Uttar Pradesh News: उत्तर रेलवे (Northern Railway) के लखनऊ (Lucknow) मंडल के आठ रेलवे स्टेशनों का नाम आधिकारिक रूप से बदल दिया गया है। इन स्टेशनों के नाम अब संतों, स्वतंत्रता सेनानियों, और स्थानीय आश्रमों के नाम पर रखे गए हैं। नाम परिवर्तन के इस कदम पर समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार पर तंज कसते हुए निशाना साधा है।
अखिलेश ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर टिप्पणी करते हुए कहा, “भाजपा सरकार से आग्रह है कि रेलवे स्टेशनों के सिर्फ़ ‘नाम’ नहीं, हालात भी बदलें… और जब नाम बदलने से फ़ुरसत मिल जाएं तो रिकार्ड कायम करते रेल-एक्सीडेंट्स के हादसों के रोकथाम के लिए भी कुछ समय निकालकर विचार करें।”
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इन स्टेशनों को मिला नया नाम
मंगलवार को उत्तर रेलवे द्वारा जारी आदेश में आठ स्टेशनों के नाम बदलने की घोषणा की गई। नए नामों में कासिमपुर हाल्ट का नाम बदलकर ‘जायस सिटी’, जायस को ‘गुरु गोरखनाथ धाम’, मिसरौली को ‘मां कालिकन धाम’, बनी को ‘स्वामी परमहंस’, निहालगढ़ को ‘महाराजा बिजली पासी’, अकबरगंज को ‘मां अहोरवा भवानी धाम’, वारिसगंज को ‘अमर शहीद भाले सुल्तान’ और फुरसतगंज को ‘तपेश्वरनाथ धाम’ के नाम से जाना जाएगा। यह कदम अमेठी की पूर्व सांसद स्मृति ईरानी द्वारा क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान और विरासत को संरक्षित करने की मांग के बाद उठाया गया है। स्मृति ईरानी ने मार्च में सोशल मीडिया पर स्टेशनों के नाम बदलने की घोषणा की थी।
नाम परिवर्तन के पीछे की कहानी
रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कासिमपुर हाल्ट का नाम कासिमपुर गांव के नाम पर रखा गया था, जो स्टेशन से काफी दूर स्थित है। इस कारण इसका नाम बदलकर ‘जायस सिटी’ करने का प्रस्ताव दिया गया। जायस स्टेशन के पास स्थित प्रमुख ‘गुरु गोरखनाथ धाम’ आश्रम के कारण इसका नाम आश्रम के नाम पर रखे जाने का निर्णय लिया गया। इसी तरह, मिसरौली, बनी, अकबरगंज और फुरसतगंज रेलवे स्टेशनों के पास भगवान शिव और देवी काली के कई मंदिर हैं, इसलिए इनके नाम बदलकर क्रमशः ‘मां कालिकन धाम’, ‘स्वामी परमहंस’, ‘मां अहोरवा भवानी धाम’ और ‘तपेश्वरनाथ धाम’ कर दिए गए।
महाराजा बिजली पासी और भाले सुल्तान के सम्मान में
निहालगढ़ रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘महाराजा बिजली पासी’ करने के पीछे एक विशेष सांस्कृतिक कारण है। निहालगढ़ क्षेत्र पासी समुदाय का है, जो बेर की खेती करने के लिए प्रसिद्ध हैं। पासी समुदाय के राजा महाराजा बिजली पासी का नाम सम्मानपूर्वक स्टेशन को दिया गया। इसी तरह, वारिसगंज रेलवे स्टेशन का नाम ‘अमर शहीद भाले सुल्तान’ रखा गया, जो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहादुरी से लड़ने वाले ठाकुर भाले सुल्तान की वीरता का सम्मान करता है। इन नाम परिवर्तनों का संबंध अमेठी की पूर्व सांसद स्मृति ईरानी के प्रयासों से है, जिन्होंने क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करने के लिए यह कदम उठाया। उनके इस प्रयास के बाद, उत्तर रेलवे ने इन स्टेशनों के नाम बदलने का निर्णय लिया।
राजनीतिक बयानबाजी तेज
स्टेशनों के नाम बदलने का यह कदम जहां एक ओर क्षेत्रीय पहचान को मजबूत करता है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक बयानबाजी का भी हिस्सा बन गया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा इस मुद्दे पर तंज कसना और भाजपा सरकार को निशाने पर लेना इस बात का संकेत है कि यह नाम परिवर्तन केवल सांस्कृतिक पहलू तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका राजनीतिक रंग भी गहराता जा रहा है। जहां कुछ लोग इसे सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के रूप में देख रहे हैं, वहीं कुछ इसे सिर्फ नाम बदलने की राजनीति करार दे रहे हैं। आगामी चुनावों में अब यह मुद्दा किस तरह से उभरता है, यह देखना भी दिलचस्प होगा।