देश की जानी-मानी लोकगायिका ‘बिहार कोकिला’ Sharda Sinha का मंगलवार को निधन हो गया है। बता दे, Sharda Sinha की गायिकी में न सिर्फ बिहार का, बल्कि हर जगह अपनी गायिकी की छाप छोड़ी है। उनके गाए हुए गीतों ने केवल पर्व-त्योहारों में नहीं बाकि अन्य जगहों का हिस्सा बन चुके हैं। त्योहार चाहे छठ का हो या विवाह और होली का हर अवसर पर उनके गाए हुए गीतों से घर-घर गूंजता हैं। उनके सैकड़ों गीतों ने न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में लोकप्रियता पाई। बात करें उनकी लंबे समय से चल रही बीमारी की तो वे अस्पताल में भर्ती थीं जिसके बाद मगंलवार जी उनका निधन हो गया।
मेडिकल रिपोर्ट्स के अनुसार Sharda Sinha मल्टीपल मायलोमा (Multiple Myeloma) नामक ब्लड कैंसर से जूझ रही थीं। सोमवार को उनकी हालत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें Ventilator पर रखा गया। जिन्होंने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान AIIMS में अपनी अंतिम सांस ली। साल 2018 में पता चला था कि उन्हें मल्टीपल मायलोमा नामक ब्लड कैंसर है। जो कैंसर के मामले दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा हैं। मल्टीपल मायलोमा, जिसे काहलर रोग के नाम से भी जाना जाता है, ये एक दुर्लभ रक्त कैंसर है जिसके कारण हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है।
क्या हैं मल्टीप्ल मायलोमा?
मल्टीपल मायलोमा एक तरह का कैंसर है, (जिसे काहलर रोग) भी कहा जाता है। ज्यादातर ये तब होता है जब अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में प्लाज़्मा कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं एवं स्वस्थ कोशिकाओं को बाहर निकाल देती हैं। यह कैंसर एक विशेष प्रकार की एंटीबॉडी, जिसे मोनोक्लोनल प्रोटीन (एम प्रोटीन) या पैराप्रोटीन कहा जाता है, का उत्पादन करता है, जो संक्रमण से लड़ने में असमर्थ होता है।
मल्टीपल मायलोमा के लक्षण
विशेषकर रीढ़
हड्डियों में दर्द
ज्यादा थकान और उल्टी
भ्रमित महसूस करना और धुंधला लगना
छाती, या कूल्हों में हाथों और पैरों में कमजोरी
भूख में कमी होना
बिना बात के वजन का घटना
बार-बार बुखार होना
चोट लगना और जल्दी ही खून बहना
मल्टीपल मायलोमा के कितने चरण होते हैं?
मल्टीपल मायलोमा को तकनीकी रूप से लाइलाज बीमारी माना जाता है। हालांकि इसके तीन चरण है आइए जानते हैं इसके चरण
पहला चरण – इस चरण में सामान्य एल्बुमिन स्तर होता है और कोई उच्च जोखिम वाली आनुवंशिक विशेषताएं नहीं होती हैं।
दूसरा चरण – इस चरण में असामान्य बायोमार्कर्स मौजूद होते हैं और रोग का जोखिम मध्यम स्तर का होता है।
तीसरा चरण- बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन का उच्च स्तर और उच्च जोखिम वाली आनुवंशिक विशेषताएं होती हैं, जो इस रोग को अधिक आक्रामक बनाती हैं।
मल्टीपल मायलोमा एक जोखिम कारक हैं
मल्टीपल मायलोमा के कुछ जोखिम कारक होते हैं, जिनसे इस बीमारी का खतरा बढ़ सकता है।
ये बीमारी 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में अधिक पाई जाती है।
पुरुषों में महिलाओं की तुलना में इसका खतरा थोड़ा अधिक होता है।
काले लोगों में गोरे लोगों की तुलना में मायलोमा होने की आकांशा दोगुनी होती है।
अगर घर में माता-पिता, भाई, या बहन को यह बीमारी है, तो उनके अन्य परिजनों में भी यह बीमारी होने का खतरा चार गुना बढ़ जाता है।
तेल उद्योग में काम करने वालों में इसका खतरा थोड़ा अधिक हो सकता है हालांकि यह पूरी तरह सिद्ध नहीं हुआ है।
मोठे लोगो को इस बीमारी से खतरा रहता है।