AMU Minority Status: सुप्रीम कोर्ट में आज मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल का आखिरी दिन है, और इसे खास बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में आज एक ऐतिहासिक मामले पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच, जिसकी अध्यक्षता खुद सीजेआई चंद्रचूड़ ने की, आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला आया है। इस बहुप्रतीक्षित निर्णय का सभी वर्गों में बेसब्री से इंतजार था।
AMU की सुप्रीम कोर्ट में जीत
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखने का निर्णय सुनाया है। इस फैसले के दौरान, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि चार जजों की राय एक जैसी है, जबकि तीन जजों ने अपनी असहमति जताई है। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस शर्मा ने अलग राय दी है। इस प्रकार, यह फैसला 4:3 के अनुपात में आया है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है, जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उनके प्रशासन का अधिकार प्रदान करता है। इस फैसले को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई में सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया।
क्या था मामला ?
यह मामला संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलने से संबंधित था। अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार देता है। काफी समय से यह मामला चला आ रहा था कि क्या एएमयू को इस अनुच्छेद के तहत अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता मिल सकती है या नहीं और अब सुप्रीम कोर्ट ने AMU के हक में फैसला दे दिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से किया था इनकार
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले से उठा था, जिसमें कोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से इनकार कर दिया था। इस फैसले में कहा गया था कि एएमयू एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है और इसे अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया जा सकता। इस निर्णय के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया और अब करीब 18 साल बाद इस पर अंतिम निर्णय का इंतजार है।
आरक्षण नीति पर पड़ेगा असर
अगर विश्लेषक के तौर पर देखा जाए तो अगर सुप्रीम कोर्ट एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दे तो दिया है, तो इस हिसाब से एएमयू मुस्लिम छात्रों के लिए 50% आरक्षण लागू कर सकेगा। इसका अर्थ होगा कि एएमयू खुद के नियम और आरक्षण नीति निर्धारित कर सकेगा, जिससे अन्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों से यह अलग हो जाएगा। लेकिन अगर कोर्ट इस विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा अगर नहीं देता, तो एएमयू को देश के अन्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की तरह सामान्य आरक्षण नीति अपनानी पड़ती, जिसमें सभी वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान होगा। ऐसे में, विश्वविद्यालय को शिक्षकों और छात्रों के लिए सरकारी आरक्षण नियमों का पालन करना होता।
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CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात जजों की बेंच में हुई सुनवाई
आज सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के लिए सात जजों की बेंच बैठी थी। इस बेंच की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे हैं, जिनके लिए यह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में आखिरी कार्यदिवस है। इस महत्वपूर्ण फैसले का हिस्सा बनने से यह दिन और भी खास बन गया है। यह पहली बार नहीं है जब सीजेआई चंद्रचूड़ ने एक अहम फैसला दिया हो, लेकिन इस बार यह फैसला एएमयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के भविष्य को प्रभावित कर सकता था।
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर क्या है सरकार और समाज की राय?
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर देश में लंबे समय से मतभेद रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा मिलना चाहिए ताकि वह मुस्लिम छात्रों के शैक्षिक और सांस्कृतिक उत्थान में योगदान दे सके। वहीं, कुछ लोग मानते हैं कि एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय होने के नाते एएमयू को राष्ट्रीय हित में आरक्षण नीतियों का पालन करना चाहिए। सरकार का भी इस मामले में एक रुख रहा है, जिसमें शिक्षा नीति का पालन करने और सभी वर्गों को समान अवसर देने की बात की जाती रही है।
इस फैसले का असर केवल एएमयू पर ही नहीं, बल्कि देश के शिक्षा तंत्र पर भी पड़ेगा। अगर एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा मिलने से यह अन्य शैक्षणिक संस्थानों के लिए भी एक उदाहरण बन गया है। इसके अलावा, यह फैसला अल्पसंख्यक समुदाय के लिए शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक अवसर पैदा कर सकता है। साथ ही, राष्ट्रीय एकता और शिक्षा में समानता पर भी गहरा प्रभाव छोड़ेगा।