोर कर इस स्कोर की बराबरी कर ली। यहां स्कोर 155-155 हो गया। हालांकि, काफी बारीकी से देखने के बाद जजों ने शीतल के आखिरी शॉट को नौ की जगह 10 अंक दिए और इस तरह भारत की झोली में मेडल आया। राकेश पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप और एशियन पैरा गेम्स में स्वर्ण पदक विजेता हैं।
एक दुर्लभ बीमारी से जूझ रही है शीतल
शीतल जो शूटिंग के लिए अपने पैरों का साहरा लेती है, वह फोकोमेलिया नामक एक दुर्लभ बीमारी से जूझ रही है। यह एक दुर्लभ जन्मजात विकार होता है, जिसके कारण अंग अविकसित रहते हैं। वही अगर बात करें राकेश की, तो 39 वर्षीय राकेश अपने बूढ़े माता-पिता की सहायता के लिए आर्थिक रूप से मदद कर रहे थे, उसी दौरान उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लग गई, जिसके कारण उन्हें अब उन्हें जिंदगी भर व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ रहा है। इसके बाद वह तनाव में चले गए। मगर भारत को खेल में पदक जीता कर उन्होंने यह साबित कर दिया है कि इन्सान की सोच अगर मजबूत हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
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