- देवबंद जमीयत उलमा -ए- हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने फिलीस्तीन को लेकर दिया बड़ा बयान
- इज़राइल एक हड़पने वाला देश है जिसने कुछ विश्व शक्तियों के समर्थन से कब्ज़ा कर रखा है।
सहारनपुर संवाददाता- नजम मंसूरी
Saharpur: देवबंद जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष और मुस्लिम वर्ल्ड लीग के संस्थापक सदस्य मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि गाजा पर इजराइल के हमले की निंदा की और विश्व समुदाय से युद्ध रोकने के लिए हस्तक्षेप की मांग की, जमीयत उलमा-ए-हिंद बैतुल-मकदिस, फिलिस्तीन और गाजा की सुरक्षा के लिए पहले दिन से किए जाने वाले हर प्रयास की समर्थक रही हैं। वह आज भी फिलिस्तीन के साथ खड़ी हैं। इजराइल एक कब्जा करने वाला देश है जिसने फिलिस्तीन की भूमि पर कुछ विश्व शक्तियों के समर्थन से कब्जा कर रखा है और उनके समर्थन से अब इस जमीन से फिलिस्तीनी नागरिकों के अस्तित्व को समाप्त करना चाहता है।
मौलाना अरशद मदनी ने गाजा पर इजराइली सेना के हमलों की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह युद्ध इजराइल के स्थायी आतंकी योजनाओं का हिस्सा है। स्वभाविक प्रतिक्रिया के रूप में फिलिस्तीनियों ने बहुत साहस और हिम्मत का प्रदर्शन किया और अत्याचारी इजराइल पर ऐसा पलटवार किया, जिसकी इजराइल कल्पना भी नहीं कर सकता था।
मौलाना अरशद मदनी ने अंतरराष्ट्रीय संगठन से हस्तक्षेप करने की मांग
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद गाजा पर हुए हमलों को मानवाधिकारों पर होने वाला गंभीर हमला मानती है और इसकी कड़ी निंदा करती है। दुखद बात है कि आज दुनिया के वे देश भी चुप हैं, जो अंतरराष्ट्रीय शांति और एकता के अग्रदूत होने का दावा करते हैं और मानवाधिकारों का निरंतर राग अलापने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन भी चुप हैं। साथ ही उन्होंने सभी अंतरराष्ट्रीय नेताओं से गाजा में जारी घातक युद्ध और निहत्थी आबादियों पर होने वाली खतरनाक बमबारी को तुरंत रोकने के लिए आगे आने की अपील की है, उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, वर्ल्ड मुस्लिम लीग और अन्य प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संगठन बिना किसी विलंब के हस्तक्षेप करें और वहां शांति की स्थापना के लिए सकारात्मक और प्रभावी प्रयास करें, अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस युद्ध का दायरा बढ़ सकता है और यह पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले सकता है।
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मौलाना अरशद मदनी ने दुख भी जताया
मौलाना ने कहा कि निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं और दूसरी ओर उस पर होने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वर्तमान बैठक कुछ बड़ी शक्तियों की उदासीनता के कारण विफल हो गई, उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन विवाद पर 75 वर्षों से यही चल रहा है। इसका काला सच तो यह है कि अगर कभी संयुक्त राष्ट्र ने कोई प्रस्ताव पारित भी किया तो इजराइल ने उसे स्वीकार नहीं किया और पूरी दुनिया मूक दर्शक बनी रही है। यही कारण है कि इस विवाद का अब तक कोई सर्वमान्य समाधान नहीं निकल सका है।
विश्व की कुछ बड़ी शक्तियां अपने-अपने हितों को देखते हुए मध्य पूर्व में खतरनाक खेल खेलती आई हैं। और मदनी ने कहा कि फिलिस्तीन की जनता निरंतर इजराइल के नाजायज कब्जे और उसकी क्रूरता का शिकार है। शांति के हर प्रयास को इजराइल विफल करता रहा है और 75 वर्षों से इजराइल उन्हें अपनी शक्ति के इशारे पर न केवल अपनी आबादी का विस्तार कर रहा है, बल्कि एक-एक करके फिलिस्तीन के सभी क्षेत्रों पर कब्जा करता जा रहा है।
मदनी ने फिलिस्तीन का किया समर्थन
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यहां तक कि जॉर्डन, गोलान हाइट्स आदि पर भी उसके कब्ज़े को दुनिया देख रही है, यानी देशवासियों पर अपनी ही मातृभूमि में जमीनें सिमट चुकी है, लंबे समय से बच्चों, बूढ़ों और आम नागरिकों को निशाना बनाता रहा है और इजराइल यह अत्याचार निरंतर करता आ रहा है। फिलिस्तीन की स्वाभिमानी जनता अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए वर्षों से अपनी जानों का बलिदान देती आ रही है। जमीयत उलमा-ए-हिंद इसको स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानती है और इजराइल की लगातार आक्रामकता को इसका जिम्मेदार मानती है।
मौलाना मदनी ने कहा कि जहां तक भारत का संबंध है, उसने हमेशा शांति की स्थापना और फिलिस्तीनी नागरिकों के अधिकारों की बात की है। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, मौलाना अबुल कलाम और रफी अहमद किदवई से लेकर अटल बिहारी बाजपेयी तक सभी ने हमेशा फिलिस्तीनी हितों का समर्थन किया है, लेकिन समय की विडम्बना देखिए कि आज हमास को आतंकवादी बताया जा रहा है।
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इजराइल की खतरनाक विस्तारवादी सोच
मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि फिलिस्तीनी नागरिकों का संघर्ष अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और पहले क़िब्ले की प्राप्ति है और विवाद की असल जड़ इजराइल की खतरनाक विस्तारवादी सोच है। वह फिलिस्तीन की जनता को वहां से निर्वासित करके पूरी फिलिस्तीन धरती पर कब्जा जमा लेना चाहता है। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि इसका समाधान भी यही है कि संयुक्त राष्ट्र के निर्णय के अनुसार संप्रभु फिलिस्तीन के रूप में एक स्वतंत्र देश स्थापित हो और 1967 के ओस्लो समझौता के अंतर्गत फिलिस्तीन अपनी सीमाओं पर लौट जाए।