बिहार संवाददाता- Anil sharma…
नवादा आज इस्लाम धर्म के लोग मोहर्रम का ताजिया को निकालकर कर्बला ले जा रहे हैं, नवादा शहर में ताजिया को देखने के लिए लोगों की काफी भीड़ दिखी जगह जगह पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन तैनात अधिक है।
इस्लामिक के मुताबिक देश में मुहर्रम रोज-ए-आशुरा मनाया जाता है…
मेले में सदर एसडीओ आशुतोष कुमार और सदर एसडीपीओ उपेंद्र प्रसाद मौजूद थे। इस्लाम धर्म में मुहर्रम का महीना काफी अहम और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस्लामिक के मुताबिक देश में मुहर्रम रोज-ए-आशुरा मनाया जाता है। दरअसल, इस दिन को इस्लामिक कल्चर में मातम का दिन भी कहा जाता है। और इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिए निकालते हैं। मुहर्रम के महीने को गम का महीना कहा जाता है. हालांकि मुस्लिम समुदाय के शिया और सुन्नी समुदाय के लोग अलग-अलग तरीके से मुहर्रम मनाते हैं।
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पैगंबर मोहम्मद के पोते हजरत इमाम हुसैन को मुहर्रम के महीने में कर्बला की जंग में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी। मुहर्रम के महीने में 10वें दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी। इसलिए मुहर्रम महीने के 10 वें दिन मुहर्रम को मनाया जाता है। बता दें कि 1400 साल पहले कर्बला में जंग हुई थी।
शिया-सुन्नी समुदाय क्या करते हैं…
इस दिन शिया समुदाय के लोग मातम मनाते हैं। मजलिस पढ़ते हैं और काले रंग के कपड़े पहनकर शोक व्यक्त करते हैं। इस दिन शिया समुदाय के लोग भूखे-प्यासे रहकर शोक व्यक्त करते हैं। जबकि सुन्नी समुदाय के लोग रोजा-नमाज करके अपना दुख जाहिर करते हैं।
मुहर्रम के 10वें दिन मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग ताज़िया निकालते हैं। इसे हजरत इमाम हुसैन के मकबरे का प्रतीक माना जाता है और इस जुलूस में लोग शोक व्यक्त करते हैं। इस जुलूस में लोग अपनी छाती पीटकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं।