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साल 2024 के लोकसभा चुनाव की टक्कर का शुरूआत हो चुकी है वही बीजेपी की अगुवाई वाली .टीम NDA को सीधे मुकाबाला देने के लिए विपक्ष INDIA नाम का गठबंनध पाट्री बनाई यानी विपक्ष की स्पेशल 26 बीजेपी की टीम 38 का विजय रथ रोकने का प्रयास करते नजर आने वाली है वही बीजेपी 9 साल के कामो के साथ लोकसभा में उतरने की पूरी तैयारी कर लिया है वही विपक्ष का कहना है कि बीजेपी सिर्फ कागजों पर काम दिखाते है जमीनी हकिकत जीरो है …
जिन पार्टी के सांसद नहीं, उनके गठबंधन में आने से किसे क्या फायदा होगा?
आपको बता दें ‘ये दोनों ही गठबंधनों के लिए अहम है। कई बार ग्राउंड पर समीकरण मजबूत करने के लिए ऐसे गठबंधन किए जाते हैं। इस गठबंधन का असर क्षेत्र, जाति, भाषा और समुदाय के हिसाब से होता है। उदाहरण के लिए जयंत चौधरी की आरएलडी को ही ले लीजिए। आरएलडी के पास अभी एक भी सांसद नहीं हैं। विधानसभा में भी छह सदस्य ही हैं। आरएलडी का प्रभाव सिर्फ पश्चिमी यूपी तक ही सीमित है। कुछ हद तक हरियाणा और राजस्थान में भी है। हालांकि, इसका ज्यादा फायदा पार्टी को नहीं मिलता है। जाट बिरादरी पर आरएलडी की पकड़ है। इसी तरह बिहार की हम, यूपी की सुभासपा, निषाद पार्टी जैसे दल भी हैं। जिनकी ताकत संसद में नहीं है, लेकिन क्षेत्र और जातीय आधार पर पकड़ जरूर है। इनके कोर वोटर्स हैं, जो कई सीटों पर अच्छा प्रभाव डालते हैं।’
किस राज्य में किस पार्टी की कितनी पकड़?
लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें यूपी में हैं। इनमें से 64 पर भाजपा, नौ पर बसपा, तीन पर समाजवादी पार्टी, दो पर अपना दल (एस) और एक पर कांग्रेस का कब्जा है। एक सीट फिलहाल खाली है। यहां गठबंधन के हिसाब से और संसद में सदस्यों के हिसाब से भी भाजपा मजबूत दिख रही है। भाजपा ने यूपी के कई अलग-अलग जातीय और क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ जोड़ा है। इसके विपरीत विपक्ष यहां बिखरा हुआ है। समाजवादी पार्टी, आरएलडी और कांग्रेस का ही यहां गठबंधन है। विपक्ष से ही बसपा, एआईएमआईएम अलग चुनाव लड़ेंगे। इस तरह अभी की स्थिति में तो भाजपा का पलड़ा भारी लग रहा है।
यूपी के बाद महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 48 सीटें हैं। पिछली बार भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था। तब भाजपा के 23 और शिवसेना के 18 सांसद चुने गए थे। यूपीए गठबंधन का हिस्सा रही एनसीपी के चार, कांग्रेस का एक उम्मीदवार चुना गया था। एआईएमआईएम का भी एक सांसद चुना गया था। अभी यहां एनसीपी और शिवसेना दोनों ही फूट पड़ चुकी है। दोनों के ही दो गुट बन चुके हैं। एक गुट एनडीए तो दूसरा इंडिया गठबंधन में है। अभी की स्थिति में महाराष्ट्र के अंदर एनडीए का गठबंधन मजबूत माना जा सकता है।
पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 42 सीटें हैं। 2019 में इनमें से 22 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस और 18 पर भाजपा की जीत हुई थी। बंगाल में चार बड़े दल हैं। इनमें टीएमसी, भाजपा, कांग्रेस, और सीपीएम है। अभी बंगाल के तीन दल एकसाथ आ गए हैं। इनमें टीएमसी, कांग्रेस और सीपीएम है। इनके आने से विपक्ष मजबूत तो हुआ है, लेकिन अभी सीट बंटवारे को लेकर जरूर तीनों के बीच विवाद हो सकता है। इसके अलट भाजपा अकेले चुनाव लड़ रही है, जिसका फायदा उसे मिल सकता है।
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। पिछली बार इनमें से 39 सीटों पर एनडीए उम्मीदवारों को जीत मिली थी। जेडीयू भी तब एनडीए का हिस्सा थी। 17 सीटों पर अभी भाजपा का कब्जा है। जेडीयू के 16 उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब हो गए थे। छह सीट पर लोजपा और एक पर कांग्रेस को जीत मिली थी। आरजेडी का कोई भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया था। अभी यहां जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और सीपीआई का गठबंधन है। वहीं, भाजपा ने भी क्षेत्रीय और जातीय हिसाब से नया समीकरण बना लिया है। भाजपा ने छोटे-छोटे दलों को अपने साथ जोड़ दिया है। इसका फायदा पार्टी को आने वाले चुनाव में मिल सकता है। हालांकि, अगर सीटों के बंटवारे को लेकर महागठबंधन सही फॉर्मूला तैयार कर ले तो भाजपा नीत गठबंधन को कड़ी चुनौती का सामना कर पड़ सकता है।
तमिलनाडु में 39 लोकसभा सीटें हैं। 2014 में इन सभी सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। हालांकि, 2019 में पासा पलट गया। एनडीए के खाते से सभी सीटें डीएमके के पास चली गई। डीएमके अभी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। भाजपा की नजर इस पर तमिलनाडु में काफी अधिक है। यही कारण है कि एनडीए की बैठक में पीएम मोदी ने अपने ठीक बगल में एआईएडीएमके के मुखिया के पलानीस्वामी को बैठाया था। फोटो सेशन में भी पीएम मोदी के ठीक बगल में पलानीस्वामी बैठे थे। तमिलनाडु में पट्टल्ली मक्कल काची (पीएमके) और टीएमसी (एम) के साथ भी भाजपा ने गठबंधन किया है।
मध्य प्रदेश, केरल, कर्नाटक, गुजरात ओडिशा, राजस्थान ऐसे राज्य हैं, जहां प्रत्येक राज्य में 20 से ज्यादा सीटें हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक में कांग्रेस और भाजपा की सीधी लड़ाई। गुजरात में भाजपा मजबूत है। ओडिशा में भाजपा की लड़ाई बीजद से है।
पंजाब में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं। हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस की सीधी लड़ाई है। ये वो राज्य हैं, जहां लोकसभा की 70 प्रतिशत से ज्यादा सीटें हैं। मतलब इन राज्यों में जीत हासिल करने वाला गठबंधन आसानी से केंद्र की सत्ता पर राज कर सकता है।