लोकसभा चुनाव: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
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बलिया का पौराणिक गाथा
यूपी की 80 सीटों में से एक बलिया हैं। वहीं अगर बात करें बलिया से जूड़े पौराणिक काल की तो यहाँ महर्षि भृगु के आश्रम में उनके पुत्र शुक्राचार्य द्वारा दानवराज दानवीर राजा बलि का यज्ञ सम्पन्न कराया गया था। संस्कृत में यज्ञ को याग कहा जाता है। जिससे इसका नाम बलियाग पड़ा था, जिसका अपभ्रंश बलिया है। कुछ विद्वानों का मत है कि यह बुलि राजाओं की राजधानी रहा है।
बलिया जिला भारत के यूपी का एक जिला हैं जिसका मुख्यालय बलिया हैं। बताते चले यह जिला आजमगढ़ मंडल के अन्तर्गत आता हैं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में इस जिले के निवासियों के विद्रोही तेवर के कारण इसे “बागी बलिया” के नाम से भी जाना जाता है। वहीं अगर बात करें तो जिले में ददरी-मेला यहाँ का प्रसिद्ध मेला है जो आश्विन मास में शहर की पूर्वी सीमा पर गंगा और सरयू नदियों के संगम पर स्थित एक मैदान पर मनाया जाता है। मऊ, आजमगढ़, देवरिया, गाजीपुर और वाराणसी के रूप में पास के जिलों के साथ नियमित संपर्क में रेल और सड़क के माध्यम से मौजूद है। यह बिहार की सीमा को छूता हुआ ज़िला है।
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बलिया का इतिहास
यूपी का जिला बलिया सन् 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर के बागी सैनिक मंगल पांडे का संबंध भी इसी जिले से है। बलिया का नाम बलिया राक्षस राजा राज बलि के नाम पर बताया गया कि बलिया ने बलिया को अपनी राजधानी बनाया था। बलिया 1 नवम्बर सन् 1879 में गाजीपुर से अलग हुआ, लगातार अशान्त रहने के कारण अग्रेजों ने इसे गाजीपुर से अलग कर दिया। वही 1942 के आंदोलन में बलिया के निवासियों ने स्थानीय अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फेंका था। चित्तू पांडेय के नेतृत्व में कुछ दिनों तक स्थानीय सरकार भी चली, लेकिन बाद में अंग्रेजों ने वापस अपनी सत्ता कायम कर ली थी। आपको बतादें कि भारत के पूर्व प्रधान मन्त्री चन्द्रशेखर भी इसी जिले के मूल निवासी थे।
आपात काल के बाद हुई क्राति के जनक तथा महान स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण भी इसी जिले के मूल निवासी थे। समाजवादी चिंतक तथा देश में ‘छोटे लोहिया’ के नाम से विख्यात जनेश्वर मिश्र भी बलिया के निवासी थे। वीर लोरिक का इतिहास इस ज़िले से जुड़ा हुआ है और उनकी वीरता के बारे में ये कहा गया है कि उन्होंने अपनी तलवार से ही पत्थर को दो हिस्सों में अलग अलग कर दिया था। आज भी वह पत्थर मौजूद है। बलिया की इन कहानीयों के कारण ही बलिया को “बागी बलिया” के नाम से भी जाना जाता है। बलिया ज़िले में छ्ह तहसीलें हैं – बलिया, बैरिया, बाँसडीह, बेलथरा रोड, रसड़ा और सिकंदरपुर। वहीं अगर बात करें यहां की फैमस डिश की तो बलिया ज़िले व पड़ोसी बिहार राज्य का पसंदीदा व्यंजन लिट्टी चोखा है। यहां का प्रमुख मंदिर भृगु मंदिर और कामेश्वर धाम हैं।
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बलिया की परंपरा
यूपी का जिला बलिया के परंपरा की माने तो हंस नगर (स्वान का शहर) 9.6 किमी बलिया से पूर्व कहा जाता है कि पौराणिक कथा से इसका नाम लेना है कि इस स्थान पर पवित्र नदी गंगा के पानी पीने से एक हंस एक आदमी और एक कौवा हंस में बदल गये थे। लगभग 137 किमी की दूरी पर बलिया से धर्मार्नव पोखरा नामक एक प्राचीन टैंक है जहां एक खुदाई से पता चला है कि हजारों ऋषि वहां तपस्या करते थे और उत्तर और पूर्व में वहां के पुराने अस्तित्व और प्राचीन वन के निशान थे, शायद प्राचीन का अवशेष इस जिले के कुछ अन्य स्थान भी वैदिक ऋषियों से जुड़े हुए हैं।
