लोकसभा चुनाव 2024: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
आपको बता दे कि वर्तमान में सदन में 543 सीटें हैं। जो अधिकतम 543 निर्वाचित सदस्यों के चुनाव से बनती हैं। मगर जब यूपी की बात करेंगे तो यूपी में 80 सीटें हैं।
लोक सभा की सीटें 29 राज्यों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों के बीच विभाजित है:
1- यूपी में 80 सीटें हैं।
2- वहीं केन्द्र शासित प्रदेश की बात करें तो 8 हैं।
3- आन्ध्र प्रदेश में 25 सीटें हैं।
4- अरुणाचल प्रदेश में 2 सीटें हैं।
5- असम में 14 सीटे हैं।
6- बिहार में 40 सीटें हैं।
7- छत्तीसगढ़ में 11 सीटें हैं।
8- गोवा में 1 सीटें हैं।
9- गुजरात में 26 सीटें हैं।
10- हरियाणा में 10 सीटें हैं।
11- हिमाचल प्रदेश में 4 सीटें हैं।
12- झारखंड में 14 सीटें हैं।
13- कर्नाटक में 28 सीटें हैं।
14- केरल में 20 सीटें हैं।
15- मध्य प्रदेश में 29 सीटें हैं।
16- महाराष्ट्र में 48 सीटें हैं।
17- मणिपुर में 2 सीटें हैं।
18- नागालैंड में 1 सीटें हैं।
19- उड़ीसा में 21 सीटें हैं।
20- पंजाब में 13 सीटें हैं।
21- राजस्थान में 25 सीटें हैं।
22- सिक्किम में 1 सीटें हैं।
23- तमिल नाडु में 39 सीटें हैं।
24- त्रिपुरा में 2 सीटें हैं।
25- उत्तराखंड में 5 सीटें हैं।
26- पश्चिम बंगाल में 42 सीटें हैं।
27- तेलंगाना में 17 सीटें हैं।
28- मेघालय में 0 सीटें हैं।
यूपी में लखनऊ की सीट
यूपी में लखनऊ पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमि रही है। अटल बिहारी का लखनऊ से खास लगाव रहा है। यहां से अटल बिहारी पांच बार सांसद चुने गए और यहीं से सांसद रहते हुए भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने हैं।
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भारत रत्न अटल बिहारी की लखनवी सियासत
लखनऊ जहां बीजेपी गढ़ काफी पहले से बना हुआ हैं। लोकसभा सीटों को लेकर 1991 में हुए आम चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार इस सीट पर जीत हासिल हुई थी, तब उन्होंने कांग्रेस के रंजीत सिंह को मात दी थी, उसके बाद तो मानों तो अटल बिहारी और लखनऊ का साथ हमेशा-हमेशा के लिए जुड़ गया हो गया। हालांकि 1919 से पहले भी अटल बिहारी दो बार इस सीट से चुनाव लड़ चुके थे।
पहला चुनाव 1957 में लड़े थे लेकिन जीत नहीं मिल पाई थी, फिर 1962 के चुनाव में भी मैदान में उतरे लेकिन हार का सामना करना पड़ा। जिसके बाद 1991 के बाद 1996 के चुनाव में अटल बिहारी एक बार फिर लखनऊ से ही चुनाव लड़े और उनके सामने समाजवादी पार्टी ने राज बब्बर को उतारा लेकिन लखनऊ में राज बब्बर का ग्लैमर नहीं चला और लखनऊ ने अपने चहेते नेता अटल बिहारी बाजपेयी को ही 52 फीसदी से ज्यादा वोट देकर लोकसभा भेजा। इसके बाद तो ये सिलसिला अनवरत 2004 तक जारी रहा, जब तक खुद राजनीति के अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा नहीं कर दी।
राजनीति से संन्यास के बाद किसके हाथ गई डोर
जब यूपी में अटल बिहारी बाजपेयी राजनीति से सन्यास 2009 में ले रहे थे और जब देश में लोकसभा के चुनाव होने थे तब बीजेपी में इस बात को लेकर काफी चिंता थी कि अब आखिर कौन अटल बिहारी बाजपेयी की इस विरासत को संभालेगा। उनकी इस सीट से आखिर कौन उम्मीदवार होगा और क्या जो उम्मीदवार होगा उसे उतना ही प्यार लखनऊ देगा जितना उसने अटल बिहारी वाजपयी को दिया। इस मुश्किल घड़ी में बीजेपी ने जिस नाम पर भरोसा जताया था वो थे लालजी टंडन जो वर्तमान में बिहार के राज्यपाल हैं।
बता दे कि लालजी टंडन अटल बिहारी के बेहद ही करीबी रहे हैं। अटल जी जब लखनऊ में रहा करते थे तो कई बार लालजी टंडन के यहां ही रुक जाते थे। यहीं जुड़ाव का फायदा लालजी टंडन को मिला और उन्हें 2009 में बीजेपी ने लखनऊ संसदीय सीट से अपना उम्मीदवार बनाया।
लालजी अटल जी के 1957 और 1962 के चुनावों में भी संगठन का जिम्मा संभाल चुके थे। 2009 में हुए लोकसभा के चुनाव में लालजी टंडन ने उस वक्त कांग्रेस की उम्मीदवार रहीं रीता बहुगुणा जोशी को लगभग 41000 वोटों से मात दी थी। फिर जब 2014 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तब बीजेपी ने बाबूजी(लालाजी) पर भरोसा नहीं जताया और इस सीट से पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह को उम्मीदवार बनाया। 2014 के चुनाव में राजनाथ सिंह ने कांग्रेस की उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी को लगभग 2 लाख 72 हजार 749 वोटों से मात दी और केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने।
