Jivitputrika fast : जीवितपुत्रिका व्रत अपने संतान के लिए रखा जाता है। इस व्रत को महिलाए अपने संतान को कष्टों से बचाने और लंबी आयु की मनोकामना के लिए करती हैं, आपको बता दे कि बेटे की उम्र की अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत किया जाता है। इस व्रत को माताएं अपनी संतान को कष्टों से बचाने और लंबी आयु की मनोकामना के लिए करती हैं। खासतौर से ये बिहार में मनाया जाने वाले इस व्रत का संबंध महाभारत से भी है, जानिये किस दिन रखा जा रहा है जीवितपुत्रिका व्रत।
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अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत किया जाता है। इस व्रत को माताएं अपनी संतान को कष्टों से बचाने और लंबी आयु की मनोकामना के लिए करती हैं। आपको बता दे कि छठ की तरह बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में जितिया व्रत रखा जाता है, कहते हैं तीन दिन तक चलने वाले इस व्रत के प्रभाव से संतान को कष्ट नहीं झेलने पड़ते, उसकी आयु लंबी होती है।
जितिया व्रत की तिथि और समय..
इस साल ये व्रत 6 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जा रहा है। वहीं इस व्रत के लिए नहाय खाय 5 अक्टूबर को है। इसका पारण 7 अक्टूबर को किया जाएग।कुछ जगहों पर इसे जितिया या जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
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इस व्रत का महत्व..
जितिया व्रत को खास संतान के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से संतान दीर्घायु होता है। साथ ही संतान तेजस्वी, ओजस्वी और मेधावी होता है। शास्त्रों के मुताबिक जितिया करने वाली व्रती महिला के संतान की रक्षा स्वंय भगवान श्रीकृष्ण करते हैं। इसलिए इस व्रत का विशेष महत्व माना जाता है।
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क्यों कहते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत?
महाभारत युद्ध में अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया था। शिविर के अंदर पांच लोग को सोया पाए, अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, लेकिन ये पांडव नहीं द्रोपदी की पांच संतानें थी। क्रोध में आकर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि उसके माथे से निकाल ली।
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इस व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है..
युपी बिहार में मनाया जाने वाला जितिया पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत का रिश्ता महाभारत काल से है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार जब महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मार दिया था तो श्रीकृष्ण ने अपनी शक्तियों से एकबार फिर उस संतान को जीवित कर दिया। जन्म के बाद इसी पुत्र का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया था। माना जाता है कि इसके बाद से ही जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत को रखने की परंपरा शुरू हुई थी।