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वहीं अगर इस क्षेत्र का प्रारंभिक राजनीतिक इतिहास के बारे में जाने तो यहां की पुरानी परंपरा के अनुसार, एक मनु द्वारा स्थापित क्षत्रियों का सौर वंश, सबसे पहले ज्ञात वंश था, जिसने कोसला सरकार का एक व्यवस्थित रूप था और जिसमें मनु के सबसे बड़े बेटे इक्षवकू थे, वैदिक परंपरा में प्रसिद्ध पहला शासक था राम की राजगद्दी तक कई प्रसिद्ध राजाओं की उत्पत्ति हुई, जो इस वंश का सबसे बड़ा शासक था। तहसील रास्रा में लखनसार दीह का नाम भगवान राम के भाई लक्ष्मण के नाम पर रखा गया है, जिसने इस जगह पर जाना है और महादेव के सम्मान में इस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया है।
जिले के बारे में…
बलिया नाम की उत्पत्ति के पीछे दो कहानियाँ हैं सबसे पहले, यह माना जाता है कि बलिया शहर का नाम भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध संत वाल्मीकि के नाम से लिया गया है। स्थानीय लोगों का मानना है कि वाल्मीकि, रामायण के लेखक इस शहर में रहते थे। वहीं दूसरी कहानी के माने तो मिट्टी की गुणवत्ता के कारण शहर को बलिया के रूप में नाम दिया गया है। बलिया में एक रेतीली मिट्टी होती है और इस प्रकार की मिट्टी को ‘बल्लुआ’ के रूप में जाना जाता है|यह माना जाता है कि इस शहर को शुरू में ‘बालियान’ कहा जाता था और फिर ‘बलिया’ के रूप में बदल दिया गया था।
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बलिया उत्तर प्रदेश के चरम उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। यह पश्चिम में मऊ, उत्तर में देवरिया, उत्तर-पूर्वी भाग में बिहार और दक्षिण पश्चिमी भाग में गाजीपुर से घिरा हुआ है। शहर एक अनियमित आकार में है और दो प्रमुख नदियों के संगम पर स्थित है। गंगा और घागरा, ये नदियां शहर को दूसरे पड़ोसी शहरों से अलग करती हैं। जैसे गंगा बिहार से और घागरा देवरिया से बलिया को अलग करती है। बलिया शहर, वाराणसी से सिर्फ एक सौ तीस-पैंतीस किलोमीटर दूर है। बलिया की स्थानीय भाषा हिंदी है। हालांकि,आपको भोजपुरी के स्पर्श के साथ हिंदी में बात कर रहे लोग मिलेंगे। बलिया के स्थानीय लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहार हैं: चतुर पूजा, गढ़ उत्सव और छट पूजा आदि।
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बलिया के प्रसिद्ध स्थान
बलिया में प्रसिद्ध जगहें सुरहा ताल, पक्षी अभयारण्य, हनुमान मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, भृगु आश्रम और अन्य मंदिर शामिल हैं।
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बलिया तक पहुंचने का मार्ग
सड़क मार्ग से: बलिया वाराणसी, पटना और गोरखपुर जैसे प्रमुख शहरों के साथ सड़क से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप इन मार्गों में से किसी भी मार्ग से सड़क के माध्यम से बलिया तक पहुंच सकते हैं।
रेल द्वारा: बलिया शहर बलिया के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है। हालांकि, अन्य रेलवे स्टेशन में बेलथरा रोड, रसरा और सुरैमनपुर शामिल हैं।
वायु से: बलिया के निकटतम हवाई अड्डा पटना और वाराणसी है। पटना हवाई अड्डे बलिया से करीब एक सौ चालीस किलोमीटर की दूरी पर है, और वाराणसी हवाई अड्डे बलिया से लगभग एक सौ तीस किलोमीटर दूर है। बलिया तक पहुंचने के लिए प्रत्येक हवाई अड्डे से सड़क के माध्यम से लगभग तीन घंटे लगते हैं।
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बलिया की लोकप्रिय हस्तियां
कई प्रसिद्ध व्यक्तित्व में स्वतंत्रता सेनानियों, भारतीय राजनेताओं और उपन्यासकार शामिल हैं कुछ प्रसिद्ध नामों में निम्न शामिल हैं:
मंगल पांडे
चित्तु पांडे
चंद्र शेखर (भारत के प्रधान मंत्री 9वें लोक सभा में)
जानेश्वर मिश्र
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क्या है बलिया का जातीय समीकरण?