लखनऊ में जातीय समीकरण
लखनऊ में जनगणना के मुताबिक जिले की कुल आबादी लगभग 50 लाख 90 हजार है। जिसमें लगभग में 71.1 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की है। इसके बाद लगभग 26.34 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। अनुसूचित जाति की आबादी यहां लगभग 14.5 प्रतिशत है, तो अनुसूचित जनजाति लगभग 0.2 फीसदी है। इसी तरह ब्राह्मण, राजपूत वोटर मिलकर कुल करीब 18 फीसदी हैं। ओबीसी मतदाता लगभग 28 फीसदी हैं।
लखनऊ का इतिहास
यूपी की राजधानी लखनऊ जो हमारी एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। इस शहर में फारसी-प्या, शिया नवाबों द्वारा संरक्षित सभ्य, सुंदर उद्यान, कविता, संगीत जैसी संस्कृति से जाना जाता है। ऐसे में लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में लोकप्रियता ज्यादा है। बतादे कि इसे पूर्व के गोल्डन सिटी, शिराज-ए-हिंद और भारत के कांस्टेंटिनोपल के नाम से भी जाना जाता है। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है।
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भारत सरकार की 2001 की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। आपको बता दे कि कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है।
भगवान राम की विरासत
ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। बताते चले कि लखनऊ प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत मानी जाती थी। जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को सौप दी थी। जिसके बाद लखनऊ को लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना जाता था। जिसका नाम बाद में बदल कर लखनऊ कर दिया गया था। आपको बता दे कि यहां से अयोध्या भी दूरी मात्र 80 मील है।
लक्ष्मणपुर कैसा बना लखनऊ
लखनऊ का नाम कैसे पड़ा इस पर मतभेद है। मुस्लिम इतिहासकारों के मतानुसार बिजनौर के शेख यहां आये और 1526 ई. में बसे और रहने के लिए उस समय के वास्तुविद लखना पासी की देखरेख में एक किला बनवाया जो लखना किला के नाम से जाना गया। समय के साथ धीरे-धीरे लखना किला लखनऊ में परिवर्तित हो गया। जिसे लखनपुर से बदल कर लखनऊ कर दिया गया।
वहीं लखनऊ के वर्तमान रुप को देखा जाएं तो इसकी स्थापना नवाब आसफ़ुद्दौला ने 1775 ई. में की थी। अवध के शासकों ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाकर इसे समृद्ध किया। लेकिन बाद के नवाब विलासी और निकम्मे सिद्ध हुए। जिसके बाद नवाबों के काहिल स्वभाव का यह परिणाम हुआ की आगे चलकर लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध को बिना युद्ध किये ही अधिग्रहण कर लिया और ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। 1850 में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश अधीनता स्वीकार कर ली। जिसके बाद लखनऊ के नवाबों का शासन इस प्रकार समाप्त हो गया था।
जानें राजनाथ सिंह का राजनीतिक सफर
यूपी की राजधानी लखनऊ के वर्तमान में राजनाथ सिंह सांसद हैं। साथ ही भारत के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ और वर्तमान में भारत के रक्षा मंत्री हैं। बता दे कि राजनाथ सिंह भारत के गृह मंत्री रह चुके हैं और वर्तमान में सत्ता दल भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष हैं। भाजपा की उत्तर प्रदेश जो राजनाथ का गृह राज्य भी है।
निष्कर्ष: लोकसभा चुनाव के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य है। यहां से सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीट आती हैं। इसलिए राजनीति में कहावत भी है कि यूपी से ही दिल्ली का सफर तय होता है। यही कारण है कि सभी पार्टियों का फोकस यूपी पर अधिक रहता है। वहीं चुनाव को लेकर अब तो गठबंधन भी बन गया हैं यानि कि अब NDA और I.N.D.I.A आमने-सामने की टक्कर पर हैं, फिलहाल देखा जाएं तो लम्बे समय से बीजेपी यूपी में छायी हुई हैं अब देखना हैं कि कौन इस बार यूपी में बाजी मारेगा।