बलिया लोकसभा सीट का जातीय समीकरण काफी उलझा हुआ है। इस कारण इस सीट पर चुनावी मुकाबला काफी अलग प्रकार का होता है। बलिया लोकसभा सीट पर सबसे बड़ी आबादी ब्राह्मणों की है। यहां करीब तीन लाख ब्राह्मण हैं। इसके बाद यादव, राजपूत और दलित वोट हैं। तीनों वर्ग की आबादी करीब ढाई-ढाई लाख है। मुस्लिम वोट बैंक भी इस क्षेत्र में करीब एक लाख है। बलिया के दोआबा इलाके में ब्राह्मण सबसे अधिक हैं। ऐसे में भाजपा और विपक्ष की ओर से इस बार के चुनाव में किस प्रकार से उम्मीदवार का चयन होता है, देखना दिलचस्प होगा।
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बलिया लोकसभा सीट पर हुए अब तक के चुनाव का रिजल्ट
चुनाव वर्ष – प्रत्याशी का नाम – पार्टी का नाम
2019 – वीरेंद्र सिंह मस्त – भाजपा
2014 – भरत सिंह – भाजपा
2009 – नीरज शेखर – समाजवादी पार्टी
2004 – चंद्रशेखर – समाजवादी पार्टी
1999 – चंद्रशेखर – समाजवादी पार्टी
1998 – चंद्रशेखर – समाजवादी पार्टी
1996 – चंद्रशेखर – समाजवादी पार्टी
1991 – चंद्रशेखर – समाजवादी पार्टी
1989 – चंद्रशेखर – जनता दल
1984 – जगन्नाथ चौधरी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1980 – चंद्रशेखर – जनता दल
1977 – चंद्रशेखर – जनता दल
1971 – चंद्रिका प्रसाद – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1967 – चंद्रिका प्रसाद – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1962 – मुरली मनोहर – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1957 – राधा मोहन – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1952 – राम नगीना सिंह – सोशलिस्ट पार्टी
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बलिया का राजनीतिक दौर
लोकसभा चुनाव को लेकर देखा जाएं तो बलिया का योगदान अहम है। बलिया की धरती ने एक प्रधानमंत्री दिया जिसके चलते यह क्षेत्र पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की कर्मभूमि के नाम से जानी जाती है। बलिया लोकसभा सीट से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर 8 बार सांसद रहे। बलिया के निवासियों के विद्रोही तेवर के कारण इसे बागी बलिया के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के संसदीय क्षेत्र में बलिया लोकसभा का अपना अहम योगदान है। ब्रिटिश राज में भी बलिया शहर अपने त्याग, बलिदान और साहस के लिए जाना गया। इस शहर का आजादी की लड़ाई में अहम योगदान रहा। मंगल पांडे, चित्तू पांडे, जय प्रकाश नारायण और हजारी प्रसाद द्विवेदी समेत कई विभूतियों के अलावा चंद्रशेखर भी देश को दिया।
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इस जिले का राजनीतिक इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। बलिया के संसदीय इतिहास की बात की जाए तो यह सीट पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सीट के लिए जानी जाती है। चंद्रशेखर ने 1977 में बलिया से जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे थे। 1980 के चुनाव में भी जीत हासिल की, लेकिन 1984 में हार गए। हालांकि इसके बाद वह यहां से लगातार 6 बार चुनाव जीते और उन्होंने 4 बार जगन्नाथ चौधरी (1980,1989, 1991,1996) को हराया।
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देश के नौंवे प्रधानमंत्री
चंद्रशेखर 10 नवंबर, 1990 में देश के नौंवे प्रधानमंत्री बने, लेकिन गठबंधन की यह सरकार महज 7 महीने ही चली और 21 जून 1991 को यह सरकार गिर गई। 8 बार यहां से सांसद रहे चंद्रशेखर का निधन जुलाई, 2007 में हो जाने से उपचुनाव कराया गया, जिसमें उनके बेटे नीरज शेखर ने जीत हासिल की।
2009 के लोकसभा चुनाव में भी नीरज को जीत मिली, लेकिन 2014 के चुनाव में नीरज को भरत सिंह ने हरा दिया। बलिया संसदीय सीट से बीजेपी को पहली जीत 2014 में मिली। बलिया 1952 में गाजीपुर के साथ संयुक्त संसदीय क्षेत्र के रूप में शामिल था और राम नगीना सिंह यहां से पहले सांसद बने। वहीं 2019 की बात करें तो वीरेंद्र सिंह मस्त भाजपा से यहां पर मौजूद हैं, अब देखना यह है कि लोकसभा चुनाव में कौन बलिया से बाजी मारेगा।